
- डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा: “युवा कौशल बढ़ाइए, जातिवादी राजनीति को ठुकराइए।”
- उपलब्ध रिपोर्टों के अनुसार भारत में तकनीकी-कौशल वाले कर्मचारियों की गहरी कमी है, 81% कंपनियाँ टेक्निकल स्किल की कमी बता चुकी हैं।
- डॉ. Singh ने प्रशिक्षण, डिजिटल सर्टिफिकेशन और इंटर्नशिप-लिंक्ड स्किल प्रोग्राम्स तेज़ करने का आग्रह किया।
- उन्होंने चेताया कि जातिवाद नौकरियाँ नहीं देता, असली सशक्तिकरण शिक्षा, कौशल और एकता से आता है।
- डॉ. सिंह का नारा: “जातिवाद ज़हर है, कौशल शक्ति है”, और 65% युवाओं के कौशलवान बनते ही भारत की दिशा बदल जाएगी
लखनऊ : “युवा कौशल बढ़ाइए, जातिवादी राजनीति को ठुकराइए।” यही संदेश देते हुए सरोजनीनगर विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने सोमवार को सोशल मीडिया मंच एक्स पर युवाओं और नागरिकों से सीधे संवाद करते हुए स्पष्ट कहा कि भारत का भारत@2047 का सपना कौशल, शिक्षा और डिजिटल सशक्तिकरण पर टिका हुआ है, न कि जातिवादी राजनीति पर।
डॉ. सिंह ने अपने संदेश में चेतावनी दी कि जब देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजिटल टेक्नोलॉजी, मैन्युफैक्चरिंग, डिफेंस और ग्रीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में लाखों नौकरियाँ और अवसर उपलब्ध हैं, तब कंपनियाँ और उद्योग उपयुक्त तकनीकी कौशल वाले युवा नहीं पा रहे हैं। उन्होंने समाज में जाति के नाम पर फैल रही बनने-बंटवारे वाली राजनीति की कड़ी निंदा की और कहा कि यह युवाओं के भविष्य और राष्ट्र के विकास को रोकने वाली सबसे बड़ी बाधा बन रही है।
समस्या की गंभीरता – आँकड़ों से क्या दिखता है
वर्तमान स्थिति की गंभीरता को समझने के लिए उपलब्ध आँकड़े चिंतास्पद हैं। EY–iMocha (2023) की रिपोर्ट बताती है कि 81% कंपनियाँ कहती हैं कि उनके पास टेक्निकल स्किल वाले कर्मचारी नहीं हैं। NSDC की Skill Gap Study (2024) के अनुसार तेज़ी से बढ़ने वाले क्षेत्रों में लगभग 2.9 करोड़ कुशल युवाओं की कमी है। TeamLease Digital Report (2024) बताती है कि Generative AI जैसे उभरते क्षेत्र में हर 10 रिक्तियों के लिए केवल 1 इंजीनियर उपलब्ध है। ताज़ा India Skills Report (2025) यह संकेत देता है कि केवल लगभग 42-50% ग्रेजुएट्स ही तकनीकी क्षेत्रों में रोजगार योग्य आवेदनकर्ता हैं। वहीं TOI (2024) के हवाले से बताया गया कि PMKVY के तहत ट्रेनिंग लेने वालों में से केवल 15% को ही रोजगार मिला।
इन आँकड़ों का मतलब साफ है – मांग बहुत अधिक है और आपूर्ति (कुशल जनशक्ति) कम। नतीजतन नौकरियाँ खाली पड़ी हैं और युवा बेरोज़गार बने हुए हैं, जबकि कुछ नेता जातिगत आधार पर लोगों को बांटकर असल समस्या छिपाने का प्रयास करते हैं।
डॉ. सिंह का संदेश – सख़्ती और समाधान दोनों
डॉ. राजेश्वर सिंह ने स्पष्ट रूप से कहा कि “जातिवाद न नौकरी देता है, न अवसर”। उनका मानना है कि अगर युवा सही कौशल सीखकर, डिजिटल टूल्स अपनाकर और आधुनिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों से लैस हो जाएँ तो देश की अर्थव्यवस्था को नई गति मिलेगी और युवाओं के हाथ में असल अवसर आएंगे। उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे खाली वोट बैंक राजनीति में न उलझें, बल्कि तकनीकी प्रशिक्षण, सर्टिफिकेशन और व्यावहारिक कौशल हासिल करने की दिशा में कदम बढ़ाएँ।
साथ ही, डॉ. सिंह ने संस्थानों और उद्योगों से कहा कि वे मिलकर कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों को और अधिक उद्योग-सम्वद्ध बनाएँ, ताकि जो ट्रेनिंग दी जा रही है, वह बाजार की मांग के अनुरूप हो और नौकरियों में तब्दीली का रास्ता खुल सके। उन्होंने कहा कि सरकारों को भी स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण केंद्रों को मजबूत करना चाहिए, और निजी क्षेत्र को आज़माने के लिए ऋण, इन्केंटिव या टैक्स-प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि स्किल डेवलपमेंट का पारिस्थितिक तंत्र तेजी से बन सके।
युवाओं और घरेलू अर्थव्यवस्था पर असर – क्या बदल सकता है
यदि युवा जल्दी से बाजार के अनुरूप कौशल हासिल कर लें तो तीन तरह के लाभ तुरंत दिखेंगे। पहला, बेरोज़गारी घटेगी और युवाओं की आमदनी बढ़ेगी; दूसरा, घरेलू मांग बढ़ेगी जिससे मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में निवेश आएगा; तीसरा, देश का वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मक avantage बढ़ेगा क्योंकि कंपनियाँ भारत के युवा टैलेंट को हायर करने में विश्वास करेंगी। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुमान भी यही कहते हैं कि कुशल जनशक्ति मिलने से अगले 4-6 क्वार्टर में कंजम्प्शन-ड्रिवन ग्रोथ में बढ़त दिखाई दे सकती है।
डॉ. सिंह ने यह भी आगाह किया कि केवल ट्रेनिंग देना ही काफी नहीं — ट्रेनिंग का मानकीकरण, प्रमाणन, औद्योगिक इंटर्नशिप और प्लेसमेंट-लिंक्ड प्रोग्राम्स जरूरी हैं। उन्होंने PMKVY जैसे सरकारी प्रोग्रामों के सुधार की भी बात उठाई – सिर्फ़ प्रशिक्षण नहीं, बल्कि रोजगार-निष्पादन को मापना और बेहतर बनाना होगा।
स्थानीय स्तर पर क्या किया जा सकता है – व्यवहारिक सुझाव
डॉ. सिंह ने अपने बयान में स्थानीय और व्यवहारिक कदमों का सुझाव भी दिया। उन्होंने कहा कि पंचायत-स्तर और महकमों के साथ मिलकर प्रशिक्षण शिविर, डिजिटल सर्टिफ़िकेशन सेंटर, और कक्षाएँ चलायी जाएँ जिनमें युवा सस्ते या निशुल्क प्रशिक्षण के साथ वास्तविक नौकरी-कौशल सीख सकें। साथ ही, उद्योग-संस्थानों को स्थानीय युवाओं के साथ मिलकर इंटर्नशिप और अप्रेंटिसशिप के अवसर बढ़ाने चाहिए। मीडिया और शैक्षिक संस्थान भी युवाओं के लिए करियर-गाइडेंस और स्किल-मैपिंग को बढ़ावा दें।
डॉ. सिंह ने स्पष्ट तौर पर कहा कि राजनीतिक विमर्श को हटाकर निर्णायक रूप से कौशल पर केंद्रित नीतियाँ बनानी होंगी – तभी भारत तेज़ी से विकसित राष्ट्र बनने का मार्ग तय कर पाएगा।
एक सार्थक अपील
डॉ. राजेश्वर सिंह का संदेश सरल और सशक्त है – जातिवाद ज़हर है, कौशल शक्ति है। यदि युवा आज़ अपने कौशल में निवेश करें, डिजिटल टूल्स अपनाएँ और उद्योग-समर्थन वाली प्रशिक्षण योजनाओं का लाभ उठाएँ, तो न सिर्फ़ उनकी व्यक्तिगत दशा बदलेगी बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूती से आगे बढ़ेगी। उन्होंने युवाओं से एकजुट होकर अपनी ऊर्जा कौशल में लगाने का आह्वान किया और कहा कि तब कोई शक्ति भारत को विकसित भारत@2047 बनने से नहीं रोक सकती।