
लखनऊ, 06 दिसम्बर 2024: तालिबान ने महिलाओं की नर्सिंग शिक्षा पर प्रतिबंध लगाकर एक बार फिर से अपने कट्टरपंथी रुख का परिचय दिया है। यह कदम मानवाधिकारों के खिलाफ गंभीर उल्लंघन है और 21वीं सदी में महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई को पीछे धकेलने जैसा है। इस फैसले ने न केवल अफगानिस्तान बल्कि पूरी दुनिया में आक्रोश और चिंता को जन्म दिया है।
सरोजनी नगर के भाजपा विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने तालिबान के इस फैसले पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने इसे सभ्यता को अंधकार में ले जाने वाला और महिलाओं के अधिकारों पर सीधा हमला बताया। डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा, “यह न केवल महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से वंचित करने का प्रयास है, बल्कि समाज की प्रगति और विकास के लिए भी खतरनाक है।”
महिलाओं को शिक्षा से वंचित करना: एक वैश्विक चिंता
तालिबान द्वारा महिलाओं को शिक्षा और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी से रोकना आधुनिक समाज के लिए गंभीर चुनौती है। महिलाओं पर लगे इन प्रतिबंधों के कारण वे स्वास्थ्य, शिक्षा, और रोजगार जैसे अहम क्षेत्रों में योगदान नहीं कर पा रही हैं। महिलाओं को घर की चहरदीवारी में सीमित करने और पुरुष संरक्षक के बिना बाहर जाने की मनाही जैसे नियम उनकी स्वतंत्रता को छीन रहे हैं।
डॉ. राजेश्वर सिंह ने इस फैसले को “सभ्यता के लिए घातक” बताया और कहा कि महिलाओं को उनकी शिक्षा, रोजगार और स्वतंत्रता से वंचित करना पूरी मानवता के लिए शर्मनाक है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जहां महिलाएं कल्पना चावला और मलाला यूसुफजई जैसी उपलब्धियां हासिल कर रही हैं, वहीं तालिबान जैसे संगठन उन्हें मूलभूत अधिकारों से वंचित कर रहे हैं।
महिलाओं की उपलब्धियां और तालिबान का विरोधाभास
जहां एक ओर महिलाएं अंतरिक्ष, विज्ञान, राजनीति और साहित्य जैसे क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं, वहीं तालिबान का यह फैसला उनके योगदान और क्षमता को अनदेखा करता है। कल्पना चावला, जैसिंडा अर्डर्न, और मलाला यूसुफजई जैसी महिलाओं ने वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाई है। वहीं तालिबान का यह कदम इस बात का विरोधाभास है कि एक ओर महिलाएं ऊंचाइयों को छू रही हैं और दूसरी ओर उन्हें शिक्षा से वंचित किया जा रहा है।
डॉ. राजेश्वर सिंह की अपील: वैश्विक एकजुटता की जरूरत
डॉ. राजेश्वर सिंह ने इस विषय पर वैश्विक समुदाय से एकजुट होकर तालिबान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने की अपील की। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) जैसे संगठनों से इस कदम की कड़ी निंदा करने और तालिबान पर दबाव बनाने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि यह केवल महिलाओं के अधिकारों का मुद्दा नहीं है, बल्कि पूरे समाज के विकास और भविष्य से जुड़ा हुआ है। मुस्लिम धर्मगुरुओं और संगठनों को इस्लाम की प्रगतिशील शिक्षाओं के आधार पर महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए।
महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा अनिवार्य
तालिबान का यह कदम पूरी दुनिया को चेतावनी है कि अगर महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए सख्त कदम नहीं उठाए गए तो यह न केवल अफगानिस्तान बल्कि मानवता के लिए भी घातक हो सकता है। यह समय है कि सभी लोकतांत्रिक देश और मानवाधिकार संगठन तालिबान के खिलाफ एकजुट हों और महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए आवाज उठाएं।
डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश को इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं के बिना कोई भी समाज प्रगति नहीं कर सकता।