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फ्रांस में राजनीतिक संकट! एक महीने में ही प्रधानमंत्री ने दिया इस्तीफा, राष्ट्रपति मैक्रों की मुश्किलें बढ़ीं

फ्रांस के प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू ने एक महीने से भी कम समय में अपने पद से इस्तीफा दे दिया. वह पिछले डेढ़ साल में चौथे प्रधानमंत्री हैं, जो अपने पद का त्याग कर चुके हैं. साल 2017 में जब राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का चुनाव हुआ था, तब उन्हें शांति और स्थिरता का प्रतीक माना गया था. फ्रांस के पांचवें गणराज्य के पहले मध्यमार्गी राष्ट्रपति के रूप में मैक्रों ने अपनी नई राजनीतिक पार्टी ‘ला रिपब्लिक एन मार्शे’ के जरिए बड़ा समर्थन जुटाया था, जिसमें कई नए राजनीतिक चेहरे शामिल थे. पहले साल में यह स्थिरता दिखाई दी.

मैक्रों ने राष्ट्रपति चुनावों के दूसरे दौर में धुर दक्षिणपंथी नेता मरीन ले पेन को हराया था और उनके समर्थक चुप हो गए थे. विरोध सीमित था, लेकिन अब मैक्रों के पास प्रधानमंत्री नहीं बचा है, वह कोई महत्वपूर्ण कानून पारित नहीं कर पा रहे हैं और इस्तीफे की मांग बढ़ रही है.

2018 से शुरू हुईं इमैनुएल मैक्रों की मुसीबतें

मैक्रों के लिए समस्याएं 2018 में शुरू हुईं, जब गिलेट जॉन (येलो जैकेट आंदोलन) ने ईंधन कीमतों और उनकी आर्थिक योजनाओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. इसके बाद कोविड महामारी आई, जो मैक्रों के पूर्ववर्तियों से बिल्कुल अलग चुनौती थी. 2022 में, मरीन ले पेन फिर से चुनाव के दूसरे दौर में पहुंचे और इस बार उनका मुकाबला 2017 से कहीं ज्यादा कड़ा था.

फ्रांस की राजनीतिक स्थिति को नया मोड़ देने के लिए, 2024 में मैक्रों ने गेब्रियल अटाल को प्रधानमंत्री नियुक्त किया, जो देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने. लेकिन यह प्रयास असफल साबित हुआ और जून 2024 के यूरोपीय चुनावों में मैक्रों की पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा.

फ्रांस की राष्ट्रीय असेंबली में बढ़ गया था गतिरोध

इसके बाद, मैक्रों ने जुलाई 2024 में अपने राजनीतिक विरोधियों, खासकर मरीन ले पेन की पार्टी रासाम्बल्मां नेशनल के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया देने के लिए मध्यावधि चुनाव कराए. इसके परिणामस्वरूप फ्रांसीसी राष्ट्रीय असेंबली में गतिरोध बढ़ गया, जहां कोई भी प्रमुख राजनीतिक पार्टी बहुमत हासिल करने में असफल रही.

पीएम पद से इस्तीफा देते हुए क्या बोले सेबेस्टियन लेकोर्नू

इसके बाद प्रधानमंत्री पद पर एक के बाद एक कई बदलाव हुए. गेब्रियल अटाल, मिचेल बार्नियर और फ्रांस्वा बैरू के बाद, आखिरकार सेबेस्टियन लेकोर्नू को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. लेकिन वह भी एक महीने से भी कम समय में इस्तीफा देने को मजबूर हो गए, यह बताते हुए कि संसद में विभिन्न दलों के बीच समझौते की कमी के कारण काम करना असंभव हो गया था.

फ्रांस में यह राजनीतिक अस्थिरता पिछले कुछ समय से गहरी हो गई है. हाल के ब्लोकोंस तौ! (सब कुछ रोक दो) विरोध आंदोलन ने देश के बड़े हिस्से को ठप कर दिया है और यातायात में भारी व्यवधान पैदा किया है.

फ्रांस की राजनीतिक हालत ठीक नहीं

राजनीतिक हालात अब फ्रांस के उस दौर की याद दिलाते हैं, जब देश को नाजियों से हार का सामना करना पड़ा था. भ्रष्टाचार, घोटाले और शाही राजनीतिक अधिकारियों के खिलाफ जारी खबरों ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है. हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी और मरीन ले पेन दोनों को भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी ठहराया गया है.

अब, मैक्रों को भविष्य के लिए युवा नेताओं की ओर देखना पड़ सकता है. वे गेब्रियल अटाल जैसे नेता को आगे बढ़ा सकते हैं, जो वामपंथी और दक्षिणपंथी दोनों के साथ काम कर सकते हैं, लेकिन इससे उनके आर्थिक सुधारों में कमी आनी तय है. या फिर, मैक्रों को एक और चुनाव की ओर जाना पड़ सकता है, जिसमें सभी प्रमुख उम्मीदवार युवा होंगे और पुराने भ्रष्टाचार के दाग से मुक्त होंगे. चाहे वह धुर दक्षिणपंथी जॉर्डन बार्डेला हों, ला फ्रांस इनसौमी के माथिल्दे पैनोट या फिर अटाल, सभी प्रमुख राजनीतिक खिलाड़ी 40 वर्ष से कम आयु के होंगे.

मैक्रों के खिलाफ फ्रांस में तेज हो सकती है इस्तीफे की मांग

मैक्रों को विश्व मंच पर अपनी भूमिका निभाते हुए उम्मीद करनी होगी कि उनके समर्थक वामपंथी गठबंधन को साथ लाने में सफल होंगे. यदि ऐसा नहीं हुआ, तो अगले दो साल इंतजार करना लंबा हो सकता है और यदि कोई रास्ता नहीं निकला तो मैक्रों के खिलाफ इस्तीफे की मांग और तेज हो सकती है.

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