HomeLucknowहरितालिका तीज: व्रत, विधि, महत्व और परंपराएं

हरितालिका तीज: व्रत, विधि, महत्व और परंपराएं

हरितालिका तीज हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए प्रसिद्ध है और इसे विवाहित और अविवाहित महिलाएं दोनों करती हैं। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत करती हैं, जबकि अविवाहित लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं।

हरितालिका तीज का महत्व

हरितालिका तीज का नाम “हरित” और “आलिका” शब्दों से मिलकर बना है, जिसका मतलब होता है “हरण करना” और “मित्र”। यह नाम एक पौराणिक कथा से जुड़ा है, जिसमें माता पार्वती की सखी उन्हें उनके पिता के घर से भगवान शिव से मिलने के लिए हरण कर ले गई थीं। भगवान शिव से विवाह करने के लिए माता पार्वती ने घोर तपस्या की थी, और अंततः शिवजी ने उन्हें स्वीकार किया। इस कथा के अनुसार, हरितालिका तीज पर व्रत करने वाली महिलाएं माता पार्वती की भांति अपने पति के प्रति सच्चे प्रेम और समर्पण की भावना रखती हैं।

व्रत और पूजन विधि

  1. स्नान और शुद्धिकरण: हरितालिका तीज के दिन सुबह जल्दी उठकर महिलाएं स्नान करके शुद्ध हो जाती हैं। इसके बाद वे साफ वस्त्र धारण करती हैं।
  2. निर्जला व्रत: इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, यानी बिना पानी पिए पूरा दिन उपवास करती हैं। यह व्रत अत्यधिक कठिन होता है और इसे निर्बाध भाव से करने का संकल्प लिया जाता है।
  3. पूजा की तैयारी: पूजा के लिए भगवान शिव, माता पार्वती, और भगवान गणेश की मिट्टी की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं। घर के आंगन या मंदिर में एक चौकी पर इन प्रतिमाओं को स्थापित किया जाता है।
  4. पूजन सामग्री: पूजन के लिए जल, फल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, चंदन, वस्त्र, और अन्य पूजन सामग्री का उपयोग किया जाता है। महिलाओं द्वारा श्रृंगार की वस्तुएं भी पूजन में शामिल की जाती हैं।
  5. विधिवत पूजा: पूजा के दौरान, महिलाएं हाथ में जल, फल, और फूल लेकर संकल्प करती हैं। उसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती, और भगवान गणेश की पूजा विधिपूर्वक करती हैं। व्रती महिलाएं तीज कथा का श्रवण करती हैं, जिसमें माता पार्वती की कठिन तपस्या और भगवान शिव से उनके विवाह की कथा सुनाई जाती है।
  6. जागरण और भजन: हरितालिका तीज की रात महिलाएं जागरण करती हैं। वे भजन-कीर्तन करती हैं और माता पार्वती की स्तुति में गीत गाती हैं।

परंपराएं और रीति-रिवाज

  • मेंहदी और सजावट: इस दिन महिलाएं हाथों और पैरों में मेंहदी लगाती हैं और सुंदर पारंपरिक परिधान पहनती हैं। विवाहित महिलाएं अपने ससुराल से मिले वस्त्र और आभूषण पहनती हैं।
  • सामूहिक आयोजन: कई स्थानों पर सामूहिक रूप से हरितालिका तीज का आयोजन होता है, जिसमें महिलाएं एकत्रित होकर पूजा करती हैं और एक-दूसरे के साथ त्योहार की खुशियाँ बांटती हैं।
  • उपहार और सौभाग्य की वस्तुएं: तीज के अवसर पर सास अपनी बहुओं को तीज के उपहार के रूप में साड़ी, गहने, और अन्य सौभाग्य की वस्तुएं देती हैं। इसे ‘सिन्हारा’ कहा जाता है।

आधुनिक संदर्भ में हरितालिका तीज

आज के समय में भी हरितालिका तीज का महत्व कम नहीं हुआ है। आधुनिक महिलाएं भी अपनी व्यस्त जीवनशैली के बावजूद इस व्रत को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करती हैं। इस दिन महिलाएं सोशल मीडिया पर भी अपने तीज के अनुभव साझा करती हैं, जिससे यह पर्व एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में उभर कर आता है।

हरितालिका तीज न केवल एक धार्मिक व्रत है, बल्कि यह महिलाओं के लिए एकता, प्रेम, और समर्पण का प्रतीक भी है। यह पर्व हमें सिखाता है कि कठिनाइयों का सामना कैसे किया जाए और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए धैर्य और समर्पण कितना आवश्यक है। हरितालिका तीज का व्रत महिलाओं को आत्मबल और सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है, जिससे वे अपने परिवार और समाज के प्रति और भी जिम्मेदार बनती हैं।

इस प्रकार, हरितालिका तीज नारी शक्ति, धैर्य, और पारिवारिक प्रेम का एक अद्वितीय प्रतीक है।

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