अमेरिका के पूर्व राजदूत टिम रोमर ने कहा है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीयों पर नया और भारी H-1B वीजा शुल्क लगाने की योजना, भारत-अमेरिका व्यापार समझौते के बाद फिर से बातचीत का विषय बन सकती है। ट्रंप प्रशासन का यह कदम आव्रजन पर सख्ती के बीच आया है, जिसका असर भारतीय आईटी कंपनियों और कुशल पेशेवरों पर पड़ेगा। पहले से ही अमेरिका ने 50% टैरिफ बढ़ा दिया है और अब प्रस्तावित 1 लाख डॉलर का वीजा शुल्क भारतीय छात्रों और पेशेवरों के लिए अमेरिकी अवसरों को चुनौतीपूर्ण बना सकता है। फिलहाल भारत इस फैसले के प्रभाव का अध्ययन कर रहा है।
रोमर ने कहा कि यह कदम दोनों देशों के रिश्तों में बाधा डाल सकता है, लेकिन उम्मीद है कि व्यापार वार्ता के बाद वीजा मुद्दे पर फिर विचार किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि संभव है कि अदालत या अमेरिकी कांग्रेस इस फैसले पर रोक लगा दे, क्योंकि H-1B वीजा की संख्या तय करने का अधिकार कांग्रेस के पास है।
भारतीय पेशेवरों और छात्रों के लिए लाभ
रोमर ने जोर देकर कहा कि भारतीय छात्रों और पेशेवरों को H-1B वीजा देना अमेरिका के लिए भी फायदेमंद है। ये छात्र पीएचडी करते हैं, नई कंपनियां शुरू करते हैं और सैकड़ों-हजारों नौकरियों का सृजन करते हैं। अध्ययन के अनुसार, लगभग 25% नई टेक्नोलॉजी नौकरियां भारतीय मूल के छात्रों द्वारा बनाई जाती हैं, जो बाद में CEO बनकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं।
भारत इस पहलू पर भी जोर देता रहा है कि H-1B वीजा धारक दोनों देशों के बीच नवाचार, तकनीकी विकास और लोगों से लोगों के संबंधों को मजबूत करते हैं। विदेश मंत्रालय ने कहा कि नीतियों का मूल्यांकन परस्पर लाभों को ध्यान में रखकर किया जाएगा।