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सोशल मीडिया बैन: आस्ट्रेलिया में बच्चों की उम्र सीमा तय होने के बाद अब एक नजर भारत पर भी डालें, जानें इस मामले में विशेषज्ञों की क्या राय है?

social media ban
  • ऑस्ट्रेलिया का कदम: ऑस्ट्रेलिया ने 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून पारित किया, जिससे भारत में भी इस दिशा में विचार-विमर्श शुरू हो गया है।
  • भारत में बढ़ता सोशल मीडिया उपयोग: 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों में सोशल मीडिया का उपयोग लगातार बढ़ रहा है, जिससे इसके प्रभावों पर चर्चा जरूरी हो गई है।
  • सदुपयोग: सोशल मीडिया बच्चों के लिए शैक्षिक सामग्री, सामाजिक संपर्क और रचनात्मकता के अवसर प्रदान कर सकता है।
  • दुरुपयोग: अश्लील सामग्री, साइबर बुलिंग, और गोपनीयता उल्लंघन जैसी समस्याएं बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।
  • बाल चिकित्सकों का दृष्टिकोण: मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए प्रतिबंध की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है।

नई दिल्ली/लखनऊ, 30 नवंबर 2024: डिजिटल युग ने न केवल वयस्कों बल्कि बच्चों की जीवनशैली और सोच को भी गहराई से प्रभावित किया है। सोशल मीडिया, जो शुरुआत में संचार का एक माध्यम था, अब बच्चों के मनोरंजन, शिक्षा और सामाजिक जुड़ाव का प्राथमिक स्रोत बन चुका है। हालांकि, इसके अंधाधुंध उपयोग ने बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालना शुरू कर दिया है।

भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, जहां इंटरनेट और स्मार्टफोन की पहुंच तेजी से बढ़ी है, बच्चों का सोशल मीडिया पर समय बिताना एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया, चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने बच्चों पर सोशल मीडिया उपयोग को सीमित करने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। ऐसे में यह सवाल प्रासंगिक है कि क्या भारत में भी इस तरह के प्रतिबंधों और नीतियों की आवश्यकता है ?

Table of Contents

भारत में सोशल मीडिया उपयोग का मौजूदा परिदृश्य

किशोरों और बच्चों में सोशल मीडिया की लोकप्रियता:

  • लोकप्रिय प्लेटफॉर्म: इंस्टाग्राम, यूट्यूब, स्नैपचैट, फेसबुक, और हाल ही में टिकटॉक जैसे ऐप (भारत में प्रतिबंधित होने से पहले)।
  • उपयोग के आंकड़े:
    • जून 2024 तक भारत में 485 मिलियन सक्रिय सोशल मीडिया उपयोगकर्ता थे।
    • इनमें से लगभग 20% उपयोगकर्ता 18 साल से कम आयु के हैं।
  • औसत स्क्रीन टाइम:
    • 16 वर्ष से कम आयु के बच्चे प्रतिदिन औसतन 3-4 घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं।
    • शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा और अधिक है।

जानें, इस मामले में विशेषज्ञों की क्या राय है?

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डॉ.सिंह ने आस्ट्रेलिया के नए प्रस्तावित सोशल मीडिया आयु प्रतिबंध और संबंधित कानून की गिनाई खूबियाँ

ऑस्ट्रेलिया में प्रस्तावित नए सोशल मीडिया कानून बच्चों और किशोरों को ऑनलाइन खतरों से बचाने के लिए आयु सत्यापन और सामग्री प्रतिबंधों को अनिवार्य करेंगे।

प्रमुख प्रावधान:

1. आयु सत्यापन:

  • 13 वर्ष से कम आयु के बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखा जाएगा।
  • 13-17 वर्ष के किशोरों को आयु-उपयुक्त सामग्री और कड़ी निगरानी के तहत पहुंच दी जाएगी।
  • 18+ उपयोगकर्ताओं को पूरी पहुंच होगी, लेकिन बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी।

2. जुर्माना: अनुपालन न करने पर सोशल मीडिया कंपनियों को भारी जुर्माना लगेगा।

फायदे:

  • बच्चों और किशोरों को हानिकारक सामग्री और साइबर बुलिंग से बचाव।
  • सोशल मीडिया कंपनियों की जवाबदेही बढ़ेगी।
  • माता-पिता को बच्चों की ऑनलाइन गतिविधि नियंत्रित करने में मदद।
  • वैश्विक स्तर पर बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा में नेतृत्व।

ये कानून बच्चों को सुरक्षित डिजिटल अनुभव प्रदान करते हुए प्रौद्योगिकी और सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करेंगे।

देश के वरिष्ठ पत्रकार व भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सदस्य की प्रतिक्रिया

इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर जब truenewsup.com के संस्थापक एवं मुख्य संपादक शिवसागर सिंह चौहान ने देश के जाने माने एवं वरिष्ठ पत्रकार डॉ .रमेश ठाकुर जी से बात की तो उनका भी यही पक्ष था और उन्होंने आस्ट्रेलिया के इस फैसले का स्वागत किया और भारत के लिए भी उतना ही उपयोगी बताया, दरअसल वरिष्ठ पत्रकार रमेश ठाकुर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार में नामित सदस्य भी हैं, जो खासतौर से बच्चों के कल्याण के लिए ही काम करती है। इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर श्री ठाकुर का साफ़तौर से यही कहना है कि वो खुद केंद्र सरकार से कई सालों से इस फैसले की मांग कर रहे हैं कि देश के युवाओं को मजबूत दिशा-दशा देने के लिए कम से कम 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया, एंड्रॉयड फोन जैसी वस्तुओं से पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए। तभी हमारे देश का युवा अपने उज्ज्वल भविष्य की तरफ अग्रसर होगा।

बच्चों के मानसिक विकास को लेकर लखनऊ के सुप्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. मनु लाल की प्रतिक्रिया

उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ के सुप्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ.मनु लाल ने एक तरफ जहां ऑस्ट्रेलिया द्वारा 16 साल से कम उम्र के बच्चों पर सोशल मीडिया प्रतिबंध को सकारात्मक कदम बताया, उन्होंने कहा कि यह बच्चों के मानसिक विकास और स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग बच्चों में आत्म-सम्मान की कमी, लत, और शारीरिक गतिविधियों में गिरावट का कारण बनता है।

तो वहीं दूसरी तरफ डॉ.मनु लाल ने कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को बच्चों के लिए डिजिटल एजुकेशन की दृष्टि से उपयोगी भी बताया। डॉ. मनु लाल ने कहा कि सोशल मीडिया के कुछ प्लेटफॉर्म से बच्चों को पढ़ाई से संबंधित सामग्री प्राप्त होती है। ऐसे में इन प्लेटफॉर्म्स को चिन्हित करते हुए शेष सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से एक निश्चित उम्र सीमा तक के बच्चों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। इससे न केवल उनका मानसिक विकास होगा, बल्कि इसके सकारात्मक प्रभाव भी जल्द दिखने लगेंगे।

उन्होंने भारत में इस तरह के प्रभावी कानून बनाए जाने की आवश्यकता पर जोर तो दिया। लेकिन इसके साथ ही, उन्होंने कहा कि इन सबके बीच जो बात सबसे जरूरी है वह है “माता-पिता का जागरूक होना” क्योंकि अगर बच्चों के माता-पिता खुद सोशल मीडिया की लत से दूर रहेंगे, तभी बच्चों में भी बदलाव देखने को मिलेगा अन्यथा पेरेंट्स की जागरूकता के बिना इस मामले पर कोई फायदा नहीं होगा।

सोशल मीडिया प्रतिबंध” पर दिलीप यशवर्धन का बयान

प्रसिद्ध राजनीतिक विश्लेषक दिलीप यशवर्धन ने ऑस्ट्रेलिया के 16 साल से कम उम्र के बच्चों पर सोशल मीडिया प्रतिबंध को एक सराहनीय कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और पढ़ाई में सुधार के लिए जरूरी है।

उन्होंने सुझाव दिया कि “भारत में भी मनोरंजन वाले ऐप्स और मुख्यत जिन ऐप्स से जुएँ की प्रवर्ती जन्म लेती है जिनका प्रचार नामचीन लोगो द्वारा भी किया जाता है पर प्रतिबंध लगाकर शिक्षा आधारित प्लेटफॉर्म को जारी रखना चाहिए। साथ ही, सोशल मीडिया के राजनीतिक और सामाजिक उपयोग को ध्यान में रखते हुए ठोस नीतियां बनानी होंगी।”

श्री यशवर्धन ने भी बच्चों के माता-पिता की भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि उनकी जागरूकता बच्चों में डिजिटल आदतों को सुधारने में मददगार होगी। उन्होंने इसे बच्चों के भविष्य और समाज के हित में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

सोशल मीडिया प्रतिबंध पर एक नजर “डॉ. पीयूष शुक्ला” की

लखनऊ के सुप्रसिद्ध होम्योपैथी चिकित्सक डॉ. पीयूष शुक्ला ने ऑस्ट्रेलिया द्वारा 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध को एक सही कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।

डॉ. शुक्ला ने कहा, “सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग बच्चों में तनाव, चिंता और नींद की समस्या जैसी मानसिक बीमारियों को बढ़ावा दे सकता है। जब तक बच्चे मानसिक रूप से मजबूत नहीं होते, उन्हें इन प्लेटफॉर्म्स से दूर रखना उनकी भलाई के लिए सही रहेगा।”

उन्होंने भारत में इस तरह के कदम को लागू करने की आवश्यकता जताई और माता-पिता से अपील की कि वे अपने बच्चों को सोशल मीडिया के सही उपयोग के लिए जागरूक करें। उनके अनुसार, “माता-पिता का ध्यान और जिम्मेदारी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए अहम है। साथ ही, बच्चों की भी जिम्मेदारी है कि वे स्वयं को किस ओर मोड़ना चाहते हैं और अपनी डिजिटल आदतों का सही दिशा में उपयोग करें क्योंकि कहीं न कहीं एक उम्र के बाद डिजिटल इंडिया के लिए सोशल मीडिया के कुछ ऐप एजूकेशन के लिए महत्वपूर्ण भी साबित हो रहे हैं।”

16 साल के बच्चे की प्रतिक्रिया

लखनऊ के 16 वर्षीय आदित्य (परिवर्तित नाम) ने ऑस्ट्रेलिया के इस फैसले पर अपनी राय देते हुए कहा,
“सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाना पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि इससे हमें पढ़ाई और प्रोजेक्ट्स के लिए काफी मदद मिलती है। लेकिन मैं मानता हूं कि इसका जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हमारी पढ़ाई और दिमाग पर बुरा असर डालता है। अगर सरकार सिर्फ मनोरंजन और जुएं वाले ऐप्स को सीमित कर दे और पढ़ाई से जुड़े प्लेटफॉर्म्स चालू रखें, तो यह बेहतर होगा।”

आदित्य ने यह भी कहा कि सभी पेरेंट्स को बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर ध्यान देना चाहिए और खुद भी एक उदाहरण बनना चाहिए। उन्होंने कहा, “अगर माता-पिता सोशल मीडिया पर कम समय बिताएंगे, तो बच्चों पर भी इसका अच्छा असर पड़ेगा।”

जानें, क्या आकर्षित करता है बच्चों को सोशल मीडिया की ओर ?

  1. मनोरंजन:
    • छोटे-छोटे वीडियो, मीम्स, और इंटरएक्टिव कंटेंट।
  2. सामाजिक जुड़ाव:
    • दोस्तों और परिवार से जुड़े रहने का सरल माध्यम।
  3. शैक्षिक सामग्री:
    • यूट्यूब और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर शैक्षिक वीडियो।
  4. रचनात्मकता और आत्म-अभिव्यक्ति:
    • कला, संगीत और नृत्य जैसे हुनर को दिखाने का मंच।

सोशल मीडिया का प्रभाव: एक गहन दृष्टिकोण

सकारात्मक पहलू:

  1. शिक्षा में सहायक:
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म बच्चों को विभिन्न विषयों में विशेषज्ञता हासिल करने का मौका देते हैं।
    • ट्यूटोरियल, ऑनलाइन कोर्स, और शैक्षिक एप्स का बढ़ता उपयोग।
  2. रचनात्मकता को बढ़ावा:
    • बच्चों को अपने विचारों और रचनात्मक कौशल को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने का मंच मिलता है।
    • कई किशोर सोशल मीडिया के माध्यम से करियर बनाने की कोशिश करते हैं।
  3. सामाजिक जुड़ाव:
    • बच्चों को अलग-अलग संस्कृतियों और विचारों को जानने का मौका मिलता है।
    • वे नई भाषाओं और कौशलों को सीखते हैं।

नकारात्मक पहलू:

  1. साइबर बुलिंग और ट्रोलिंग:
    • सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणियां और साइबर धमकी बच्चों के आत्मविश्वास को बुरी तरह प्रभावित करती हैं।
  2. अनुचित सामग्री तक पहुंच:
    • बच्चों के लिए अनुपयुक्त अश्लील सामग्री और हिंसा से संबंधित वीडियो आसानी से उपलब्ध हैं।
  3. डिजिटल लत:
    • अधिक समय तक स्क्रीन पर रहने से पढ़ाई, खेलकूद और सामाजिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं।
  4. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य:
    • लंबे समय तक स्क्रीन देखने से आंखों और रीढ़ की हड्डी की समस्याएं होती हैं।
    • सोशल मीडिया पर प्रचारित असली से दूर “परफेक्ट लाइफ” के मानकों से बच्चे हीन भावना का शिकार हो सकते हैं।
  5. डेटा गोपनीयता का खतरा:
    • सोशल मीडिया कंपनियां बच्चों की निजी जानकारी का दुरुपयोग कर सकती हैं।

विश्व के अन्य देशों के प्रयास

ऑस्ट्रेलिया:

  • 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया है।
  • सोशल मीडिया कंपनियों को बच्चों का डेटा इकट्ठा करने से रोक दिया गया है।
  • माता-पिता की निगरानी और शिक्षकों की भूमिका को मजबूत किया गया है।

चीन:

  • 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेमिंग के उपयोग पर समय सीमा तय है।
  • सरकारी नियमों के तहत बच्चे केवल सप्ताहांत पर ऑनलाइन गेम खेल सकते हैं।

दक्षिण कोरिया:

  • बच्चों के लिए ऑनलाइन कंटेंट को फ़िल्टर करने के सख्त नियम।
  • माता-पिता को बच्चों के डिजिटल उपयोग की निगरानी के लिए प्रेरित किया गया है।

यूनाइटेड किंगडम:

  • बच्चों की गोपनीयता और सुरक्षा के लिए सख्त डिजिटल नीति लागू की गई है।
  • सोशल मीडिया कंपनियों को बच्चों की जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बाध्य किया गया है।

क्या भारत में भी उम्र के मुताबिक सोशल मीडिया प्रतिबंध की आवश्यकता है ?

फायदे:

  1. मानसिक स्वास्थ्य:
    • सोशल मीडिया से दूरी अवसाद, चिंता और आत्मविश्वास की कमी जैसी समस्याओं को कम करेगी।
  2. शारीरिक स्वास्थ्य:
    • स्क्रीन टाइम कम होने से बच्चे खेलकूद और अन्य शारीरिक गतिविधियों में शामिल हो सकेंगे।
  3. शैक्षिक प्रदर्शन में सुधार:
    • पढ़ाई पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का मौका मिलेगा।
  4. साइबर अपराध से बचाव:
    • बच्चों को साइबर बुलिंग और अनुचित सामग्री से बचाया जा सकेगा।

चुनौतियां:

  1. डिजिटल साक्षरता में कमी:
    • बच्चों का डिजिटल तकनीक से संपर्क कम हो सकता है।
  2. सामाजिक अलगाव:
    • दोस्त और रिश्तेदारों से जुड़े रहने का प्रमुख माध्यम समाप्त हो सकता है।
  3. रचनात्मकता का अवरोध:
    • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बच्चों की कला और हुनर को दिखाने का बड़ा मंच है।

समाधान और सिफारिशें

1. माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका:

  • बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर निगरानी।
  • समय सीमा तय करना और उपयोग के लिए नियम बनाना।
  • बच्चों को ऑफलाइन गतिविधियों में शामिल करना।

2. सख्त कानूनी कदम:

  • सोशल मीडिया कंपनियों पर आयु सत्यापन प्रणाली लागू करना।
  • बच्चों के डेटा संग्रह और विज्ञापनों पर प्रतिबंध।

3. जागरूकता अभियान:

  • बच्चों और अभिभावकों को सोशल मीडिया के सुरक्षित उपयोग के प्रति जागरूक करना।
  • स्कूलों में डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना।

4. वैकल्पिक मंच:

  • बच्चों के लिए सुरक्षित और शैक्षिक कंटेंट वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करना।

भारत में 16 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग को सीमित करना एक चुनौतीपूर्ण लेकिन आवश्यक कदम हो सकता है। हालांकि, पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के बजाय, बच्चों को डिजिटल दुनिया के सुरक्षित और संतुलित उपयोग के लिए प्रशिक्षित करना बेहतर विकल्प होगा।

सरकार, अभिभावक, और शिक्षकों को मिलकर काम करना होगा ताकि सोशल मीडिया बच्चों के लिए एक वरदान साबित हो, न कि अभिशाप। “सोशल मीडिया का विवेकपूर्ण उपयोग ही बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कुंजी है।”

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