
- महाकुंभ आस्था, विश्वास और आध्यात्मिक ऊर्जा का महोत्सव है।
- डॉ. सिंह ने कहा, “आलोचक महाकुंभ की आध्यात्मिक गहराई नहीं समझते।”
- महाकुंभ सनातन धर्म की शक्ति और एकता का वैश्विक प्रतीक है।
- यह आयोजन करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति का प्रतीक है।
लखनऊ: महाकुंभ को लेकर हो रही आलोचनाओं पर सरोजनीनगर से भाजपा विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने सख्त प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और आध्यात्मिक ऊर्जा का महोत्सव है। डॉ. सिंह ने आलोचकों पर कटाक्ष करते हुए पूछा कि उन्हें महाकुंभ की व्यापकता या करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था से क्या आपत्ति है?
महाकुंभ: आस्था और आध्यात्मिकता का प्रतीक
डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा कि महाकुंभ सनातन धर्म की शक्ति और आध्यात्मिक संबंधों का जीवंत प्रमाण है। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा, “महाकुंभ सनातन धर्म की अनंत शक्ति को दर्शाता है, जो सदियों से लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा है। यह केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि भक्ति, श्रद्धा और समर्पण का अनुपम संगम है।”
महाकुंभ के प्रमुख पहलू
1. आत्मशुद्धि का पर्व: महाकुंभ पवित्र त्रिवेणी संगम में स्नान करने का दुर्लभ अवसर प्रदान करता है। मान्यता है कि इस दौरान स्नान करने से तन-मन की शुद्धि होती है और पूर्वजों व भावी पीढ़ियों को भी पुण्यलाभ प्राप्त होता है।
2. सनातन धर्म की शक्ति का प्रतीक: यह आयोजन सनातन धर्म की अनंत शक्ति को दर्शाता है, जो सदियों से लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा है।
3. एकता और समानता का संदेश: गंगा के पवित्र जल में हर जाति, वर्ग और समाज के लोग स्नान करते हैं, जिससे सामाजिक भेदभाव समाप्त हो जाते हैं।
4. आत्मिक शांति और आध्यात्मिक अनुभव: महाकुंभ केवल भौतिक व्यवस्थाओं से नहीं, बल्कि इसकी आध्यात्मिक अनुभूति से मापा जाता है।
5. सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव: महाकुंभ भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक धरोहर का भव्य उत्सव है।
6. वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान: यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक शक्ति का वैश्विक प्रतीक है।
आलोचना से ऊपर विश्वास की शक्ति
डॉ. सिंह ने कहा कि जो लोग महाकुंभ की व्यवस्थाओं की आलोचना करते हैं, वे इसके मूल संदेश और आध्यात्मिक गहराई को समझने में असफल होते हैं। उन्होंने कहा, “यह आयोजन करोड़ों लोगों के भक्ति भाव का प्रतीक है। जो लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं, उनसे पूछा जाना चाहिए कि उन्हें महाकुंभ की व्यापकता और करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था से आपत्ति क्यों है? शायद यह सनातन धर्म की शक्ति और इसकी आध्यात्मिक गहराई है, जिससे वे असहज महसूस कर रहे हैं।”
महाकुंभ: अतीत से भविष्य की यात्रा
डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा कि महाकुंभ न केवल अतीत की परंपराओं का अनुसरण है, बल्कि यह भविष्य की आध्यात्मिक यात्रा का भी प्रतीक है। यह आयोजन आदि से अनंत तक सनातन धर्म की यात्रा का अभिन्न हिस्सा रहेगा।