
लखनऊ: करवा चौथ भारत के सबसे प्रमुख और लोकप्रिय व्रतों में से एक है, जिसे सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना के लिए करती हैं। इस दिन महिलाएं दिनभर निर्जल व्रत रखती हैं और रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद अपना व्रत तोड़ती हैं। करवा चौथ का व्रत न केवल पति-पत्नी के प्रेम को दर्शाता है बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं में इसका विशेष महत्व है।
करवा चौथ का इतिहास और परंपरा

करवा चौथ व्रत की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। कहा जाता है कि इस व्रत की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। यह व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है, लेकिन अब पूरे देश में इसे धूमधाम से मनाया जाता है। करवा चौथ में ‘करवा’ का अर्थ होता है मिट्टी का बर्तन, जो इस दिन पूजा के लिए आवश्यक सामग्री के रूप में प्रयोग होता है, और ‘चौथ’ का मतलब है चौथा दिन, जो कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आता है।
प्राचीन कथा के अनुसार, वीरवती नामक एक सुहागिन ने करवा चौथ का व्रत रखा था। उसकी सच्ची श्रद्धा और भक्ति से भगवान शिव ने उसके पति को पुनर्जीवित कर दिया। तब से इस व्रत को हर सुहागिन महिला के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
कौन सी महिलाएं करवा चौथ का व्रत रख सकती हैं?

- सुहागिन महिलाएं:
करवा चौथ का व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा रखा जाता है, जो अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं। - सगाई कर चुकी महिलाएं:
आजकल कई जगहों पर सगाई कर चुकी महिलाएं भी यह व्रत रखती हैं, ताकि उनका वैवाहिक जीवन सुखमय रहे। - विधवा महिलाएं:
परंपरागत रूप से विधवा महिलाएं करवा चौथ का व्रत नहीं रखती हैं, क्योंकि इस व्रत का संबंध पति की लंबी उम्र से है। - पुरुषों के लिए करवा चौथ:
हालांकि यह व्रत मुख्यतः महिलाओं का है, लेकिन कुछ जगहों पर पुरुष भी अपनी पत्नियों के लिए इस व्रत को रखते हैं।
करवा चौथ के नियम

करवा चौथ के व्रत को सही तरीके से करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है। ये नियम इस व्रत की पवित्रता और धार्मिक महत्ता को बनाए रखने के लिए होते हैं:
- निर्जल व्रत:
इस दिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर चंद्रमा के दर्शन तक कुछ भी नहीं खाती-पीती हैं। इसे निर्जल व्रत कहा जाता है। - व्रत के दौरान पूजा:
इस दिन महिलाएं करवा चौथ की कथा सुनती हैं और करवा चौथ की विशेष पूजा करती हैं। कथा सुनना और पूजा करना व्रत की सफलता के लिए आवश्यक होता है। - चंद्रमा के दर्शन:
चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोला जाता है। इसके लिए महिलाएं छलनी के माध्यम से चंद्रमा और फिर अपने पति को देखती हैं। - सुहाग का सामान पहनना:
व्रत रखने वाली महिलाएं अपने सुहाग का प्रतीक लाल, पीला या हरा रंग पहनती हैं। इसके अलावा, सिंदूर, चूड़ी, बिंदी और मंगलसूत्र धारण करना अनिवार्य माना जाता है।
व्रत के दौरान क्या खाना चाहिए?

हालांकि करवा चौथ का व्रत निर्जल होता है, लेकिन व्रत से पहले और बाद में भोजन का भी विशेष महत्व है।
- सरगी:
करवा चौथ की सुबह सास अपनी बहू को ‘सरगी’ देती है। इसमें ताजे फल, मिठाई, मेवे और नारियल होते हैं, जिसे व्रत से पहले सूर्योदय के समय खाया जाता है। सरगी से दिनभर के लिए ऊर्जा मिलती है। - व्रत तोड़ने के बाद:
चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद महिलाएं व्रत खोलती हैं। व्रत तोड़ने के बाद हल्का और सुपाच्य भोजन करना चाहिए, जैसे फल, खिचड़ी, या हलवा।
करवा चौथ पूजा के लिए आवश्यक सामग्री

करवा चौथ की पूजा के लिए कुछ विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है, जिनका धार्मिक और पारंपरिक महत्व होता है:
- करवा (मिट्टी का बर्तन):
करवा चौथ में करवा का विशेष स्थान होता है। इसमें जल भरकर चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। - दीया (तेल का दीपक):
पूजा के दौरान दीया जलाया जाता है, जो दिव्यता का प्रतीक है। - धूप और अगरबत्ती:
पूजा के समय धूप और अगरबत्ती जलाकर भगवान को समर्पित किया जाता है। - रोली, चावल:
करवा चौथ की पूजा के लिए रोली और अक्षत का उपयोग किया जाता है। इसे पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए प्रयोग किया जाता है। - सिंदूर:
सिंदूर सुहागिन महिलाओं का प्रतीक होता है और इसे करवा चौथ पूजा में अनिवार्य माना जाता है। - जल:
करवा में जल भरकर चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। - मिठाई:
पूजा के बाद प्रसाद के रूप में मिठाई का सेवन किया जाता है।
करवा चौथ पूजा विधि

करवा चौथ की पूजा की प्रक्रिया को विधिवत तरीके से करना चाहिए ताकि व्रत की सफलता प्राप्त हो सके। यहां पूजा विधि का चरणबद्ध विवरण दिया गया है:
- सरगी खाकर व्रत की शुरुआत:
सूर्योदय से पहले ‘सरगी’ का सेवन कर व्रत की शुरुआत की जाती है। सरगी में सास द्वारा दिया गया भोजन, फल, मिठाई और अन्य पौष्टिक आहार होते हैं। - सोलह श्रृंगार और व्रत की तैयारी:
महिलाएं इस दिन विशेष श्रृंगार करती हैं जिसे ‘सोलह श्रृंगार’ कहा जाता है। इसमें चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर, मंगलसूत्र, महेंदी आदि का प्रयोग किया जाता है। - करवा चौथ कथा:
दिन में या शाम के समय महिलाएं समूह में बैठकर करवा चौथ की कथा सुनती हैं। यह कथा पति-पत्नी के प्रेम और उनकी लंबी उम्र की कामना का प्रतीक होती है। - चंद्रमा को अर्घ्य देना:
रात को चंद्रमा के दर्शन होने के बाद, महिलाएं छलनी से चंद्रमा और फिर अपने पति को देखती हैं। इसके बाद करवा में जल भरकर चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। - पति के हाथ से व्रत खोलना:
चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद महिलाएं अपने पति के हाथ से पानी पीकर या मिठाई खाकर अपना व्रत तोड़ती हैं।
करवा चौथ के महत्त्वपूर्ण फायदे

- पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है:
करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के प्रेम को और मजबूत करता है। यह उनके रिश्ते में स्थायित्व और आपसी विश्वास को बढ़ाता है। - धार्मिक महत्त्व:
यह व्रत धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति की उम्र लंबी होती है और उसका स्वास्थ्य अच्छा रहता है। - समाज में प्रतिष्ठा:
करवा चौथ का व्रत करने से महिलाओं को समाज में विशेष सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है। इसे सुहागिन महिलाओं के प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। करवा चौथ का व्रत भारतीय संस्कृति और परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न केवल पति-पत्नी के रिश्ते को और मजबूत करता है, बल्कि धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी इसे विशेष स्थान प्राप्त है। इस दिन का महत्त्व सिर्फ पूजा और व्रत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रेम, समर्पण, और आस्था का पर्व है, जो सदियों से भारतीय समाज में मनाया जा रहा है।


































