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भारत में बेरोजगारी: मौजूदा स्थिति, चुनौतियाँ एवं सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास

लखनऊ/नई दिल्ली: भारत जैसे देश में जहां 65% से अधिक जनसंख्या 35 वर्ष से कम उम्र की है, वहां बेरोजगारी एक ज्वलंत समस्या के रूप में उभरकर सामने आई है। युवा जनसंख्या का बड़ा हिस्सा रोजगार के लिए संघर्ष कर रहा है, जो न केवल आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर रहा है, बल्कि सामाजिक असंतोष को भी बढ़ावा दे रहा है।

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भारत में बेरोजगारी कई प्रकार की है, जिनमें सबसे प्रमुख हैं:

  • संरचनात्मक बेरोजगारी: यह उस स्थिति को दर्शाती है जब युवा शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद बाजार की आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल नहीं रखता। इसमें तकनीकी क्षेत्र में तेजी से होने वाले बदलाव और शिक्षा प्रणाली के बीच असंगति मुख्य भूमिका निभाती है।
  • मौसमी बेरोजगारी: कृषि पर आधारित ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से मौसमी बेरोजगारी देखने को मिलती है, जहां रोजगार के अवसर केवल कुछ महीनों के लिए ही उपलब्ध होते हैं।
  • प्रच्छन्न बेरोजगारी: यह स्थिति तब होती है जब लोग आधे-अधूरे या कम प्रभावी ढंग से काम कर रहे होते हैं, जैसे कि कृषि क्षेत्र में अधिक श्रमिक होने के बावजूद कम उत्पादन।

बेरोजगारी का कारण: एक विश्लेषण

1. जनसंख्या विस्फोट

भारत की बढ़ती जनसंख्या बेरोजगारी के मुख्य कारणों में से एक है। देश की जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है, लेकिन रोजगार के अवसर उसी गति से नहीं बढ़ रहे हैं। युवा आबादी के नौकरी की तलाश में बढ़ने के साथ-साथ प्रतिस्पर्धा भी काफी बढ़ रही है, जिससे अधिकतर युवाओं को योग्य होने के बावजूद नौकरी पाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

2. शिक्षा और कौशल की असमानता

भारत में शिक्षा प्रणाली को लेकर बड़े सुधारों की आवश्यकता है। अधिकांश विश्वविद्यालयों में छात्रों को ऐसे पाठ्यक्रम पढ़ाए जा रहे हैं जो मौजूदा उद्योगों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते। परिणामस्वरूप, ग्रेजुएट्स की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन उनमे आवश्यक कौशलों की कमी है। उदाहरण के लिए, आईटी और मैन्युफैक्चरिंग जैसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा का अभाव है, जिससे युवाओं को नौकरी पाने में कठिनाई हो रही है।

3. कृषि पर निर्भरता

भारत की बड़ी आबादी अभी भी कृषि पर निर्भर है, जो सीमित आय और अवसर प्रदान करती है। कृषि क्षेत्र में रोजगार सीमित और मौसमी होता है। इसके अलावा, पारंपरिक कृषि में तकनीकी विकास की कमी के कारण भी रोजगार के अवसर सीमित हो रहे हैं।

बेरोजगारी के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

1. मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

बेरोजगारी का सबसे बड़ा प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। लंबे समय तक बेरोजगार रहने वाले युवाओं में आत्म-सम्मान की कमी, चिंता, और अवसाद जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। यह न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि उनके पारिवारिक और सामाजिक जीवन में भी तनाव उत्पन्न करता है। इसके कारण कई बार नशीली दवाओं और अन्य सामाजिक बुराइयों की ओर युवा आकर्षित होते हैं।

2. आर्थिक अस्थिरता

बेरोजगारी का सीधा असर देश की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता है। जब बड़ी संख्या में युवा बेरोजगार होते हैं, तो उनके पास क्रय शक्ति (Purchasing Power) कम हो जाती है। इससे देश की उपभोक्ता अर्थव्यवस्था कमजोर होती है, जिसका असर जीडीपी पर भी पड़ता है। इसके साथ ही, बेरोजगारी का सीधा असर बचत और निवेश पर भी पड़ता है।

3. सामाजिक असंतोष और अपराध दर में वृद्धि

बेरोजगारी से असंतोष और हताशा की भावना उत्पन्न होती है, जो सामाजिक असंतोष को जन्म देती है। बेरोजगार युवा कई बार अपराध, हिंसा, और गैरकानूनी गतिविधियों की ओर आकर्षित हो जाते हैं, जिससे समाज में अस्थिरता का खतरा बढ़ता है।

बेरोजगारी के समाधान के लिए प्रयास

1. कौशल विकास और शिक्षा में सुधार

भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों ने कौशल विकास के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे कि प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)। इस योजना का उद्देश्य युवाओं को उद्योगों के अनुकूल कौशल प्रदान करना है ताकि वे बाजार की आवश्यकताओं के अनुसार खुद को तैयार कर सकें।

2. स्वरोजगार और स्टार्टअप्स को बढ़ावा

बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए सरकार ने स्टार्टअप इंडिया और मुद्रा योजना जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनका उद्देश्य युवाओं को स्वरोजगार की दिशा में प्रेरित करना है। ये योजनाएं आर्थिक सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करती हैं ताकि युवा अपने व्यापारिक उद्यम शुरू कर सकें और दूसरों को भी रोजगार प्रदान कर सकें।

3. ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजित किए जा रहे हैं। इसके तहत सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा निर्माण, जल संरक्षण और वृक्षारोपण जैसी परियोजनाओं में रोजगार प्रदान करती है।

4. निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर

भारत में निजी क्षेत्र रोजगार के बड़े स्रोत के रूप में उभरा है। तकनीकी विकास और वैश्वीकरण के कारण आईटी, बीपीओ, और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़े हैं।

सरकार की पहल और योजनाएँ

1. आत्मनिर्भर भारत अभियान

आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत, भारत सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार सृजन के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसके तहत मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके साथ ही, छोटे और मध्यम उद्योगों (SMEs) को भी आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है।

2. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY)

इस योजना का उद्देश्य युवाओं को बिना गारंटी के ऋण प्रदान करके उन्हें स्वरोजगार और छोटे उद्योगों की शुरुआत करने के लिए प्रोत्साहित करना है। यह योजना विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के युवाओं के लिए फायदेमंद साबित हो रही है।

3. मेक इन इंडिया

“मेक इन इंडिया” अभियान के माध्यम से भारत सरकार देश में उत्पादन और मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के प्रयास कर रही है। इसका मुख्य उद्देश्य रोजगार सृजन करना और विदेशी निवेश को आकर्षित करना है, जिससे युवाओं के लिए नए रोजगार के अवसर पैदा हों।

बेरोजगारी का भविष्य और समाधान की राह

भारत में बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन सही नीतियों और योजनाओं के माध्यम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। सरकार की नीतियों, शिक्षा में सुधार, और निजी क्षेत्र में अवसरों की वृद्धि से आने वाले वर्षों में रोजगार के क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन देखे जा सकते हैं।

आवश्यकता इस बात की है कि सरकार, उद्योग, और समाज मिलकर काम करें ताकि भारत के युवा को उसके कौशल के अनुरूप रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकें। इसके अलावा, युवाओं को स्वरोजगार और उद्यमिता की दिशा में प्रेरित करना भी आवश्यक है, ताकि वे खुद के साथ-साथ दूसरों के लिए भी रोजगार सृजित कर सकें।

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