अक्सर लोग इस बात पर ध्यान ही नहीं देते कि वे सुबह जाते हैं या शाम को, लेकिन पॉटी की टाइमिंग आपके पेट, इंटेस्टाइन और मेटाबॉलिज्म की हालत के बारे में बहुत कुछ बताती है. हमारा पाचन तंत्र भी 24 घंटे की एक सर्कैडियन रिद्म पर चलता है, ठीक उसी तरह जैसे नींद, भूख, हार्मोन और बॉडी क्लॉक काम करते हैं. यही वजह है कि ज्यादातर लोग सुबह उठने के कुछ समय बाद ही फ्रेश होने जाते हैं, क्योंकि उस समय कोलन सबसे ज्यादा सक्रिय रहता है.
लेकिन अगर कोई व्यक्ति रोज शाम को या कभी भी अनियमित समय पर पॉटी जाता है, तो ये अक्सर इस बात का संकेत होता है कि उसकी बॉडी क्लॉक, तनाव का स्तर या खाने-पीने की आदतें बदल गई हैं. टाइमिंग पर ध्यान देने से आप बिना किसी झिझक के अपने मेटाबॉलिक हेल्थ की कई छोटी लेकिन अहम बातें समझ सकते हैं. चलिए आपको बताते हैं कि इससे कौन-कौन सी चीजें पता चलती हैं.
सुबह पॉटी क्यों पसंद करती है बॉडी?
आपको बता दें कि पेट और कोलन का मूवमेंट पूरे दिन एक जैसा नहीं रहता. सुबह उठने के बाद इसकी एक्टिविटी सबसे ज्यादा होती है. रिसर्च बताते हैं कि कोलन की मोटिलिटी का खुद का सर्कैडियन रिद्म होता है, जो दिन में तेज और रात में धीमा पड़ जाता है. चूहों पर किए गए कई स्टडीज में पाया गया कि अगर खास क्लॉक जीन जैसे Per1 और Per2 हटा दिए जाएं, तो पॉटी का रिद्म पूरी तरह बिगड़ जाता है. इसके अलावा, सुबह उठकर खाना खाने से गैस्ट्रोकोलिक रिफ्लेक्स एक्टिव होता है, जो कोलन को सिग्नल देता है कि वह कंटेंट को आगे बढ़ाए. इन्हीं कारणों से सुबह पॉटी आना इस बात का संकेत है कि आपकी बॉडी और गट क्लॉक एक-दूसरे के साथ तालमेल में काम कर रही हैं.
शाम को पॉटी आने का क्या मतलब?
अगर किसी व्यक्ति की पॉटी रोज शाम को ही आती है, तो इसका मतलब हो सकता है कि उसकी बॉडी क्लॉक शिफ्ट हो गई है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि रात के समय कोलन का मूवमेंट काफी धीमा हो जाता है. अगर पाचन गतिविधि शाम को तेज होने लगती है, तो इसके पीछे लेट-नाइट खाना, शिफ्ट वर्क, या अनियमित नींद जैसी चीजें हो सकती हैं. खाना भी शरीर की इंटरनल क्लॉक को सेट करने वाला बड़ा संकेत होता है, इसलिए देर से खाने की आदत गट की रिद्म को बिगाड़ देती है. इसका मतलब है, शाम को पॉटी आना सिर्फ लेट डाइजेशन नहीं, बल्कि मेटाबॉलिक रिद्म के गड़बड़ होने का संकेत भी हो सकता है.
पॉटी टाइमिंग और मेटाबॉलिज्म का कनेक्शन
इंटेस्टाइन और मेटाबॉलिज्म दोनों ही बॉडी क्लॉक से जुड़े हैं. अगर नींद, खाना या रूटीन गड़बड़ हो जाए, तो इससे न सिर्फ कोलन की गति बदलती है, बल्कि शरीर में शुगर कंट्रोल, फैट मेटाबॉलिज्म जैसे काम भी प्रभावित होते हैं. इसी वजह से नियमित सुबह की पॉटी अक्सर एक सिंक्रोनाइज्ड मेटाबॉलिस्म का संकेत होती है, जबकि शाम या अनियमित टाइमिंग किसी रिद्म शिफ्ट की ओर इशारा कर सकती है.
कब यह टाइमिंग चिंता का कारण?
अगर अचानक पॉटी का समय बदल जाए, और इसके साथ दर्द, खून, वजन घटना या लगातार पेट फूलना जैसी दिक्कतें शुरू हो जाएं, तो इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए. सर्कैडियन रिद्म में गड़बड़ी IBS या फंक्शनल कॉन्स्टिपेशन जैसी समस्याओं से भी जुड़ी मानी जाती है. कुछ दिनों तक टाइमिंग नोट करने से समस्या समझने में मदद मिलती है और सही समय पर डॉक्टर से सलाह ली जा सकती है.
Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


































