
वाराणसी, लखनऊ: बनारस जिसे वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है, अपनी तंग गलियों और अनोखी खानपान परंपराओं के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

यहां के हर गली-नुक्कड़ पर आपको कुछ न कुछ स्वादिष्ट और अद्वितीय खाने की चीजें मिलेंगी, लेकिन भैरव बाजार से ठठेरी बाजार के बीच पड़ने वाले सोराकुंआ में एक ऐसा नाम है, जिसने अपने जायके से लोगों का दिल जीत लिया है। यह नाम है दीना महराज का, जो पिछले 60 वर्षों से अपनी मसालेदार कचौड़ियों और घुघनी चाट के लिए प्रसिद्ध हैं।
75 साल के दीना महराज और उनका अनोखा स्वाद

दीना महराज, जो अब 75 वर्ष के हो चुके हैं, आज भी कचौड़ी बनाने की अपनी पारंपरिक कला को उसी लगन और जुनून के साथ निभाते हैं, जैसे उन्होंने वर्षों पहले इसे शुरू किया था। उनकी कचौड़ियां बनारस के लोगों के बीच एक खास जगह रखती हैं, और जो भी एक बार उनके हाथ का बना हुआ खाता है, वह बार-बार वापस आता है। कचौड़ी में इस्तेमाल होने वाले मसालों की तुलना महराज आयुर्वेद से करते हैं, जिसमें हर मसाला न केवल स्वाद बढ़ाता है, बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है।
दुकानदारी का समय और स्थान

दीना महराज की दुकान का समय भी कुछ खास है। वह रोज़ाना शाम चार बजे से लेकर छह बजे तक ही अपनी दुकान खोलते हैं। तंग गलियों के बीच यह दो घंटे का समय लोगों के लिए सोराकुआं की गलियों में एक जश्न जैसा होता है। यहां आने वाले लोग जानते हैं कि इस दौरान उन्हें बेहतरीन कचौड़ी, घुघनी और चटनी का स्वाद चखने को मिलेगा।
घुघनी और काला चना की विशेषता

दीना महराज की कचौड़ियों के साथ जो घुघनी (काला चना) परोसी जाती है, उसकी भी अपनी खासियत है। इसे दीना महराज खुद खास मसालों और तरीकों से तैयार करते हैं। साथ ही, पुदीने की खट्टी चटनी की भी अपनी एक पहचान है, जो पूरे साल बारहों महीने उपलब्ध रहती है। दीना महराज के कस्टमर कहते हैं कि घुघनी और चटनी के बिना उनकी कचौड़ी अधूरी है।
कोयले की धीमी आंच पर तैयार होती हैं कचौड़ियां

दीना महराज की कचौड़ी की एक और खास बात यह है कि यह कोयले की धीमी आंच पर तैयार की जाती हैं। हींग और मसालों की खुशबू कोयले की आंच पर और भी बढ़ जाती है, जिससे कचौड़ी का स्वाद बेहद लाजवाब हो जाता है। कचौड़ियों में भरा जाता है मसालेदार आलू, जो हर बाइट में ज़बर्दस्त स्वाद का एहसास कराता है। इसे खाने के बाद ग्राहक महराज की कचौड़ियों के दीवाने हो जाते हैं।
60 वर्षों की धरोहर

दीना महराज की कचौड़ी की दुकान कोई आज की बात नहीं है। इस स्वादिष्ट सफर की शुरुआत 60 साल पहले हुई थी। महराज और उनके परिवार के सदस्य मिलकर इस दुकान को संभालते हैं। उनके दोनों बेटे भी इस परंपरा को आगे बढ़ाने में उनका साथ दे रहे हैं। यह सिर्फ एक दुकान नहीं है, बल्कि एक ऐसी धरोहर है जो बनारस के लोगों के दिलों में बसी हुई है।
पौन घंटे का इंतजार, लेकिन स्वाद का वादा

दीना महराज की कचौड़ी के दीवाने जानते हैं कि अगर वे शाम 4 से 6 बजे के बीच सोराकुआं पहुंचे, तो उन्हें यहां की खास कचौड़ी का स्वाद जरूर चखने को मिलेगा। लेकिन इस कचौड़ी के लिए थोड़ा धैर्य रखना पड़ता है। एक घान (बड़ी कचौड़ी) को पकने में कम से कम पौन घंटा लगता है। महराज इस धीमी आंच और सब्र के साथ कचौड़ियों को तैयार करते हैं ताकि उनका स्वाद और भी बेहतर हो जाए।
सीमित समय और उत्पादन

दीना महराज की दुकान का संचालन सिर्फ दो घंटे का है, लेकिन इन दो घंटों में भी वह सिर्फ तीन से चार घान ही बनाते हैं। हर घान में भरी होती हैं मसालेदार आलू की कचौड़ियां, जिनका स्वाद आपको बार-बार अपनी ओर खींचेगा। दीना महराज को अपने सीमित उत्पादन और ग्राहकों की संतुष्टि का गर्व है। वह मानते हैं कि कम समय में गुणवत्ता बनाए रखना अधिक महत्वपूर्ण है।
आज भी सिर्फ 10 रुपए में लाजवाब स्वाद

जहां आजकल हर जगह महंगाई का असर है, वहीं दीना महराज ने अपने कचौड़ी के दाम को 10 रुपए ही रखा है। महराज का कहना है कि वह इस दर पर संतुष्ट हैं और उन्हें अपने ग्राहकों को बेहतरीन स्वाद देने में खुशी मिलती है। बनारस में इतने सस्ते दाम पर ऐसा स्वाद मिलना दुर्लभ है, और शायद यही कारण है कि दीना महराज की दुकान पर हर रोज लोगों की भीड़ लगी रहती है।
दीना महराज की विरासत: आगे का सफर

दीना महराज ने जो स्वाद और परंपरा अपने जीवन के 60 वर्षों में बनाई है, उसे अब उनके दोनों बेटे भी आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। वे महराज की तरह ही कचौड़ी बनाने की इस कला को सीख रहे हैं और ग्राहकों को वही पुराने स्वाद का अनुभव करा रहे हैं। दीना महराज का यह सफर सिर्फ एक दुकानदारी नहीं है, बल्कि यह बनारस की सांस्कृतिक और खानपान धरोहर का हिस्सा है।
बनारस की पहचान का हिस्सा

दीना महराज की दुकान बनारस की खानपान परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां आने वाले पर्यटक और स्थानीय लोग जानते हैं कि अगर उन्हें असली बनारसी कचौड़ी का स्वाद चखना है, तो सोराकुआं की इस तंग गली में आना जरूरी है। महराज का यह स्वाद केवल एक कचौड़ी की दुकान नहीं है, बल्कि बनारस की संस्कृति और स्वाद का प्रतीक है।
बनारस की तंग गलियों में छुपी दीना महराज की यह दुकान आज भी लोगों को अपने खास स्वाद और परंपरा से जोड़कर रखे हुए है। 75 वर्ष की उम्र में भी दीना महराज अपने कस्टमर्स को वह पुराना स्वाद देने का प्रयास करते हैं, जो उन्होंने दशकों पहले शुरू किया था। बनारस की यह दुकान न केवल एक स्वाद का सफर है, बल्कि एक विरासत है जिसे महराज और उनका परिवार मिलकर संजोए हुए हैं।


































