
- सरोजनीनगर से अयोध्या तक श्रद्धा और सेवा से भरी 44वीं रामरथ यात्रा का आयोजन हुआ।
- विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने मातृ स्मृति में निःशुल्क अयोध्या दर्शन यात्रा की पहल की।
- श्रद्धालुओं ने सरयू स्नान, हनुमानगढ़ी और श्रीराम जन्मभूमि के दर्शन कर पुण्य लाभ लिया।
- यात्रा में भोजन, चिकित्सा, परिवहन और सेवा व्यवस्था को सुचारू रूप से संपन्न कराया गया।
- यह यात्रा श्रद्धा, संस्कृति और संवेदनशील नेतृत्व का प्रेरणादायक उदाहरण बन चुकी है।

लखनऊ: आस्था जब सेवा से जुड़ती है, श्रद्धा जब लोकगीतों में बहती है और नेतृत्व जब संवेदना से संचालित हो—तो ‘रामरथ श्रवण अयोध्या यात्रा’ जैसा अनुपम दृश्य सामने आता है। सरोजनीनगर विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह द्वारा स्वर्गीय माता श्रीमती तारा सिंह की स्मृति में चलाई जा रही यह सेवा यात्रा मंगलवार को अपने 44वें चरण में पहुंची।

काशीराम कॉलोनी (सदरौना) से अयोध्या के लिए रवाना हुए श्रद्धालुओं का स्वागत ढोलक, करताल, भजन और रामधुन की ध्वनि से हुआ। यात्रा में महिलाओं, वृद्धजनों और युवाओं सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। डॉ. सिंह की पहल से यह निःशुल्क बस यात्रा अब तक हजारों श्रद्धालुओं को श्रीराम जन्मभूमि तक पहुंचा चुकी है।
दिव्यता से भरपूर अयोध्या दर्शन

अयोध्या पहुंचकर श्रद्धालुओं ने पहले सरयू में पुण्य स्नान किया, फिर हनुमानगढ़ी में बजरंगबली के दर्शन और अंत में रामलला के भव्य मंदिर में पूजा-अर्चना की। इस दौरान कई वृद्ध श्रद्धालुओं की आंखें नम थीं—यह केवल तीर्थ नहीं, भावनाओं की तपस्या का प्रतिफल था।
व्यवस्थित सेवा, संपूर्ण व्यवस्था
पूरी यात्रा के दौरान विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह की टीम ने भोजन, जलपान, चिकित्सा, लोकल कन्वेंस और दर्शन व्यवस्था को सुसंगठित तरीके से संचालित किया। श्रद्धालुओं को घर से लाना, दर्शन कराना और सम्मानपूर्वक वापस पहुंचाना—हर पहलू में सेवा की भावना स्पष्ट दिखाई दी।
जनता का भावुक आभार
एक वृद्ध श्रद्धालु ने कहा, “जन्म लिया था, अब दर्शन भी हो गए, इस जीवन में और क्या चाहिए।”
एक महिला श्रद्धालु की प्रतिक्रिया थी, “अयोध्या जाना एक सपना था, लेकिन विधायक जी की वजह से यह इतना आत्मिक और सजीव होगा, कभी सोचा नहीं था।”
सेवा, संस्कृति और संवेदना का समन्वय
डॉ. राजेश्वर सिंह की ‘रामरथ श्रवण अयोध्या यात्रा’ न सिर्फ धार्मिक यात्रा है, बल्कि यह सांस्कृतिक जागरूकता, समाजिक संवेदना और उत्तरदायी जनप्रतिनिधित्व का जीवंत उदाहरण है। यह यात्रा बताती है कि जब नेतृत्व श्रद्धा और सेवा से जुड़ता है, तो जनकल्याण के ऐसे मॉडल बनते हैं जो प्रेरणादायक भी होते हैं और अनुकरणीय भी।