
- सम्राट हर्षवर्धन का जन्म हरियाणा के थानेश्वर में पिता प्रभाकर वर्मन और माता यशोमति के घर हुआ था
- 26 वर्ष की आयु में 606 ईस्वी में हर्षवर्धन को सिंहासन पर बैठाया गया, और उनका शासनकाल 647 ईस्वी तक चला।
- हर्षवर्धन न केवल एक कुशल योद्धा और राजनीतिज्ञ थे, बल्कि उन्होंने नागानंद, रत्नावली, और प्रियदर्शिका जैसे साहित्यिक ग्रंथों की रचना भी की
- हर्षवर्धन के वंश को पुष्पभूति वंश कहा जाता था, जिसे जनरल कनिंघम ने अपने शोध में बैंस राजपूत वंश के रूप में पहचाना है।
- हर्षवर्धन ने कन्नौज को अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया, और यह सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ।
लखनऊ: सम्राट हर्षवर्धन बैंस का जन्म हरियाणा के थानेश्वर में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रभाकर वर्मन और माता का नाम यशोमति था। हर्षवर्धन के जन्म की सटीक तिथि का उल्लेख इतिहास में नहीं मिलता है, लेकिन उनके राज्याभिषेक के समय उनकी आयु 26 वर्ष थी, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि उनका जन्म लगभग 580 ईस्वी में हुआ होगा। हर्षवर्धन का शासनकाल 606 ईस्वी से 647 ईस्वी तक चला, जिसमें उन्होंने उत्तरी भारत के एक विशाल क्षेत्र पर शासन किया।
कन्नौज का राजा बनने की कहानी
हर्षवर्धन तीन भाई-बहनों में से एक थे। उनके बड़े भाई का नाम राज्यवर्धन द्वितीय और बहन का नाम राज्यश्री था। राज्यश्री का विवाह कन्नौज के राजा ग्रहवर्मन से हुआ था। लेकिन, जब पूर्वी मालवा के शासक देवगुप्त ने कन्नौज पर आक्रमण करके राजा ग्रहवर्मन की हत्या कर दी और राज्यश्री को बंदी बना लिया, तब राज्य में संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई। इस घटना के बाद राज्यवर्धन ने थानेश्वर से कन्नौज जाकर देवगुप्त को पराजित किया, लेकिन शशांक गौड़ की साजिश के तहत उनकी हत्या कर दी गई।
इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद, थानेश्वर के मंत्री परिषद ने हर्षवर्धन को 26 वर्ष की आयु में सिंहासन पर बैठा दिया। हर्षवर्धन ने कन्नौज की गद्दी पर अधिकार प्राप्त किया और अपने परिवार के खिलाफ किए गए अन्याय का प्रतिशोध लेने का संकल्प लिया। उन्होंने अपनी बहन राज्यश्री को विंध्याचल के जंगलों से मुक्त कराया, जहाँ वह बंदी जीवन व्यतीत कर रही थीं।
कुशल शासक और सांस्कृतिक संरक्षक
सम्राट हर्षवर्धन न केवल एक वीर योद्धा और राजनीतिज्ञ थे, बल्कि एक विद्वान और लेखक भी थे। उनके दरबार में विद्वानों और रचनाकारों को विशेष सम्मान दिया जाता था। हर्षवर्धन ने तीन प्रसिद्ध नाटकों— नागानंद, रत्नावली, और प्रियदर्शिका की रचना की थी। इन नाटकों में सामाजिक जीवन, मानवीय संबंधों और धार्मिक सहिष्णुता का चित्रण किया गया है।
हर्षवर्धन के दरबार के प्रमुख कवि बाणभट्ट थे, जिन्होंने हर्षचरित्र और कादंबरी जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। बाणभट्ट की रचनाओं में हर्षवर्धन के शासनकाल और उनकी महानता का वर्णन मिलता है, जिससे सम्राट की कुशलता और न्यायप्रियता का प्रमाण मिलता है।
राजवंश की पहचान और धार्मिक दृष्टिकोण
सम्राट हर्षवर्धन के वंश को पुष्पभूति वंश के नाम से भी जाना जाता है। यह एक शैव राजवंश था, जिसका मूल संस्थापक पुष्पभूति थे। हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान दो महत्वपूर्ण ताम्रपत्र— मधुबन और बंसखेड़ा ताम्रपत्र— प्राप्त हुए, जिनसे उनके वंश और शासन की पुष्टि होती है। भारतीय पुरातत्व विभाग के पहले प्रमुख जनरल कनिंघम ने मधुबन ताम्रपत्र का विश्लेषण करते हुए हर्षवर्धन के वंश को बैंस राजपूत राजवंश के रूप में पहचाना।
हालांकि, कुछ इतिहासकारों ने हर्षवर्धन के बौद्ध होने का उल्लेख किया है, लेकिन इसके स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। हर्षवर्धन ने प्रयागराज में महाकुंभ में स्नान के पश्चात् अपना संपूर्ण राजकोष दान कर दिया था, जो यह दर्शाता है कि वे हिंदू धर्म के अनुयायी थे और महाकुंभ के धार्मिक महत्व को समझते थे।
मौखरी वंश के साथ संबंध
हर्षवर्धन की बहन राज्यश्री का विवाह मौखरी वंश के नरवर्धन से हुआ था, जो एक प्राचीन क्षत्रिय कुल था। मौखरी वंश का उल्लेख प्राचीन शास्त्रों में अग्नि उपासक के रूप में मिलता है। यह संबंध हर्षवर्धन के राज्य की सामरिक और सामाजिक स्थिति को मजबूत करता है और उनके परिवार को एक समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ता है।
राजनीतिक चुनौतियाँ और विजय
राज्यवर्धन की हत्या के बाद, हर्षवर्धन ने देवगुप्त और शशांक गौड़ के विरुद्ध अभियान छेड़ा और अपनी बहन राज्यश्री को मुक्त कराया। इसके बाद, कन्नौज के मंत्री परिषद ने राज्यश्री के कहने पर हर्षवर्धन को कन्नौज का राजा नियुक्त कर दिया। हर्षवर्धन के नेतृत्व में, कन्नौज एक महत्वपूर्ण साम्राज्य बन गया और भारत की राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।
सम्राट हर्षवर्धन का योगदान और विरासत
सम्राट हर्षवर्धन ने अपने शासनकाल में कला, साहित्य, और धर्म के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने बौद्ध धर्म का समर्थन किया, लेकिन साथ ही हिंदू धर्म और अन्य धार्मिक परंपराओं के प्रति भी सहिष्णुता का भाव रखा। हर्षवर्धन की धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक समृद्धि ने उनके शासनकाल को भारतीय इतिहास का एक सुनहरा अध्याय बना दिया। उनके द्वारा स्थापित कन्नौज, उस समय का सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र बन गया था।
सम्राट हर्षवर्धन भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक शासक थे। उन्होंने अपने शासनकाल में राजनीतिक स्थिरता, सांस्कृतिक उन्नति, और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया। उनकी प्रशासनिक नीतियाँ, साहित्यिक कृतियाँ, और महान परोपकारी कार्य उनके व्यक्तित्व और शासनकाल की महानता को दर्शाते हैं। सम्राट हर्षवर्धन बैंस का जीवन और उनकी उपलब्धियाँ आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेंगी।


































