भारत में कई आम इंफेक्शन जैसे UTI, निमोनिया, सेप्सिस और डायरिया का इलाज अब पहले जैसा आसान नहीं रहा है. अस्पतालों में मिलने वाले बैक्टीरिया पर असर करने वाली दवाएं तेजी से कमजोर पड़ रही हैं. यह तस्वीर ICMR की 2024 की AMR Surveillance Report ने साफ-साफ दिखा दी है. रिपोर्ट में देश के बड़े अस्पतालों से जुटाए लगभग एक लाख मरीजों के सैंपल का एनालिसिस शामिल है. इसमें सामने आया कि सबसे ज्यादा खतरा ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया से है, जो अब कई मजबूत एंटीबायोटिक तक को मात दे रहे हैं.
सबसे आम इंफेक्शन देने वाला E. coli पहले ही कई दवाओं पर रेसिस्टेंस दिखा चुका है. वहीं क्लेबसिएला न्यूमोनिया, जो निमोनिया और सेप्सिस का बड़ा कारण है, तीन-चौथाई मामलों में पाइपेरासिलिन-टैजोबैक्टम जैसी दवा को भी बेअसर कर देता है. कार्बापेनेम जैसी ‘लास्ट-लाइन’ एंटीबायोटिक पर भी इसका असर लगातार घट रहा है, जिससे मरीजों के इलाज के विकल्प बहुत कम रह जाते हैं. सबसे चिंताजनक हालात ICU में दिखे. यहां मिलने वाला एसिनेटोबैक्टर बाउमन्नी मेरोपेनम जैसी मजबूत दवा के प्रति 91 प्रतिशत तक रेसिस्टेंट पाया गया. ऐसे मामलों में डॉक्टरों को मजबूरी में ज्यादा टॉक्सिक और मुश्किल दवा-कॉम्बिनेशन का सहारा लेना पड़ रहा है. स्यूडोमोनास एरुगिनोसा की रेसिस्टेंस भी लगातार बढ़ रही है, जिससे वेंटिलेटर-असोसिएटेड निमोनिया का इलाज और मुश्किल हो रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक
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- 72 प्रतिशत ब्लडस्ट्रीम इंफेक्शन ऐसे बैक्टीरिया से हुए जो आम दवाओं पर असर नहीं दिखाते.
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- वेंटिलेटर से जुड़े ज्यादातर निमोनिया मामलों में एसिनेटोबैक्टर, क्लेबसिएला और स्यूडोमोनास जिम्मेदार रहे.
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- डायरिया पैदा करने वाले कई रोगाणु फ्लुओरोक्विनोलोन और सेफालोस्पोरिन जैसी लोकप्रिय दवाओं पर भी रेसिस्टेंट मिले.
कुछ जगह हल्की सुधार की उम्मीद जरूर दिखी है, जैसे E. coli में अमिकासिन और कुछ सेफलोस्पोरिन के प्रति बेहतर प्रतिक्रिया मिली है, लेकिन कुल मिलाकर तस्वीर और भी गंभीर होती जा रही है. फंगल इंफेक्शन में भी खतरा बढ़ रहा है. कैंडिडा औरिस लगभग 10 प्रतिशत मामलों में दवाओं के सामने टिका रहा, जबकि एस्परगिलस के करीब एक-तिहाई सैंपल Amphotericin B जैसी महत्वपूर्ण दवा के प्रति रेसिस्टेंट पाए गए. ICMR ने कहा कि यह डेटा अस्पतालों के इंफेक्शन का है, आम समुदाय की तस्वीर इससे अलग हो सकती है. फिर भी एक्सपर्ट्स के मुताबिक संकेत बेहद साफ हैं कि भारत में रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली एंटीबायोटिक दवाएं अपनी क्षमता खो रही हैं, और गंभीर मरीज इसका सीधा असर झेल रहे हैं.
सुपरबग्स क्या होते हैं?
सुपरबग्स ऐसे बैक्टीरिया हैं जो कई तरह की एंटीबायोटिक दवाओं के सामने टिक जाते हैं. जब किसी मरीज में इनकी वजह से इंफेक्शन होता है तो सामान्य दवाएं असर नहीं करतीं. इसी कारण इलाज लंबा खिंच जाता है और बीमारी को नियंत्रित करना भी मुश्किल हो जाता है.
भारत में दिखने वाले प्रमुख सुपरबग्स
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- मेथिसिलिन-रेसिस्टेंट स्टैफिलोकोकस ऑरियस
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- ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी
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- कार्बापेनेम-रेसिस्टेंट एंटरोबैक्टीरिएसी
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- वैनकोमाइसिन-रेसिस्टेंट एंटरोकॉकस
ये बैक्टीरिया कई दवाओं पर प्रतिक्रिया नहीं देते, इसलिए डॉक्टरों के लिए सही इलाज चुनना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है.
Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


































