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इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: चित्रकूट में निचली अदालत से मिली सजा में एडवोकेट जितेन्द्र सिंह की कड़ी मेहनत से परिवार को राहत, बेक़सूर को मिला न्याय

इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: चित्रकूट में निचली अदालत से मिली सजा में एडवोकेट जितेन्द्र सिंह की कड़ी मेहनत से परिवार को राहत, बेक़सूर को मिला न्याय

प्रयागराज/लखनऊ/चित्रकूट, 16 दिसंबर 2024: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दहेज हत्या के एक जटिल मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। चित्रकूट के राजापुर (अब सरधुआ) थाना क्षेत्र के देवारी गांव निवासी अखिलेश सिंह को दहेज हत्या के आरोप में निचली अदालत से आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

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11 दिसंबर 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत के इस फैसले को निरस्त करते हुए तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। यह फैसला न केवल कानूनी प्रक्रिया की निष्पक्षता को दर्शाता है, बल्कि एक परिवार के लिए न्याय और राहत का प्रतीक बन गया है।

मामले की पृष्ठभूमि: क्या था पूरा मामला?

13 सितंबर 2014 को अखिलेश सिंह की पत्नी की जलकर मौत हो गई थी। मृतका के मायके वालों ने इस घटना के लिए ससुराल पक्ष को जिम्मेदार ठहराते हुए दहेज हत्या का आरोप लगाया। मामला दर्ज हुआ, और अखिलेश सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया।

परिवार के अनुसार, घटना के समय अखिलेश सिंह ने अपनी पत्नी को बचाने की कोशिश की, जिसमें वह खुद भी बुरी तरह झुलस गया था। विजया हॉस्पिटल में उनका इलाज चार महीने तक चला। बावजूद इसके, मृतका के परिवार ने गंभीर आरोप लगाते हुए दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज कराया।

निचली अदालत ने इस मामले में अखिलेश सिंह को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह फैसला अखिलेश व उसके परिवार के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं था।

परिवार की त्रासदी और कानूनी लड़ाई

truenewsup.com के मुख्य संपादक शिवसागर सिंह चौहान ने जब इस मामले में अखिलेश सिंह के पिता मास्टर लक्षनपाल सिंह से बात की, तो उन्होंने बताया कि यह घटना उनके परिवार के लिए किसी बड़े सदमे से कम नहीं थी।

मास्टर लक्षनपाल सिंह, जो एक सेवानिवृत्त शिक्षक और क्षेत्र में सम्मानित नागरिक हैं, ने कहा:

“मेरे बेटे अखिलेश का इस घटना में कोई दोष नहीं था। वह अपनी पत्नी को बचाने में बुरी तरह झुलस गया था। लेकिन समाज और कानून ने हमें पूरी तरह तोड़ दिया। बहू को बचा नहीं सके और बेटे को जेल में देखना सबसे बड़ा दर्द था।”

वकील जितेंद्र सिंह का योगदान:

इस कठिन समय में परिवार ने एडवोकेट जितेंद्र सिंह से संपर्क किया। उन्होंने पूरे मामले को समझा और हाईकोर्ट में याचिका दायर की, उन्होंने परिवार को आश्वासन दिया “परेशान मत होइए, उच्च न्यायालय से आपको न्याय मिलेगा।”

इसके बाद उन्होंने साक्ष्यों और तथ्यों का गहराई से अध्ययन किया और प्रभावशाली पैरवी की। उनकी मेहनत के चलते हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले से हाईकोर्ट द्वारा उन्हें राहत मिली।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला और उसका महत्व

बीती 11 दिसंबर 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की कोर्ट नंबर 43 में न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की डबल बेंच ने निचली अदालत के फ़ैसले को निरस्त करते हुए तत्काल जेल से रिहा करने का आदेश जारी किया।

इस फैसले ने परिवार को नई उम्मीद दी और न्यायपालिका के प्रति उनका विश्वास फिर से मजबूत किया।

परिवार की भावनाएं और नई शुरुआत की उम्मीद

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद, देवारी निवासी अखिलेश सिंह के पिता मास्टर लक्षनपाल सिंह ने कहा:

“यह मामला हमारी जिंदगी का सबसे बड़ा झटका था। लेकिन अब, न्यायालय ने हमारे परिवार को नई जिंदगी जीने का मौका दिया है। हम इस कठिन समय को पीछे छोड़कर सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं।”

अखिलेश सिंह पर पड़े प्रभाव
जेल में बिताया गया समय अखिलेश के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत कठिन रहा। परिवार ने बताया कि यह समय उनके बेटे के लिए किसी यातना से कम नहीं था। अब, रिहाई के बाद, वह अपने जीवन को नए सिरे से शुरू करने की कोशिश करेगा।

इस मामले का सामाजिक और कानूनी संदेश

दहेज हत्या जैसे गंभीर मामलों में न्यायपालिका का यह फैसला समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देता है:
1. न्याय की निष्पक्षता: कानून हमेशा साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर काम करता है।
2. व्यक्तिगत परिस्थितियों की समझ: न्यायपालिका ने मामले की गहराई में जाकर हर पहलू का विश्लेषण किया और सही निर्णय लिया।
3. समाज के लिए सीख: दहेज हत्या जैसे गंभीर आरोप लगाते समय तथ्यों की सटीकता सुनिश्चित करनी चाहिए।

परिवार की नई शुरुआत

इस फैसले ने न केवल अखिलेश सिंह को राहत दी, बल्कि उनके परिवार को एक नई उम्मीद दी है। मास्टर लक्षनपाल सिंह ने कहा कि वे इस कठिन समय को पीछे छोड़कर अपने परिवार के साथ एक सकारात्मक जीवन जिएँगे।

यह खबर केवल कानूनी लड़ाई की नहीं, बल्कि एक परिवार के दर्द, संघर्ष और पुनःस्थापना की कहानी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला न्यायपालिका के प्रति विश्वास को मजबूत करता है और समाज को सच्चाई के महत्व का संदेश देता है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला एक परिवार के लिए राहत और न्याय का प्रतीक है। यह घटना बताती है कि कैसे कानून और न्यायपालिका सच्चाई और साक्ष्यों पर आधारित फैसले करते हैं। यह समाज में न्याय और निष्पक्षता का संदेश देते हुए सभी को सच्चाई के साथ खड़े होने की प्रेरणा देता है।

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