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विजयादशमी पर विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने किया शस्त्र पूजन : कहा – सच्चा क्षत्रिय वही जो राष्ट्र, धर्म और समाज के लिए जिए, ज्ञान और तकनीक हैं आज की सबसे बड़ी तलवारें, वैचारिक व डिजिटल हमलों से निपटने को समाज को रहना होगा एकजुट

विजयादशमी पर विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने किया शस्त्र पूजन : कहा – सच्चा क्षत्रिय वही जो राष्ट्र, धर्म और समाज के लिए जिए, ज्ञान और तकनीक हैं आज की सबसे बड़ी तलवारें, वैचारिक व डिजिटल हमलों से निपटने को समाज को रहना होगा एकजुट

लखनऊ। विजयादशमी का पर्व भारतीय संस्कृति में विजय, धर्म, और सत्य के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इसी पवित्र अवसर पर सरोजनीनगर के लोकप्रिय विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने वीरता, परंपरा और राष्ट्रभक्ति का संगम प्रस्तुत करते हुए गुरुवार को सिटी मॉन्टेसरी स्कूल, विशाल खंड, गोमतीनगर में आयोजित शस्त्र पूजन समारोह में हिस्सा लिया।
यह समारोह भारतीय क्षत्रिय समाज और लोक अधिकार मंच सिविल सोसायटी के तत्वावधान में बड़े ही भव्य और सांस्कृतिक रूप से गरिमामय वातावरण में आयोजित हुआ।

डॉ. सिंह ने परंपरागत वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच तलवार, धनुष-बाण, त्रिशूल और अन्य प्रतीकात्मक शस्त्रों का पूजन किया। समारोह स्थल पर उपस्थित सैकड़ों लोगों ने इस दृश्य को गर्व और श्रद्धा के भाव से देखा। यह आयोजन केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना को प्रबल करने वाला भी था।

संरक्षक के रूप में सम्मान : संगठन ने सौंपी बड़ी जिम्मेदारी

समारोह के दौरान भारतीय क्षत्रिय समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल सिंह गहलोत ने विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह को संगठन का संरक्षक (Patron) घोषित करते हुए सम्मानित किया।
उन्होंने कहा कि डॉ. सिंह के व्यक्तित्व में वैचारिक नेतृत्व, संगठन क्षमता और राष्ट्रसेवा का अद्भुत संतुलन है, जो युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत है।
इस अवसर पर डॉ. सिंह को अंगवस्त्र और स्मृति चिह्न भेंट कर अभिनंदन किया गया।

“सच्चा क्षत्रिय वही जो राष्ट्र और धर्म की रक्षा करे” – डॉ. सिंह

अपने विस्तृत संबोधन में डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा कि क्षत्रियत्व केवल तलवार चलाने या युद्ध लड़ने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक जीवन दर्शन है। उन्होंने कहा –

“सच्चा क्षत्रिय वह है जो अन्याय, अधर्म और भय के विरुद्ध खड़ा होता है। जो केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज, राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए जीवन समर्पित कर दे, वही सच्चे अर्थों में क्षत्रिय कहलाता है।” उन्होंने आगे कहा कि आज हर नागरिक को अपने भीतर के क्षत्रिय भाव को जाग्रत करना चाहिए। चाहे वह किसान हो, शिक्षक हो, व्यापारी या छात्र — जब वह सत्य, न्याय और राष्ट्रहित के लिए कार्य करता है, तो वह उसी परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है जिसने इस भूमि को ‘वीरों की धरती’ बनाया।

वर्तमान युग की चुनौतियाँ : सीमाओं से परे वैचारिक और मानसिक युद्ध

डॉ. सिंह ने कहा कि आज भारत को केवल सीमाओं पर पाकिस्तान और चीन जैसे शत्रुओं से नहीं, बल्कि वैचारिक, सांस्कृतिक और धार्मिक आक्रमणों से भी जूझना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा-

“कुछ शक्तियाँ भारत की आत्मा पर प्रहार कर रही हैं। वे हमारी संस्कृति, परंपरा, परिवार व्यवस्था और धार्मिक सहिष्णुता को तोड़ने की कोशिश कर रही हैं। धर्मांतरण, सांस्कृतिक विघटन और समाज में भ्रम फैलाना उनके हथियार हैं। ऐसे में हमें एकजुट होकर इस मानसिक और वैचारिक युद्ध का मुकाबला करना होगा।” उन्होंने यह भी कहा कि इस युद्ध में तलवार नहीं, बल्कि जागरूकता, शिक्षा और तकनीक ही हमारे असली शस्त्र हैं।

ज्ञान और तकनीक : आधुनिक युग की सबसे बड़ी तलवारें

डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा कि 21वीं सदी का रणक्षेत्र भले ही दिखने में शांत हो, परंतु असली युद्ध डिजिटल और वैचारिक क्षेत्र में लड़ा जा रहा है। उन्होंने बताया कि केवल वर्ष 2024 में भारत पर 20 लाख से अधिक साइबर हमले दर्ज किए गए, जिनमें रक्षा प्रतिष्ठान, परमाणु संयंत्र, परिवहन और स्वास्थ्य सेवाएँ भी निशाने पर रहीं।

“आज की सबसे बड़ी तलवारें हैं – ज्ञान और तकनीक। जो समाज तकनीक में पीछे रह जाएगा, वह आधुनिक युग के युद्ध में हार जाएगा,”
उन्होंने कहा। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे इंटरनेट, एआई और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में दक्षता हासिल करें। भारत को ‘सॉफ्ट पावर’ से लेकर ‘साइबर पावर’ तक बनाना युवाओं के ही हाथ में है।

युवा शक्ति और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में सरोजनीनगर की पहल

डॉ. सिंह ने कहा कि उनका संकल्प है कि सरोजनीनगर विधानसभा का हर युवा आत्मनिर्भर बने। उन्होंने कहा –

“युवा देश की सबसे बड़ी पूंजी हैं। उन्हें रोजगार के लिए शहरों या विदेशों की ओर पलायन न करना पड़े, इसके लिए अवसर उनके द्वार तक पहुँचाने होंगे।” उन्होंने बताया कि सरोजनीनगर क्षेत्र में डिजिटल शिक्षा, कौशल विकास केंद्र, महिला उद्यमिता कार्यक्रम और रोजगार सृजन योजनाएँ लगातार चलाई जा रही हैं। इन पहलों का उद्देश्य युवाओं को तकनीकी रूप से सक्षम बनाना और उन्हें स्थानीय स्तर पर आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है।

“एकता ही सबसे बड़ी शक्ति” : वैचारिक और डिजिटल हमलों के विरुद्ध सामूहिक जागरूकता पर जोर

डॉ. सिंह ने कहा कि जिस प्रकार महिषासुर के अत्याचार से देवी दुर्गा की सामूहिक शक्ति ने विजय प्राप्त की, उसी प्रकार आज भी समाज को बिखरने नहीं देना है। उन्होंने कहा कि –

“भारत का अस्तित्व केवल उसकी सीमाओं से नहीं, बल्कि उसके विचारों, संस्कृति और परंपराओं से है। हमें वैचारिक और डिजिटल हमलों के विरुद्ध एकजुट रहना होगा।” उन्होंने बल दिया कि अगर समाज एक दिशा में संगठित होकर काम करे, तो कोई भी बाहरी या आंतरिक शक्ति भारत की एकता को नहीं तोड़ सकती।

शस्त्र पूजन का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व

शस्त्र पूजन केवल युद्ध की तैयारी नहीं बल्कि आत्मबल, संयम और न्याय की साधना का प्रतीक है। विजयादशमी के दिन डॉ. सिंह ने मां दुर्गा, भगवान श्रीराम और परशुराम के आशीर्वाद से राष्ट्र की रक्षा और समाज कल्याण की कामना की। उन्होंने कहा कि शस्त्र पूजन हमें स्मरण कराता है कि शक्ति का प्रयोग सदैव धर्म और न्याय की रक्षा के लिए होना चाहिए, न कि किसी के दमन के लिए।

गरिमामय उपस्थिति और सामाजिक समरसता का प्रतीक बना आयोजन

इस अवसर पर मंच पर और सभागार में अनेक सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्र के विशिष्टजन उपस्थित रहे। राज्यसभा सांसद डॉ. दिनेश शर्मा, विधान परिषद सदस्य पवन सिंह चौहान, अंगद सिंह, छेदी सिंह, एस.पी. सिंह, अरविंद कुमार सिंह, प्रदीप सिंह ‘बब्बू’, श्यामपाल सिंह, राज्य महिला आयोग सदस्य एकता सिंह, संयोगिता सिंह, कर्नल ए.के. सिंह, भानु प्रताप सिंह, अखिलेश सिंह, देवेंद्र सिंह सहित अनेक गणमान्य अतिथियों की मौजूदगी ने कार्यक्रम को विशेष महत्व प्रदान किया। कार्यक्रम के अंत में सभी अतिथियों ने राष्ट्रगान के साथ एक स्वर में राष्ट्र की एकता, अखंडता और समृद्धि की शपथ ली।

विजयादशमी का संदेश और डॉ. सिंह की प्रेरणा

यह आयोजन केवल एक पारंपरिक शस्त्र पूजन नहीं था, बल्कि यह उस चेतना का प्रतीक था जो भारतीय समाज में अब भी जीवित है – “धर्म की रक्षा ही सच्ची शक्ति है।”
डॉ. राजेश्वर सिंह ने अपने वक्तव्य से यह स्पष्ट किया कि आज के युग में सच्चा योद्धा वही है जो ज्ञान, तकनीक और नैतिकता के माध्यम से समाज को मजबूत करे।
उनका संदेश था कि भारत को न केवल आर्थिक या सैन्य रूप से, बल्कि वैचारिक, सांस्कृतिक और डिजिटल रूप से आत्मनिर्भर बनाना ही सच्ची विजयादशमी का अर्थ है।

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