
- डॉ. सिंह ने कहा कि लोकतंत्र तभी मज़बूत होगा जब उसकी संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान किया जाएगा।
- उन्होंने न्यायपालिका, चुनाव आयोग और सशस्त्र बलों पर हमलों को “भारत पर हमला” बताया।
- राजनीतिक लाभ और सस्ती लोकप्रियता के लिए संस्थाओं पर आरोप लगाने वालों को गैर-जिम्मेदार करार दिया।
- कहा कि भारत के लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बाहर से नहीं, भीतर से है।
- जनता से अपील: “संविधान की रक्षा करने वाली संस्थाओं के साथ खड़े हों, उन्हें कमज़ोर करने वालों को ठुकराएँ।”
लखनऊ : सरोजनीनगर विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने मंगलवार को सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक सशक्त संदेश जारी करते हुए संवैधानिक संस्थाओं पर हो रहे निराधार हमलों को लोकतंत्र और राष्ट्रहित के लिए ख़तरनाक करार दिया। उन्होंने कहा कि “लोकतंत्र तभी फलता-फूलता है जब उसकी संस्थाओं का सम्मान और सशक्तिकरण हो, न कि उन्हें कमज़ोर और उपहास का पात्र बनाया जाए।”
संस्थाएँ लोकतंत्र की आत्मा
डॉ. सिंह ने कहा कि भारत के लोकतंत्र की असली मजबूती उसकी स्वतंत्र और तटस्थ संस्थाओं में है। न्यायपालिका, चुनाव आयोग, सशस्त्र बल और ऑडिट संस्थाएँ — ये सभी किसी भी राजनीतिक दल या विचारधारा से ऊपर हैं। “इन पर हमला केवल संस्थाओं पर नहीं, बल्कि पूरे भारत पर हमला है। अगर जनता अपने ही संस्थानों पर विश्वास खो दे, तो लोकतंत्र की नींव हिल जाती है।”
सस्ती लोकप्रियता के लिए हमला अस्वीकार्य
डॉ. सिंह ने उन नेताओं पर कटाक्ष किया जो राजनीतिक लाभ और सस्ती लोकप्रियता के लिए संवैधानिक संस्थाओं पर आरोप लगाते हैं। उन्होंने कहा, “जो लोग बिना सोचे-समझे संस्थाओं की विश्वसनीयता पर उंगली उठाते हैं, वे सिर्फ़ प्रतिष्ठा ही नहीं बिगाड़ते, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के विश्वास को भी चोट पहुँचाते हैं। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं, बल्कि चरम स्तर की गैर-जिम्मेदारी है।”
भीतर से बड़ा ख़तरा
अपने संबोधन में डॉ. सिंह ने स्पष्ट किया कि भारत के लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बाहर से नहीं बल्कि भीतर से है। उन्होंने कहा कि कुछ त्रुटियों के आधार पर पूरे संस्थागत ढाँचे को कटघरे में खड़ा करना बेईमानी और राष्ट्र के लिए घातक है। “गैर-जिम्मेदार आलोचना कमज़ोर राजनीतिज्ञों का हथियार है, जो लोकतंत्र के प्रहरी संस्थानों का मनोबल तोड़ती है। यह आचरण केवल उन ताक़तों को मज़बूत करता है जो भारत को बँटा हुआ और अस्थिर देखना चाहती हैं।”
जनता से सीधा संदेश
डॉ. सिंह ने युवाओं और आम जनता से आह्वान किया कि वे ऐसी राजनीति को ठुकराएँ जो लोकतंत्र को कमज़ोर करती है। उन्होंने कहा, “हर आलोचना से पहले खुद से पूछें – क्या यह भारत को मज़बूत कर रही है या शत्रुओं का मनोबल बढ़ा रही है? अगर जवाब ‘कमज़ोर करना’ है, तो चुप रहना बेहतर है।”
उन्होंने जनता को चेताते हुए कहा कि इतिहास गवाह है—राष्ट्र बाहर से नहीं, बल्कि भीतर की ग़द्दारी से ढहते हैं। “जो आज संस्थाओं का उपहास करते हैं, कल उन्हें उसी लोकतंत्र के मलबे पर खड़ा होना पड़ेगा जिसे वे बचाने का दावा करते हैं।”