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भाजपा के दलित प्रेम के कारण लखनऊ का इको गार्डन एक बार पुन: सुर्खियों में : मायावती की विरासत और 2027 चुनाव में दलित वोट बैंक की जंग, बज रहा राजनीतिक बिगुल, बसपा की होर्डिंग से पटा इको गार्डन समेत पूरा VIP रोड, ज्यादा जानकारी के लिए खबर विस्तार से पढें

  • लखनऊ के कांशीराम इको गार्डन में अचानक तेज़ी से पुताई, साफ़-सफाई और सौंदर्यीकरण का काम शुरू हुआ है।
  • 2027 विधानसभा चुनाव से पहले इस कदम को दलित वोट बैंक से जोड़कर देखा जा रहा है।
  • मायावती सरकार में बने इन पार्कों को भाजपा अब नया रूप देकर राजनीतिक संदेश देना चाहती है।
  • 9 अक्टूबर को कांशीराम जयंती (परिनिर्वाण दिवस) से पहले सरकार कोई लापरवाही नहीं बरतना चाहती।
  • इको गार्डन का संवरना अब दलित राजनीति के नए समीकरणों की ओर संकेत कर रहा है।

रिपोर्ट : शिवसागर सिंह चौहान | True News UP

लखनऊ के मान्यवर कांशीराम जी ग्रीन (इको) गार्डन में अचानक तेज़ी से पुताई, सफाई और सौंदर्यीकरण का काम शुरू हो गया है। लंबे समय से उपेक्षित पड़े इस पार्क में एकाएक आई हलचल ने आम लोगों और राजनीतिक विश्लेषकों का ध्यान खींचा है, क्योंकि इससे पहले तो पूर्ववर्ती सरकारों के समय में बने पार्कों की लाइट तक नहीं जलाई जाती थी।

कांशीराम जी के परिनिर्वाण दिवस में इको गार्डन में सियासी सरगर्मी

9 अक्टूबर को मान्यवर कांशीराम जी का परिनिर्वाण दिवस लखनऊ के इको गार्डन में बड़े स्तर पर मनाया जाएगा। वीआईपी रोड से सटा यह इलाका पूरी तरह सजाया-संवारा जा चुका है। दिलचस्प बात यह है कि इस बार तैयारियों में केवल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ही नहीं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी बराबर की भूमिका निभाती दिख रही है।भाजपा सरकार ने इको गार्डन के सौंदर्यीकरण, सफाई, लाइटिंग और यातायात व्यवस्था को लेकर विशेष निर्देश जारी किए हैं। जानकारों का मानना है कि यह केवल प्रशासनिक सतर्कता नहीं, बल्कि दलित समाज को साधने की भाजपा की रणनीति का हिस्सा है।

राजनीतिक हलकों में यह चर्चा जोर पकड़ चुकी है कि भाजपा अब दलित वोट बैंक पर निगाहें टिकाए हुए है। कांशीराम जी जैसे दलित नायक की विरासत को सम्मान देकर भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि वह केवल विकास की नहीं, बल्कि सम्मान की राजनीति में भी बराबर की हिस्सेदार है।इको गार्डन की तैयारियों में भाजपा की यह सक्रियता न सिर्फ बसपा के लिए चुनौती है, बल्कि आगामी 2027 के चुनावी समीकरणों में एक बड़ा संकेत भी।

चुनाव से पहले इको गार्डन का अचानक सौंदर्यीकरण

विशेष रूप से यह मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 2027 का चुनाव नज़दीक है। इस साल के चुनावी माहौल में ऐसे पार्कों को सजाने-संवारने का काम सीधे तौर पर राजनीति से जुड़ा हुआ माना जा रहा है। सवाल यह है कि क्या यह प्रयास वास्तव में जनता की सुविधा और शहर की सुंदरता के लिए हैं, या फिर यह केवल वोट बैंक को लुभाने का चुनावी हथियार है।

मायावती सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना और उसकी पृष्ठभूमि

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती ने अपने कार्यकाल में लखनऊ और नोएडा समेत कई जगहों पर स्मारक और पार्कों का निर्माण करवाया। इनमें इको गार्डन, डॉ. भीमराव अंबेडकर स्मारक स्थल, कांशीराम स्मृति उपवन और हाथी पार्क प्रमुख रूप से शामिल हैं। इन पार्कों को मूर्तियों, विशाल पत्थर की संरचनाओं और हाथियों की प्रतिमाओं से सजाया गया ताकि दलित समाज के नायकों और प्रतीकों को स्थायी रूप से स्थापित किया जा सके।

मायावती का उद्देश्य स्पष्ट था – दलित समाज, जो लंबे समय तक सामाजिक और राजनीतिक रूप से हाशिए पर रहा, वह खुद को इस देश की मुख्य धारा और सत्ता का अहम हिस्सा महसूस करे। यही कारण था कि इन पार्कों को “सम्मान की राजनीति” का प्रतीक माना गया। विपक्ष ने भले ही इसे “फिजूलखर्ची” और “भ्रष्टाचार” बताया, लेकिन दलित समाज के बड़े हिस्से ने इन पार्कों को अपनी पहचान और गरिमा से जोड़ा।

भाजपा सरकार की मौजूदा कवायद और उसका असली उद्देश्य

आज जब भाजपा की सरकार राज्य में है, तो इको गार्डन और अन्य स्मारकों की देखरेख और सौंदर्यीकरण पर अचानक ध्यान दिया जाने लगा है। इको गार्डन में पुताई, सफाई, पेड़-पौधों की देखभाल और गेटों की मरम्मत जैसे काम यह संकेत देते हैं कि सरकार इन पार्कों को नया जीवन देना चाहती है। लेकिन इसके पीछे केवल पर्यावरण या पर्यटन का उद्देश्य नहीं है, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक संदेश भी छिपा हुआ है।

भाजपा जानती है कि 2027 के चुनाव में दलित वोटर निर्णायक भूमिका निभाएंगे। ऐसे में मायावती की राजनीतिक विरासत को संजोकर और इन पार्कों को फिर से सक्रिय बनाकर भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि वह भी दलित समाज के सम्मान और उनकी सांस्कृतिक धरोहर का ध्यान रखती है। अगर भाजपा इस छवि को जनता तक पहुँचाने में सफल रहती है, तो इसका सीधा असर चुनावी नतीजों पर पड़ेगा।

आगामी कार्यक्रम और पार्टी की सतर्कता

आगामी 9 अक्टूबर, कांशीराम जी की परी निर्माण दिवस के मौके पर भाजपा किसी प्रकार की लापरवाही नहीं बरतना चाहती। भले ही इससे बसपा सुप्रीमो मायावती को राजनीतिक लाभ मिले, लेकिन भाजपा दलित वोट बैंक में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए पूरी तैयारी के साथ काम कर रही है।

पिछले उदाहरणों में, जैसे अहिल्याबाई होल्कर जी के कार्यक्रम में पार्टी और संघ ने कोई कमी नहीं छोड़ी। सभी दिग्गज नेताओं ने सम्मान और स्नेह के साथ समारोह में भाग लिया। यह दर्शाता है कि भाजपा केवल एक दिन का सौंदर्यीकरण नहीं, बल्कि दलित वोट बैंक के विश्वास और सम्मान की रणनीति बना रही है।

मायावती की रणनीति और दलित समाज की धड़कन

मायावती की राजनीति की सबसे बड़ी ताकत उनका दलित वोट बैंक रहा है। उन्होंने अपने शासनकाल में ऐसे पार्क और स्मारक बनवाए जो सीधे-सीधे दलित समाज को अपनी शक्ति और सम्मान का एहसास कराते थे। हालांकि भाजपा लगातार दलित समाज में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर राज्य स्तरीय नेता, सभी दलित नायकों का सम्मान करने और उनके उत्थान की योजनाओं का प्रचार कर रहे हैं। इस स्थिति में यह देखना होगा कि दलित समाज पुरानी राजनीति से जुड़ा रहेगा या भाजपा की नई रणनीति से प्रभावित होकर अपना रुख बदल देगा।

जनता के लिए संदेश और वोट की अहमियत

आम जनता के लिए सबसे बड़ा संदेश यह है कि अपने वोट की कीमत समझें। किसी भी राजनीतिक दल के चुनावी कार्यक्रम या पार्क सौंदर्यीकरण को देखकर भावनात्मक निर्णय लेने की बजाय सही जगह और सही उम्मीदवार के लिए वोट का इस्तेमाल करें। चाहे दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा, अन्य पिछड़ा, या किसी भी धर्म और वर्ग से हों – हर नागरिक का वोट महत्वपूर्ण है और 2027 चुनाव में यही वोट सत्ता का असली निर्धारण करेगा।

इको गार्डन केवल हरियाली नहीं, दलित राजनीति का रणक्षेत्र है

इको गार्डन और अन्य पार्क केवल हरियाली और मूर्तियों का ढांचा नहीं हैं। ये दलित समाज की स्मृति, सम्मान और राजनीतिक अस्तित्व का प्रतीक हैं। चुनावी साल में इनका अचानक संवरना यह संकेत देता है कि 2027 का असली संघर्ष सिर्फ सत्ता पर काबिज़ होने का नहीं, बल्कि दलित समाज के विश्वास और उनके वोट बैंक को जीतने का है।

इतिहास गवाह है कि उत्तर प्रदेश की सत्ता में पहुंचने का रास्ता दलित समाज के समर्थन से होकर ही गुजरता है। इसलिए इको गार्डन में शुरू हुआ सौंदर्यीकरण महज़ रखरखाव नहीं, बल्कि दलित राजनीति की बड़ी जंग की प्रस्तावना है।


✍️ रिपोर्ट : शिवसागर सिंह चौहान
मुख्य संपादक | True News UP
🌐 www.truenewsup.com

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