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रानी तलाश कुँवरी जी: पूर्वांचल की वीरांगना जिन्होंने अंग्रेजों को दी कड़ी चुनौती

रानी तलाश कुँवरी जी: पूर्वांचल की वीरांगना जिन्होंने अंग्रेजों को दी कड़ी चुनौती

रानी तलाश कुँवरी जी को ‘पूर्वांचल की लक्ष्मीबाई’ कहा जाता है, जिन्होंने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों से लोहा लिया।
अंग्रेजों की ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ नीति के विरुद्ध लड़ते हुए उन्होंने अपनी रियासत की रक्षा के लिए युद्ध किया।
जनवरी 1858 में अमोढ़ा रियासत में कर्नल रॉक्राफ्ट के नेतृत्व में हुए युद्ध में रानी की सेना ने अंग्रेजों को हराया।
2 मार्च 1858 के पखेरवा युद्ध में अंग्रेजों से घिर जाने पर रानी ने आत्मसमर्पण के बजाय आत्मबलिदान को चुना।
आज भी अमोढ़ा की धरती पर रानी तलाश कुँवरी जी का बलिदान श्रद्धा और वीरता का प्रतीक बना हुआ है।

बस्ती/लखनऊ: 1857 की क्रांति भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने देश के स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। इस संग्राम में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई और अवंतीबाई लोधी जैसी वीरांगनाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ वीरतापूर्वक संघर्ष किया। लेकिन इतिहास के पन्नों में कई ऐसी नायिकाएँ भी थीं, जिनके बलिदान को उतनी प्रसिद्धि नहीं मिली, जितनी मिलनी चाहिए थी। ऐसी ही एक वीरांगना थीं रानी तलाश कुँवरी जी, जिन्हें ‘पूर्वांचल की लक्ष्मीबाई’ भी कहा जाता है।

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले की अमोढ़ा रियासत की शासक रही रानी तलाश कुँवरी जी ने अंग्रेजों की कूटनीति और षड्यंत्रों के खिलाफ मजबूती से मोर्चा लिया और अपने रणकौशल से अंग्रेजों को कई बार परास्त किया। लेकिन अंततः 2 मार्च 1858 को पखेरवा के युद्ध में वे अंग्रेजों से घिर गईं और आत्मसमर्पण करने के बजाय आत्मबलिदान को चुना।

आज भी पूर्वांचल की धरती पर उनके साहस और बलिदान की गाथाएँ गूंजती हैं, लेकिन मुख्यधारा के इतिहास में उन्हें वह स्थान नहीं मिला, जो उन्हें मिलना चाहिए था। आइए, विस्तार से जानते हैं रानी तलाश कुँवरी जी के जीवन, संघर्ष और बलिदान की पूरी कहानी

रानी तलाश कुँवरी जी का जीवन परिचय

जन्म और विवाह

रानी तलाश कुँवरी जी का जन्म उत्तर प्रदेश के अंगोरी राज्य में हुआ था। वे एक राजपूत परिवार से थीं और बाल्यकाल से ही उन्हें शस्त्र विद्या और युद्ध कौशल की शिक्षा दी गई थी। सन् 1850 में उनका विवाह अमोढ़ा रियासत के राजा जंगबहादुर सिंह से हुआ। लेकिन विवाह के मात्र तीन वर्षों बाद ही 1853 में राजा की असमय मृत्यु हो गई।

राज्य का उत्तराधिकार और अंग्रेजों की साजिश

चूँकि रानी तलाश कुँवरी जी निःसंतान थीं, इसलिए अंग्रेजों ने उनकी रियासत को हड़पने की योजना बनाई। उस समय ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी की ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ नीति लागू थी, जिसके तहत किसी निःसंतान शासक की मृत्यु के बाद उसकी रियासत को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया जाता था।

अंग्रेजों ने अमोढ़ा रियासत पर कब्जा करने की पूरी योजना बना ली थी, लेकिन रानी तलाश कुँवरी जी ने ब्रिटिश हुकूमत के सामने झुकने से इनकार कर दिया और अपनी रियासत की रक्षा के लिए संघर्ष का बिगुल बजा दिया।

1857 का स्वतंत्रता संग्राम और रानी तलाश कुँवरी जी का योगदान

युद्ध की तैयारी और सेना का गठन

जब 1857 में देशभर में क्रांति की ज्वाला भड़की, तब रानी तलाश कुँवरी जी ने भी अंग्रेजों से मुकाबला करने की ठानी। उन्होंने अपनी सेना को मजबूत किया और आसपास के इलाकों के वीरों को संगठित किया।

👉 रानी की सेना में ये लोग शामिल थे:
क्षत्रिय योद्धा जो तलवारबाजी और घुड़सवारी में निपुण थे।
किसान और ग्रामीण नागरिक जिन्होंने अपने पारंपरिक हथियारों से लड़ाई में योगदान दिया।
पठान लड़ाके, जो उस समय भारत में विभिन्न रियासतों की सेनाओं में काम करते थे।

युद्ध कौशल और रणकौशल

रानी तलाश कुँवरी जी शस्त्र विद्या में निपुण थीं। वे भाला, तलवार, घुड़सवारी, तीरंदाजी आदि में माहिर थीं। उन्होंने युद्ध के दौरान अपनी रणनीति और व्यूह रचना से अंग्रेजों को कई बार मात दी।

अमोढ़ा का युद्ध (जनवरी 1858)

अंग्रेजों को जब पता चला कि रानी तलाश कुँवरी जी 1857 के संग्राम में सक्रिय रूप से हिस्सा ले रही हैं, तो उन्होंने उनकी रियासत पर हमला करने की योजना बनाई।

👉 जनवरी 1858 में कर्नल रॉक्राफ्ट के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने अमोढ़ा पर हमला कर दिया
👉 रानी तलाश कुँवरी जी ने अपनी सेना के साथ अंग्रेजों की छावनी पर हमला किया और उन्हें भारी नुकसान पहुँचाया
👉 अंग्रेजों को इस युद्ध में भारी पराजय का सामना करना पड़ा और उन्हें पीछे हटना पड़ा।

लेकिन अंग्रेज इस हार से बौखला गए। उन्होंने नेपाली सेना और भारी तोपों की मदद ली और दोबारा हमला किया।

पखेरवा का युद्ध (2 मार्च 1858)

जब अंग्रेजों को महसूस हुआ कि बिना अतिरिक्त मदद के वे रानी तलाश कुँवरी जी को नहीं हरा सकते, तो उन्होंने बड़ी संख्या में सेना भेजी और चारों ओर से हमला कर दिया।

👉 इस युद्ध में अंग्रेजों की रणनीति:
✅ भारी तोपखाने और बंदूकों से हमला
✅ नेपाली सेना की मदद
✅ नौसेना ब्रिगेड की तैनाती

👉 रानी तलाश कुँवरी जी की रणनीति:
✅ गुरिल्ला युद्ध शैली अपनाई
✅ घाघरा नदी के माझा इलाके में अंग्रेजों को फंसाने की कोशिश
✅ वीरतापूर्वक अंतिम क्षण तक युद्ध किया

लेकिन दुर्भाग्य से रानी की सेना अंग्रेजों से घिर गई। अपनी आत्मसम्मान और स्वाभिमान की रक्षा के लिए रानी ने आत्मसमर्पण से इनकार कर दिया और स्वयं अपनी कटार से अपने प्राण त्याग दिए

रानी तलाश कुँवरी जी की स्मृति और विरासत

👉 श्रद्धा का केंद्र ‘रानी चौरा’
जहाँ रानी के घोड़े की मृत्यु हुई, वहाँ आज भी एक पीपल का पेड़ श्रद्धा का प्रतीक बना हुआ है

👉 वीर सैनिकों का बलिदान
रानी के बलिदान के बाद भी उनकी सेना ने संघर्ष जारी रखा। उनके सैकड़ों सैनिकों को पीपल के पेड़ से लटकाकर फाँसी दे दी गई

👉 स्थानीय जनमानस की आस्था
आज भी बस्ती जिले और पूर्वांचल के अन्य भागों में रानी तलाश कुँवरी जी की वीरता की गाथाएँ गाई जाती हैं

रानी तलाश कुँवरी जी का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक गौरवशाली अध्याय है। हमें उनकी वीरता और संघर्ष को न केवल याद रखना चाहिए बल्कि इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहिए। “भारत की बेटियाँ हमेशा अपने शौर्य से इतिहास रचती रही हैं, और रानी तलाश कुँवरी जी उसी गौरवशाली परंपरा का एक अमिट अध्याय हैं।”

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