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हिमालय की पुकार और डॉ. राजेश्वर सिंह की चेतावनी – अब नहीं चेते तो बर्फ से बाढ़ तक बर्बादी तय, ग्लेशियरों का विलुप्त होना, सभ्यता के लिए अंतिम अलार्म

हिमालय की पुकार और डॉ. राजेश्वर सिंह की चेतावनी – अब नहीं चेते तो बर्फ से बाढ़ तक बर्बादी तय, ग्लेशियरों का विलुप्त होना, सभ्यता के लिए अंतिम अलार्महिमालय की पुकार और डॉ. राजेश्वर सिंह की चेतावनी – अब नहीं चेते तो बर्फ से बाढ़ तक बर्बादी तय, ग्लेशियरों का विलुप्त होना, सभ्यता के लिए अंतिम अलार्म
  • विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने ‘याला ग्लेशियर’ की समाप्ति को हिमालयी पर्यावरण संकट का प्रतीक बताया।
  • उन्होंने 54,000 ग्लेशियरों के संकट और 2 अरब जनसंख्या पर मंडराते खतरे को उजागर किया।
  • हिमालयी क्षेत्र में 65% तक बढ़ा ग्लेशियर पिघलाव, लेकिन केवल 7 ग्लेशियरों की हो रही निगरानी – डॉ. सिंह ने वैज्ञानिक लापरवाही पर चिंता जताई।
  • 426 ppm CO₂ स्तर को ‘बर्फ में अंतिम चेतावनी’ बताते हुए उन्होंने जलवायु न्याय और ठोस वैश्विक कार्रवाई की मांग की।
  • डॉ. सिंह ने 11 सूत्रीय कार्ययोजना प्रस्तुत कर कहा – अब नहीं चेते तो अगला नंबर भारत का हो सकता है।

लखनऊ: सरोजनीनगर से विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने एक भावप्रवण और चिंताजनक वक्तव्य जारी कर जलवायु संकट को लेकर जनमानस और नीति-निर्माताओं को आगाह किया है। उन्होंने सोशल मीडिया मंच X पर साझा अपने संदेश में हिमालयी ग्लेशियरों के तीव्र पिघलाव को न केवल एक पारिस्थितिक संकट, बल्कि सभ्यता के लिए चेतावनी बताया।

नेपाल स्थित याला ग्लेशियर को एशिया का पहला ‘मृत’ घोषित ग्लेशियर बताते हुए उन्होंने कहा कि यह केवल बर्फ का अंत नहीं, बल्कि आने वाले समय की भयावह झलक है। याला ग्लेशियर का आकार 1970 के दशक से अब तक 66% घट चुका है और यह 784 मीटर पीछे हट चुका है। यह स्थिति दर्शाती है कि जलवायु परिवर्तन अब भविष्य का विषय नहीं, वर्तमान का संकट बन चुका है।

हिमालय के आंसू: एक क्षेत्रीय नहीं, वैश्विक संकट
हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र, जहां 54,000 से अधिक ग्लेशियर हैं, आज असहनीय तापवृद्धि से जूझ रहा है। पिछले दो दशकों में यहां पिघलाव की गति 65% तक बढ़ गई है। इसके बावजूद, 3,500 किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र में हर वर्ष केवल 7 ग्लेशियरों की निगरानी हो रही है, यह वैज्ञानिक प्रयासों की भयावह कमी को दर्शाता है।

हिमालय केवल भारत का नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया की 2 अरब से अधिक आबादी का जल स्रोत है। गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु जैसी 10 प्रमुख नदियाँ इन्हीं ग्लेशियरों पर निर्भर हैं। ग्लेशियरों का लुप्त होना सिंचाई, पेयजल, ऊर्जा उत्पादन और पारिस्थितिक तंत्र को असंतुलित कर देगा।

एक मौन पत्थर की साक्षी:
याला ग्लेशियर पर हाल ही में स्थापित स्मृति-शिला पर दर्ज है – 426 पीपीएम CO₂ (मई 2025), जो मानव इतिहास की सर्वाधिक चिंताजनक वायुमंडलीय सांद्रता में से एक है। डॉ. सिंह ने इसे “बर्फ में उकेरी अंतिम चेतावनी” बताते हुए कहा, “यह पत्थर केवल शोक का प्रतीक नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए एक उग्र संदेश है।”

बर्फ से बाढ़ तक – एक विनाशकारी चक्र
हिमालयी क्षेत्र में 1990 के दशक के बाद से ग्लेशियर झीलों की संख्या में 50% की वृद्धि दर्ज हुई है। इसके परिणामस्वरूप ग्लेशियर झील विस्फोट (GLOF) की घटनाएं बढ़ी हैं, जिससे भूटान (2017) और सिक्किम (2023) जैसे क्षेत्रों में जान-माल की भारी क्षति हुई।

भारत की पर्यावरणीय असुरक्षा:
भारत जलवायु जोखिमों के लिहाज़ से शीर्ष 10 देशों में शामिल है। विशेष रूप से उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे हिमालयी राज्य, जलवायु परिवर्तन की अग्रिम पंक्ति में खड़े हैं। IPCC (अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन पैनल) ने स्पष्ट किया है कि यदि तापमान वृद्धि 1.5°C तक भी सीमित कर दी जाए, तब भी ग्लेशियरों की हानि को केवल धीमा किया जा सकता है, रोका नहीं जा सकता।

ग्लेशियरों के अंतिम संस्कार – एक मौन विद्रोह
2019 में आइसलैंड के OK ग्लेशियर, स्विट्ज़रलैंड के Pizol और Basòdino ग्लेशियर, तथा मैक्सिको के Ayoloco ग्लेशियर के लिए आयोजित पर्यावरणीय शोक सभाएं यह दर्शाती हैं कि अब प्रतीकों से आगे जाकर ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है।

डॉ. राजेश्वर सिंह की 11 सूत्रीय कार्ययोजना:

  1. नवीकरणीय ऊर्जा को प्राथमिकता दी जाए।
  2. वनों की रक्षा और वृक्षारोपण को जन आंदोलन बनाया जाए।
  3. उद्योगों, भवनों और यातायात में ऊर्जा दक्षता बढ़ाई जाए।
  4. सतत कृषि को बढ़ावा दिया जाए।
  5. कचरे के प्रबंधन में तीन सिद्धांत अपनाए जाएं: कम करो, पुनः उपयोग करो, पुनर्चक्रण करो
  6. युवाओं व समुदायों को जलवायु साक्षर बनाया जाए।
  7. भारत में ग्लेशियरों की वैज्ञानिक निगरानी को मजबूत किया जाए
  8. GLOF जैसी आपदाओं के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित की जाए।
  9. वैश्विक जलवायु संधियों में सक्रिय भागीदारी हो।
  10. जल संरक्षण को नीति में सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
  11. 11. नीति निर्माण को प्रकृति केंद्रित बनाया जाए।

“हमें पता है संकट क्या है। हमें पता है समाधान क्या है। फिर भी यदि आज हम चुप हैं, तो आने वाली पीढ़ियों से विश्वासघात कर रहे हैं,” डॉ. सिंह ने स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा। विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने यह भी स्पष्ट किया कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकारों का उत्तरदायित्व नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक की साझी जिम्मेदारी है। उन्होंने सभी से आग्रह किया कि वे प्रकृति की पुकार को सुने, सक्रिय बनें और परिवर्तन के वाहक बनें।

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