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गुजरात का गौरव ‘रानी की वाव’: हर सीढ़ी में बसी है भारतीय कला और इतिहास

गुजरात के पाटन नगर में स्थित रानी की वाव (सीढ़ीदार बावड़ी) भारतीय स्थापत्य और शिल्पकला का अनमोल खजाना है। इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त है और यह गुजरात आने वाले हर पर्यटक के आकर्षण का केंद्र है। यह बावड़ी केवल जल संग्रहण की संरचना नहीं है, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और कलात्मक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

रानी की वाव का निर्माण 11वीं शताब्दी में सोलंकी वंश की रानी उदयमती ने अपने पति राजा भीमदेव प्रथम की स्मृति में करवाया था। इस कारण इसका नाम “रानी की वाव” पड़ा। यह संरचना न केवल प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि उस युग की स्थापत्य दक्षता का भी अद्भुत उदाहरण है।

स्थापत्य विशेषताएँ-

रानी की वाव लगभग 64 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी और 27 मीटर गहरी है। इसमें सात मंज़िलें हैं और हर मंज़िल पर सुंदर सीढ़ियाँ तथा चौक बनाए गए हैं।

बावड़ी की दीवारों पर लगभग 500 मुख्य मूर्तियाँ और 1000 से अधिक छोटी मूर्तियाँ उकेरी गई हैं।

इनमें भगवान विष्णु के विभिन्न अवतार, देवी-देवताओं, अप्सराओं, ऋषियों और दैनंदिन जीवन के दृश्य अंकित हैं।

इसकी सबसे खास विशेषता यह है कि जब कोई यात्री नीचे उतरता है, तो उसे लगता है मानो वह पृथ्वी की गोद में किसी भव्य मंदिर की ओर बढ़ रहा हो।

कलात्मक सौंदर्य

बावड़ी की नक्काशी इतनी बारीक है कि पत्थरों पर बने चेहरे, आभूषण और मुद्राएँ जीवंत प्रतीत होती हैं। इसमें दशावतार (विष्णु के दस अवतार) की मूर्तियाँ विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।

वर्तमान स्थिति और पर्यटन

रानी की वाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित है। हर वर्ष हजारों पर्यटक यहाँ आते हैं।

2014 में इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया और 2016 में इसे भारत की नई ₹100 के नोट की डिजाइन पर भी स्थान दिया गया।

यहाँ अक्सर रानी की वाव फेस्टिवल भी आयोजित किया जाता है, जिसमें लोकनृत्य, संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।

कैसे पहुँचे?

निकटतम हवाई अड्डा : अहमदाबाद (लगभग 125 किमी)

रेलवे स्टेशन : मेहसाणा और पाटन

सड़क मार्ग : अहमदाबाद और गांधीनगर से पाटन तक सड़क द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।

रानी की वाव भारतीय शिल्पकला, स्थापत्य और संस्कृति का अद्वितीय उदाहरण है। यह न केवल जल प्रबंधन का एक प्राचीन और वैज्ञानिक मॉडल है बल्कि प्रेम, श्रद्धा और कला की जीवित मिसाल भी है। पाटन आने वाला हर यात्री इस धरोहर को देखकर भारत की महान सांस्कृतिक परंपरा पर गर्व महसूस करता है।

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