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सुप्रीम कोर्ट से इस वक्त का बड़ा फैसला : यूपी विधान परिषद सचिवालय भर्ती मामले में CBI जांच आदेश रद्द

  • सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिए गए CBI जांच आदेश को निरस्त कर दिया।
  • सेवा विवाद को स्वतःसंज्ञान लेकर PIL में बदलना गलत ठहराया गया।
  • बिना ठोस आपराधिक आरोपों के CBI जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।
  • विधान परिषद को जवाब दाखिल करने का अवसर दिए बिना आदेश पारित किया गया था।
  • 2019 के भर्ती नियमों में संशोधन को आपराधिकता के दायरे में नहीं माना गया।

नई दिल्ली/लखनऊ: सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश विधान परिषद सचिवालय में तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी भर्ती विवाद से जुड़ा एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 18 सितंबर 2023 और 3 अक्टूबर 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिए गए CBI जांच के आदेशों को निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल संदेह या आशंका के आधार पर आपराधिक जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।

मामले की पृष्ठभूमि

विधान परिषद सचिवालय में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की भर्ती को लेकर विवाद सामने आया था। इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले को जनहित याचिका (PIL) के रूप में दर्ज किया और CBI जांच का आदेश दे दिया। हाईकोर्ट का यह आदेश बिना सचिवालय को जवाब दाखिल करने का अवसर दिए पारित किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ

सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कई महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं-

  • किसी सेवा विवाद (Service Dispute) को स्वतःसंज्ञान लेकर जनहित याचिका में बदलना उचित नहीं है।
  • मामले में किसी प्रकार की ठोस आपराधिकता का आरोप नहीं था, इसलिए आपराधिक जांच का आधार ही नहीं बनता।
  • विधान परिषद को जवाब दाखिल करने का अवसर दिए बिना CBI जांच का आदेश पारित करना न्यायसंगत नहीं था।
  • केवल संदेह या आशंका के आधार पर CBI जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।
  • 2019 के भर्ती नियमों में संशोधन कभी चुनौती के दायरे में नहीं थे और किसी भी विधायी कार्रवाई पर आपराधिकता आरोपित नहीं की जा सकती।

CBI जांच पर सुप्रीम कोर्ट का रुख

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि CBI जैसी एजेंसियों को जांच का आदेश केवल विशेष परिस्थितियों और ठोस कारणों पर ही दिया जा सकता है। अदालतों को यह ध्यान रखना होगा कि किसी भी सामान्य प्रशासनिक या सेवा विवाद को आपराधिक जांच में नहीं बदला जा सकता।

फैसले का असर

इस आदेश के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि-

  • निचली अदालतें और हाईकोर्ट बिना ठोस कारणों के आपराधिक जांच का आदेश नहीं दे सकते।
  • सेवा विवादों को सामान्य प्रक्रिया के तहत ही निपटाया जाएगा, न कि CBI जैसी केंद्रीय जांच एजेंसी को सौंपकर।

यह फैसला भविष्य के मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण नज़ीर (precedent) बनेगा।

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