
हरित भविष्य की ओर एक कदम, जागरूकता का आह्वान
- भारत में हर साल 58 मिलियन टन भोजन बर्बाद होता है, जिससे संसाधनों की भारी क्षति होती है।
- देश में 3.3 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 60% ही पुनर्चक्रित किया जाता है।
- 30% बिजली खराब अवसंरचना के कारण बर्बाद हो जाती है, जिससे ऊर्जा संकट गहरा रहा है।
- हर साल 0.5 मिलियन हेक्टेयर जंगल नष्ट हो रहे हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
- ‘रिड्यूस, रीयूज़, रीसायकल’ की नीति अपनाकर पर्यावरण संरक्षण में नागरिकों की भागीदारी अनिवार्य है।
लखनऊ, 15 फरवरी 2025: सरोजनीनगर विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने शनिवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पर्यावरण संरक्षण को लेकर गंभीर चिंताएँ साझा कीं और सतत विकास के लिए अहम सुझाव प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और टिकाऊ जीवनशैली अपनाना हर नागरिक की जिम्मेदारी है।
डॉ. सिंह ने जोर देकर कहा कि जलवायु परिवर्तन, प्लास्टिक प्रदूषण, भोजन और ऊर्जा की बर्बादी जैसे मुद्दे आज वैश्विक स्तर पर चिंता का विषय बन चुके हैं। यदि समय रहते इन समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण की स्थिति और अधिक खराब हो जाएगी। उन्होंने सभी नागरिकों से छोटे-छोटे प्रयासों के माध्यम से पर्यावरण की रक्षा करने की अपील की।
भोजन की बर्बादी पर चिंता
डॉ. राजेश्वर सिंह ने बताया कि भारत में हर साल 58 मिलियन टन भोजन बर्बाद होता है, जो करोड़ों भूखे लोगों का पेट भर सकता है। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर हर साल 1.3 अरब टन भोजन बर्बाद होता है, जो खाद्य उत्पादन के कुल आंकड़े का एक-तिहाई है।
उन्होंने इस मुद्दे के गंभीर प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भोजन की बर्बादी से न केवल संसाधनों की हानि होती है, बल्कि इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी बढ़ता है, जो जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है। इसके अलावा, अनावश्यक रूप से अधिक भोजन के उत्पादन और वितरण में भारी मात्रा में पानी, ऊर्जा और भूमि संसाधनों का उपयोग होता है, जिससे पर्यावरण पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
भोजन की बर्बादी रोकने के उपाय:
बचा हुआ भोजन जरूरतमंदों को दान करें।
भोजन को सही ढंग से स्टोर करें और उसकी एक्सपायरी डेट का ध्यान रखें।
कम्पोस्टिंग (खाद बनाने की प्रक्रिया) को अपनाएँ ताकि भोजन का सही उपयोग हो सके।
ऊर्जा संरक्षण की आवश्यकता
डॉ. सिंह ने कहा कि भारत में हर साल लगभग 30% बिजली खराब अवसंरचना और बेकार उपयोग के कारण बर्बाद हो जाती है। इसके अलावा, 80% भारतीय घर अभी भी पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर हैं, जिससे कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है और जलवायु परिवर्तन की समस्या गंभीर होती जा रही है।
उन्होंने कहा कि यदि सभी लोग एलईडी बल्बों और ऊर्जा-कुशल उपकरणों का उपयोग करें, सौर ऊर्जा को अपनाएँ और अनावश्यक बिजली की खपत को रोकें, तो ऊर्जा बचत में बड़ा योगदान दिया जा सकता है।
ऊर्जा बचाने के आसान उपाय:
एलईडी बल्बों का उपयोग करें, जो पारंपरिक बल्बों की तुलना में 80% तक ऊर्जा बचाते हैं।
सौर ऊर्जा अपनाकर पारंपरिक ईंधन की खपत को कम करें।
जब जरूरत न हो तो पंखे, लाइट और अन्य उपकरण बंद करें।
प्लास्टिक कचरे पर गंभीर सवाल
डॉ. सिंह ने प्लास्टिक कचरे को लेकर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि भारत हर साल 3.3 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है, जिसमें से केवल 60% ही पुनर्चक्रित किया जाता है।
उन्होंने कहा कि बाकी प्लास्टिक लैंडफिल और महासागरों में चला जाता है, जिससे पर्यावरण को गंभीर क्षति होती है। प्लास्टिक प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर समुद्री जीवों और वन्य जीवन पर पड़ता है, क्योंकि प्लास्टिक के कण भोजन में मिलकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा करते हैं।
प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के सुझाव:
एकल-प्रयोग (सिंगल यूज) प्लास्टिक का उपयोग न करें।
कागज या कपड़े के बैग का अधिक इस्तेमाल करें।
प्लास्टिक बोतलों और कंटेनरों को रिसायकल करें।
वन संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण
वनों की कटाई और जैव विविधता पर असर
डॉ. सिंह ने कहा कि भारत में हर साल 0.5 मिलियन हेक्टेयर जंगल नष्ट हो जाते हैं, जिससे जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जंगलों के कटने से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) का स्तर बढ़ता है, जो ग्लोबल वार्मिंग को तेज करता है।
उन्होंने कहा कि वनों की रक्षा के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान चलाना आवश्यक है।
जल प्रदूषण और जल संरक्षण
भारत में 80% से अधिक अपशिष्ट जल बिना किसी ट्रीटमेंट के नदियों और झीलों में छोड़ दिया जाता है, जिससे गंगा, यमुना और अन्य जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं।
वायु प्रदूषण पर चिंता
भारत के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। दिल्ली जैसे शहरों में वायु गुणवत्ता स्तर WHO के सुरक्षित मानकों से 10-20 गुना अधिक खराब हो जाता है, जिससे अस्थमा और अन्य श्वसन संबंधी बीमारियाँ बढ़ रही हैं।
वृक्षारोपण और प्रदूषण कम करने के सुझाव:
अधिक से अधिक पेड़ लगाएँ, क्योंकि एक पेड़ हर साल 48 पाउंड CO₂ अवशोषित करता है।
अपशिष्ट जल को साफ करने की प्रक्रिया को अपनाएँ।
पर्यावरण के अनुकूल यातायात साधनों (साइकिल, इलेक्ट्रिक वाहन) को अपनाएँ।
युवाओं और नागरिकों की भूमिका
डॉ. सिंह ने नागरिकों से ‘रिड्यूस, रीयूज़, रीसायकल’ (Reduce, Reuse, Recycle) की नीति अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि यदि हर नागरिक भोजन और प्लास्टिक की बर्बादी रोकने, ऊर्जा बचाने और अधिक वृक्षारोपण करने के छोटे-छोटे प्रयास करे, तो पर्यावरण संरक्षण में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।
अंत में, सरोजनीनगर विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने सभी नागरिकों से पर्यावरण की सुरक्षा में सक्रिय भूमिका निभाने की अपील की और कहा कि यदि हम अभी से छोटे-छोटे प्रयास शुरू करें, तो आने वाली पीढ़ियों को एक स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण दे सकते हैं।