
- लोकमाता अहिल्याबाई होलकर ने विधवाओं और सैनिकों के परिवारों के लिए साड़ी उद्योग स्थापित किया।
- 501 बालिकाओं ने लोकमाता की वेशभूषा धारण कर उनकी विरासत को जीवंत किया।
- “समरसता पाथेय” और “अहिल्याबाई होलकर” पुस्तकों का विमोचन किया गया।
- प्रदर्शनी और नाटक के माध्यम से लोकमाता के जीवन की झलक प्रस्तुत की गई।
- कार्यक्रम में यूपी के उप मुख्यमंत्री सहित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित रहे।

लखनऊ, 24 नवम्बर 2024: लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के जीवन और योगदान को समर्पित ‘पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी समारोह’ का आयोजन रविवार को सीएमएस गोमतीनगर विस्तार, निकट शहीद पथ में किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अवध प्रान्त इकाई द्वारा आयोजित इस भव्य समारोह में संघ के सह सरकार्यवाह आलोक कुमार मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। उन्होंने लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन से प्रेरणा लेकर समाज में बदलाव और समरसता लाने का आह्वान किया।
आलोक कुमार का संबोधन: अहिल्याबाई के जीवन से प्रेरणा लें

अपने उद्घाटन भाषण में आलोक कुमार ने भारत माता को नमन करते हुए लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन को आज के समय के लिए प्रासंगिक बताया। उन्होंने कहा, “लोकमाता अहिल्याबाई ने पूर्वाग्रहों को त्यागकर सादगी और समर्पण के साथ शासन किया। उन्होंने न केवल युद्ध में बलिदान हुए सैनिकों की विधवाओं के लिए साड़ी उद्योग स्थापित किया, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी कई योजनाएं शुरू कीं। उनकी दूरदर्शिता और समर्पण हमें सिखाते हैं कि सादगी और सेवा से बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं।”

आलोक कुमार ने आगे कहा कि लोकमाता ने धर्म, समाज और शासन के बीच संतुलन बनाते हुए न केवल मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया बल्कि किसानों और समाज के हर वर्ग के हित में काम किया। उनके जीवन से मिली शिक्षा को अगली पीढ़ी तक पहुंचाना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।
लोकमाता अहिल्याबाई का आदर्श शासन

कार्यक्रम में लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी समारोह की केंद्रीय समिति की सचिव डॉ. माला ठाकुर ने कहा, “अहिल्याबाई का शासन समाज के हर वर्ग, विशेष रूप से भूमिहीन किसानों, जनजातीय समूहों और विधवाओं के हितों की रक्षा के लिए समर्पित था। उनके समय में समाज सुधार, कृषि सुधार, जल प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया। उनका शासन न्याय और समरसता का प्रतीक था।”

डॉ. माला ने यह भी बताया कि अहिल्याबाई ने न केवल महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया बल्कि समाज के भिन्न वर्गों को एक साथ लेकर चलने का उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि आज जब समाज जाति, भाषा और क्षेत्र के आधार पर बंट रहा है, तब हमें लोकमाता के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए और सामाजिक समरसता के लिए काम करना चाहिए।
कार्यक्रम की झलकियां: संस्कृति और समरसता का संगम

1.501 बालिकाओं की विशेष प्रस्तुति
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण 501 बालिकाओं की लोकमाता अहिल्याबाई की वेशभूषा में प्रस्तुति रही। इन बालिकाओं ने धवल वस्त्र, माथे पर त्रिपुंड, हाथ में शिवलिंग और सिर पर साफा बांधकर एक वीरोचित छवि प्रस्तुत की। इनमें से 10 बालिकाओं को विशेष रूप से पुरस्कृत किया गया।
2. नाटक और डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन
लोकमाता के जीवन पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री और नाटक का मंचन किया गया। इस नाटक में उनकी दूरदर्शिता, सादगी और समर्पण को जीवंत रूप से प्रस्तुत किया गया। दर्शकों ने इस भावपूर्ण प्रस्तुति की भूरी-भूरी प्रशंसा की।
3. पुस्तकों का विमोचन
समारोह में “समरसता पाथेय” और “अहिल्याबाई होलकर” नामक दो पुस्तकों का विमोचन किया गया। “समरसता पाथेय” का संपादन बृजनंदन राजू ने किया है, जबकि “अहिल्याबाई होलकर” गरिमा मिश्रा द्वारा लिखी गई है।
4. प्रदर्शनी और रंगोली का आकर्षण
आयोजन स्थल पर लोकमाता के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती एक प्रदर्शनी भी लगाई गई। इसके अलावा, रंगोली और पुष्प सजावट ने माहौल को और आकर्षक बना दिया। प्रदर्शनी में महिला सैनिकों के समर्पण और समरसता को विशेष रूप से प्रदर्शित किया गया।
5. विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति
कार्यक्रम में यूपी के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक अनिल जी, अवध प्रान्त के प्रान्त प्रचारक कौशल जी, वरिष्ठ प्रचारक वीरेंद्र जी, और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
अहिल्याबाई का संदेश: सामाजिक समरसता और सशक्तिकरण

कार्यक्रम के अध्यक्षीय भाषण में लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के वंशज उदयराजे होलकर ने कहा कि अहिल्याबाई ने अपने शासन के दौरान धार्मिक कार्यों के साथ समाज सुधार का भी कार्य किया। वह समाज के हर वर्ग के प्रति समर्पित थीं और उनकी न्यायप्रियता पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
बावन मंदिर अयोध्या धाम के पीठाधीश्वर महंत बैदेही बल्लभ शरण जी महाराज ने कहा कि अहिल्याबाई केवल एक शासक नहीं थीं, बल्कि एक राजयोगिनी थीं। उन्होंने धर्म के साथ समाज की समस्याओं का चिंतन करते हुए हर वर्ग के लिए कार्य किया।
समारोह का समापन और संदेश

कार्यक्रम के संयोजक राजकिशोर जी ने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई का जीवन भारतीय इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। उनका जीवन यह सिखाता है कि समर्पण और सादगी से एक सामान्य व्यक्ति भी असाधारण कार्य कर सकता है। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हमें समाज में सामाजिक समरसता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन राष्ट्र सेविका समिति की प्रान्त कार्यवाहिका यशोधरा जी ने किया, जबकि आभार प्रदर्शन प्रशांत भाटिया ने किया। आयोजन में 500 से अधिक स्वयंसेवकों ने विभिन्न व्यवस्थाओं में सेवा दी।


































