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सहारा समूह के डिप्टी मैनेजिंग वर्कर ओ.पी. श्रीवास्तव पर कानूनी शिकंजा कसने की मांग : कर्मचारियों व निवेशकों को कब मिलेगा न्याय ? सहारा समूह के खिलाफ कार्रवाई तेज करने व सहारा शहर में बुलडोजर चलाने की मांग, शनिवार को विभागीय अल्टीमेटम का आखिरी दिन, लखनऊ स्थित सहारा शहर व नोएडा के मीडिया ऑफिस में कर्मचारी सीएम योगी से न्याय की आश में अब भी धरने पर, यहाँ पढ़ें पूरी खबर

सहारा के वाइस प्रेसिडेंट ओ.पी. श्रीवास्तव पर कानूनी शिकंजा, कर्मचारियों व निवेशकों को कब मिलेगा न्याय ? सहारा समूह के खिलाफ कार्रवाई तेज करने व सहारा शहर में बुलडोजर चलाने की मांग, शनिवार को विभागीय अल्टीमेटम का आखिरी दिन, लखनऊ स्थित सहारा शहर व नोएडा के मीडिया ऑफिस में कर्मचारी सीएम योगी से न्याय की आश में अब भी धरने पर, यहाँ पढ़ें पूरी खबर
  • ओ.पी. श्रीवास्तव पर गिरफ्तारी वारंट के बावजूद कार्रवाई न होना यह साबित करता है कि सहारा साम्राज्य अब भी पैसों और रसूख के बल पर कानून को चुनौती दे रहा है।
  • सिद्धार्थनगर कोर्ट का भगोड़ा घोषित करने और संपत्ति कुर्की का आदेश सहारा प्रबंधन पर कानून का सबसे बड़ा वार है।
  • गोमतीनगर स्थित सहारा सिटी पर प्रशासन की सीलिंग और बुलडोजर की तैयारी, साम्राज्य के पतन की शुरुआत मानी जा रही है।
  • निवेशकों ने चेताया – जब तक हर एक पैसा वापस नहीं मिलता, सहारा के किसी भी अधिकारी या परिवारिक सदस्य को बख्शा नहीं जाएगा।
  • सहारा शहर का ढहता गौरव अब उस लालच और धोखे का प्रतीक बन गया है, जिसने लाखों निवेशकों के सपने लूट लिए।

रिपोर्ट : शिवसागर सिंह चौहान, लखनऊ | True News UP

लखनऊ: देशभर के लाखों निवेशकों की गाढ़ी कमाई अब न्याय की राह पर लौटने लगी है। वर्षों से कानूनी जटिलताओं में उलझे सहारा समूह के खिलाफ हाल में हुई कार्रवाइयों ने एक बार फिर उम्मीद की किरण जगाई है। सहारा इंडिया के डिप्टी मैनेजिंग वर्कर ओ.पी. श्रीवास्तव के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट और उनके भगोड़ा घोषित किए जाने के बाद निवेशक अब यह मान रहे हैं कि लंबे समय से रुकी न्याय प्रक्रिया अब निर्णायक दौर में पहुंच रही है। लेकिन वहीं इस बात से चिंता भी व्याप्त है कि आखिर इतनी भ्रष्टाचारी समूह का प्रमुख जिम्मेदार होने के बावजूद अब तक गिरफ़्तारी क्यों नहीं की जा रही है, कहीं स्थानीय जिम्मेदारों ने कोई सेटिंग तो नहीं कर ली है।

ओ.पी. श्रीवास्तव पर बढ़ा कानूनी दबाव, लेकिन पैसे व रसूख के चलते नहीं हो रही गिरफ्तारी

लखनऊ के अलीगंज कोतवाली में सहारा समूह के एक पूर्व अधिकारी दंपति ने वेतन न दिए जाने का गंभीर आरोप लगाते हुए ओ.पी. श्रीवास्तव के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। इसके अलावा, सिद्धार्थनगर की अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर उनकी संपत्ति कुर्क करने का आदेश जारी किया है। अदालत के आदेश के बाद स्थानीय प्रशासन ने उनके खिलाफ कार्यवाही की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह कार्रवाई सहारा समूह के शीर्ष प्रबंधन पर गिरने वाले कानूनी शिकंजे की गंभीरता को दर्शाती है।

निवेशकों ने भी मांग उठाई है कि ओ.पी. श्रीवास्तव की पैतृक संपत्ति को नीलाम किया जाए ताकि उनसे बकाया राशि की वसूली हो सके। उनका कहना है कि सहारा समूह की बुनियादी संपत्तियाँ निवेशकों के पैसों से बनाई गई हैं, इसलिए जब तक हर निवेशक को एक-एक पैसा वापस नहीं मिलता, किसी भी अधिकारी या परिवारिक सदस्य को बख्शा नहीं जाना चाहिए।

सहारा समूह पर लगे गंभीर आरोप, अब साम्राज्य ढहाने की तैयारी

सहारा समूह पर पिछले कई वर्षों से यह आरोप लगते रहे हैं कि उसने निवेशकों से जुटाई गई हजारों करोड़ रुपये की राशि का दुरुपयोग किया।
देशभर के छोटे-बड़े शहरों और गांवों में काम करने वाले एजेंट्स के ज़रिए समूह ने लाखों निवेशकों से पैसा जुटाया था, लेकिन अधिकांश को अब तक उनका रिटर्न नहीं मिल सका। कई वर्षों तक मामला अदालतों में लंबित रहा, और इसी दौरान समूह ने अपनी अचल संपत्तियों, कंपनियों और विभिन्न प्रोजेक्ट्स में पैसों का हेरफेर किया – यह बात SEBI और न्यायालय की रिपोर्टों में भी दर्ज है।

हालांकि, केंद्र सरकार ने निवेशकों के लिए ‘सहारा रिफंड पोर्टल’ शुरू किया है, जिसके ज़रिए आंशिक रिफंड जारी किया जा रहा है, परंतु यह प्रक्रिया बेहद धीमी है और अभी भी लाखों निवेशक अपने पैसों का इंतज़ार कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक सहारा समूह की संपत्तियों की बिक्री नहीं होती, तब तक निवेशकों को पूरी धनराशि मिलना मुश्किल है।

गोमतीनगर स्थित सहारा शहर पर प्रशासनिक कार्रवाई, चलेगा बुलडोजर

लखनऊ के गोमतीनगर स्थित सहारा शहर (Sahara City) में प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए खाली कराने का आदेश दिया है।
नगर निगम और लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) ने समूह को पहले ही नोटिस देकर परिसर खाली करने की अंतिम समय-सीमा तय की थी, जो अब समाप्त हो चुकी है।
प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, यदि निर्धारित समय में भवन खाली नहीं किया गया तो नगर निगम स्वतंत्र रूप से सीलिंग और कब्ज़ा प्रक्रिया शुरू करेगा।

यह कार्रवाई संकेत देती है कि अब सहारा का साम्राज्य धीरे-धीरे कानूनी नियंत्रण में आने लगा है।
सहारा भवन, जो कभी सुब्रत राय सहारा का प्रतीक माना जाता था, आज उस पूरे आर्थिक तंत्र की गिरती स्थिति का गवाह बन चुका है, जिसने कभी करोड़ों आम लोगों को “सपनों का सहारा” देने का वादा किया था।

बड़े सवाल – जवाब कौन देगा?

निवेशकों के बीच अब यह सवाल उठ रहा है कि जब समूह के वरिष्ठ अधिकारी ओ.पी. श्रीवास्तव पर गिरफ्तारी वारंट जारी हो चुका है,
तो सुब्रत राय की पत्नी स्वप्ना राय और अन्य शीर्ष प्रबंधन सदस्य अब तक जांच और गिरफ्तारी से बाहर क्यों हैं?
क्या इनके खिलाफ कार्रवाई रोकने के पीछे कोई राजनीतिक या आर्थिक समझौता है, या फिर उच्च स्तर पर “मांडवाली” की स्थिति बनी हुई है?

कई निवेशकों ने अदालत से मांग की है कि समूह के सभी पदाधिकारी और परिवारिक सदस्य जिनके नाम पर संपत्तियाँ हैं, उनकी जवाबदेही तय की जाए।
क्योंकि जब जनता का पैसा डूबा है, तो जिम्मेदारी भी केवल निचले अधिकारियों की नहीं, बल्कि शीर्ष नेतृत्व की भी बनती है।

निवेशकों की उम्मीद और सरकार से अपेक्षा

देशभर में लाखों परिवार हैं जिन्होंने सहारा में अपनी जीवनभर की कमाई लगाई थी।
किसी ने बच्चों की शिक्षा के लिए, तो किसी ने शादी या मकान के लिए इस समूह में निवेश किया।
आज भी बहुत से निवेशक ऐसे हैं जो 10 से 15 साल बाद भी अपना मूलधन वापस पाने की राह देख रहे हैं।

सरकार ने सहारा रिफंड पोर्टल की शुरुआत कर एक सकारात्मक कदम ज़रूर उठाया है,
पर जब तक समूह की देशभर में फैली संपत्तियों की कुर्की और नीलामी नहीं होती,
तब तक वास्तविक राहत मिलना संभव नहीं लगता।
निवेशक चाहते हैं कि कोर्ट और सरकार मिलकर सहारा की सभी संपत्तियों का एक पारदर्शी ऑडिट करें और उन्हें बेचकर निवेशकों का पैसा वापस लौटाएं।

न्याय की प्रक्रिया धीमी, पर उम्मीद जिंदा है

भले ही अदालतों में मामले वर्षों से लंबित हैं, पर अब प्रशासनिक स्तर पर हो रही गतिविधियों ने न्याय की प्रक्रिया को फिर से जीवित कर दिया है। ओ.पी. श्रीवास्तव के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट, सहारा भवन खाली कराने की प्रक्रिया और अदालतों के निर्देश – ये सभी संकेत देते हैं कि न्याय भले देर से मिले, लेकिन अब उससे बच पाना मुश्किल होगा।

अगर सरकार, अदालतें और जांच एजेंसियां मिलकर पारदर्शी और निष्पक्ष कार्रवाई करें, तो आने वाले महीनों में निवेशकों को उनके गाढ़े परिश्रम का पैसा वापस मिल सकता है। सहारा समूह की संपत्तियों की बिक्री से प्राप्त राशि को अगर सही तरीके से सहारा-सेबी खाते में जमा किया जाए, तो यह मामला देश के आर्थिक इतिहास में न्याय और जवाबदेही की मिसाल बन सकता है।

सहारा समूह की गिरती साख अब एक चेतावनी बन चुकी है कि आम जनता के विश्वास के साथ खेलना कितना खतरनाक हो सकता है। ओ.पी. श्रीवास्तव की गिरफ्तारी और सहारा भवन पर कार्रवाई ने यह साबित किया है कि कानून के जाल से कोई कितना भी ताकतवर क्यों न हो, आखिरकार उसे जवाब देना ही पड़ता है।

निवेशक अब यह संदेश देना चाहते हैं-
“हमारे पैसे से बनी इमारतें अगर ढह रही हैं, तो अब हमारी उम्मीदें नहीं। जब तक हर परिवार को उसका हक़ नहीं मिलता, हमारी आवाज़ नहीं रुकेगी।”


✍️ शिवसागर सिंह चौहान
मुख्य सम्पादक | True News UP
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