
कौशाम्बी: जनपद कौशांबी में पुलिस अधीक्षक के रूप में ढाई साल तक अपनी सेवाएं देने वाले बृजेश कुमार श्रीवास्तव अब इटावा के लिए रवाना हो गए हैं। लेकिन वे केवल कुर्सी नहीं छोड़ रहे, बल्कि अपने पीछे एक ऐसा कार्यकाल छोड़ गए हैं, जिसे वर्षों तक याद किया जाएगा। उनका नेतृत्व कौशांबी पुलिस के लिए एक नई सोच, नई ऊर्जा और नई दिशा लेकर आया।
सिर्फ अफसर नहीं, मैदान के सिपाही भी रहे
चाहे त्योहारों की भीड़ हो या कानून व्यवस्था की कोई बड़ी चुनौती, बृजेश श्रीवास्तव ने हर बार खुद मोर्चा संभाला। वे सिर्फ़ निर्देश देने वाले अधिकारी नहीं थे, बल्कि हर मौके पर घटनास्थल पर मौजूद एक जिम्मेदार सिपाही की तरह दिखे। अपराधियों के खिलाफ़ कार्रवाई में सख्ती और आम जनता से संवाद में सहजता—यही उनकी पहचान बनी।
महिला सुरक्षा और साइबर क्राइम के खिलाफ़ लिया मजबूत स्टैंड
श्रीवास्तव के कार्यकाल में महिला सुरक्षा को विशेष प्राथमिकता मिली। ‘महिला शक्ति हेल्पलाइन’ जैसे प्रयासों से न सिर्फ महिलाओं में विश्वास बढ़ा, बल्कि अपराधियों के हौसले भी पस्त हुए। साइबर अपराधों के बढ़ते खतरे को समय रहते पहचानते हुए उन्होंने उस दिशा में भी ठोस कदम उठाए, जिससे कौशांबी पुलिस तकनीकी रूप से भी और अधिक सक्षम बनी।
भरोसे की बुनियाद पर खड़ी की पुलिसिंग
जनता और पुलिस के बीच की दूरी को उन्होंने लगातार कम किया। थानों को जनता के लिए खुला और सुलभ बनाया गया। ‘समुदाय आधारित पुलिसिंग’ को ज़मीनी स्तर पर लागू कर उन्होंने यह साबित किया कि भरोसा और संवाद ही अपराध नियंत्रण का सबसे मजबूत हथियार है।
एक प्रेरणादायक नेतृत्व, जो अधीनस्थों में जोश भर गया
बृजेश श्रीवास्तव ने अधीनस्थ पुलिसकर्मियों में सिर्फ़ अनुशासन ही नहीं, सेवा का भाव भी जगाया। उनका व्यवहार, कार्यशैली और ईमानदारी, सब कुछ उन्हें अधीनस्थों के लिए एक आदर्श अधिकारी बनाता है। उनके नेतृत्व में पुलिस महकमे ने न केवल कड़े नियमों का पालन किया, बल्कि मानवीयता की मिसालें भी पेश कीं।
कौशांबी कह रहा अलविदा, लेकिन सम्मान के साथ
उनका तबादला इटावा के लिए एक नई शुरुआत है, लेकिन कौशांबी की जनता के लिए यह एक भावुक विदाई है। यहाँ के लोग उन्हें एक भरोसेमंद, संवेदनशील और दूरदर्शी अधिकारी के रूप में याद रखेंगे। पुलिसिंग के इस स्वर्णिम अध्याय को कौशांबी वर्षों तक संजोकर रखेगा।