अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव 2018 से जारी है, जो व्यापार संतुलन, तकनीकी हस्तांतरण और औद्योगिक नीतियों से जुड़ा हुआ है। अप्रैल में अमेरिका ने चीनी वस्तुओं पर टैरिफ 145% तक बढ़ा दिए, जिसके जवाब में चीन ने अमेरिकी आयात पर 125% शुल्क लगाया। इस संघर्ष ने दोनों देशों की अर्थव्यवस्था और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित किया।
जिनेवा और लंदन में हुई बैठकों के बाद दोनों पक्ष अस्थायी तौर पर टैरिफ कम करने पर सहमत हुए, लेकिन अगस्त में टैरिफ की समय सीमा समाप्त होने वाली थी। हाल ही में अमेरिका ने टैरिफ की अवधि 90 दिनों तक बढ़ा दी है। यह फैसला बातचीत जारी रहने और स्थायी समाधान खोजने की कोशिश के बीच लिया गया है।
फिलहाल, चीन से आयातित वस्तुओं पर कुल 30% टैरिफ लागू है, जिसमें 10% आधार दर और 20% अतिरिक्त टैरिफ शामिल हैं। चीन ने अमेरिकी आयात पर अपनी दर घटाकर 10% कर दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस टैरिफ विस्तार का असर दोनों देशों की GDP और वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता बढ़ाने पर पड़ेगा।
अगर 90 दिनों के भीतर कोई समझौता नहीं होता, तो टैरिफ फिर से बढ़ सकते हैं, जिससे वैश्विक व्यापार पर नकारात्मक असर पड़ेगा। विश्व व्यापार संगठन (WTO) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इस विवाद को खत्म करने की कोशिश कर सकती हैं। यह विस्तार एक रणनीतिक विराम है ताकि दोनों पक्ष वार्ता के जरिए समाधान निकाल सकें, लेकिन अगर नाकाम रहे तो यह ट्रेड वॉर के नए दौर की शुरुआत हो सकती है।