अमेरिका की सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी (CIA) के पूर्व अधिकारी जॉन किरियाकू ने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ को लेकर बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने दावा किया कि परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की चाभी अमेरिका के हाथों सौंप दी थी। उनके मुताबिक उस समय अमेरिका ने पाकिस्तान को इसके बदले भारी रकम दी थी।
उन्होंने बताया कि जब वे 2002 में पाकिस्तान में तैनात थे, तब उन्हें अनौपचारिक रूप से बताया गया था कि पेंटागन पाकिस्तानी परमाणु हथियारों को नियंत्रित करता है। मुशर्रफ ने यह नियंत्रण इसलिए अमेरिका को सौंपा क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं ये हथियार आतंकवादियों के हाथ न लग जाएं।
जॉन किरियाकू ने यह भी बताया कि 2001 के संसद हमले और 2008 के मुंबई हमलों के बाद अमेरिका को उम्मीद थी कि भारत जवाबी कार्रवाई करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि भारत ने उस वक्त “रणनीतिक धैर्य” दिखाया और यह दुनिया को परमाणु युद्ध से बचाने वाला कदम साबित हुआ।
उनके अनुसार अब भारत उस स्तर पर पहुंच चुका है जहां वह रणनीतिक धैर्य को कमजोरी के रूप में नहीं देख सकता, इसलिए आज की परिस्थितियों में जवाबी कदम उठाना उसकी मजबूरी बन गया है।
उन्होंने आगे कहा कि मुशर्रफ ने अमेरिका को पाकिस्तान में खुलकर काम करने की छूट दी थी। उस समय दोनों देशों के रिश्ते बेहद घनिष्ठ थे। अमेरिका को तानाशाहों के साथ काम करना आसान लगता है क्योंकि तब उसे जनता या मीडिया की आलोचना की चिंता नहीं करनी पड़ती।
जॉन किरियाकू के मुताबिक, अमेरिका ने पाकिस्तान को करोड़ों डॉलर की आर्थिक मदद दी और मुशर्रफ से लगातार संपर्क बनाए रखा। हालांकि, मुशर्रफ ने काउंटर टेररिज्म में सहयोग का दिखावा करते हुए सेना और कट्टरपंथियों को खुश रखने के लिए भारत विरोधी गतिविधियां जारी रखीं।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना को अल-कायदा की परवाह नहीं थी; उसका ध्यान भारत पर केंद्रित था। इसलिए मुशर्रफ को दोहरी नीति अपनानी पड़ी—अमेरिका के साथ सहयोग का दिखावा करते हुए भारत के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देना।


































