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“Zepto- A Success Story”: दो दोस्तों की मेहनत और सफलता का संघर्षों से भरा सफर- 10 मिनट में ऑर्डर डिलीवर करने वाले Zepto के मालिकों की जोश से भरी हुई यह कहानी जरूर पढें और जानें इस बड़ी सफलता का राज

  • मुंबई के आदित पालीचा (ज. 2001) और बेंगलुरु के कैवल्य वोहरा (ज. 2003) ने मिलकर Zepto की नींव रखी।
  • Stanford University की पढ़ाई छोड़कर दोनों ने स्टार्टअप की राह चुनी।
  • पहला प्रयोग KiranaKart असफल रहा, लेकिन उसी अनुभव से Zepto का जन्म हुआ।
  • Zepto ने 10 मिनट ग्रॉसरी डिलीवरी मॉडल से क्विक कॉमर्स में क्रांति ला दी।
  • कुछ ही वर्षों में कंपनी यूनिकॉर्न बनी और दोनों दोस्त भारतीय युवाओं के लिए रोल मॉडल बन गए।

लखनऊ : शिवसागर सिंह चौहान – मुख्य सम्पादक – TRUE NEWS UP : कहते हैं कि किसी भी इंसान की सफलता की असली नींव उसके बचपन और शुरुआती अनुभवों में छिपी होती है। यही बात Zepto के संस्थापक आदित पालीचा और कैवल्य वोहरा की कहानी पर पूरी तरह लागू होती है।

आदित का जन्म 2001 में मुंबई में हुआ और उनका पालन-पोषण दुबई में हुआ, जहाँ से उन्होंने पढ़ाई के साथ नेतृत्व और सोचने का अलग नजरिया विकसित किया। वहीं, कैवल्य का जन्म 2003 में बेंगलुरु में हुआ और वे भी बचपन से ही टेक्नोलॉजी और प्रोग्रामिंग में गहरी रुचि रखते थे। दोनों की यह बुनियादी जिज्ञासा और मेहनत ही आगे चलकर उनकी सफलता का आधार बनी।

बचपन और शुरुआती जीवन

आदित पालीचा का जन्म 2001 में मुंबई में हुआ। हालांकि उनका पालन-पोषण दुबई में हुआ, जहाँ उनके परिवार ने नया ठिकाना बनाया। आदित बचपन से ही तेज दिमाग के छात्र माने जाते थे। उन्होंने GEMS Modern Academy से पढ़ाई की और यहाँ उन्होंने न केवल शैक्षणिक उत्कृष्टता दिखाई बल्कि नेतृत्व और टीमवर्क की क्षमता भी विकसित की। गणित और कंप्यूटर साइंस उनके पसंदीदा विषय रहे, और यही रुचि उन्हें भविष्य की राह दिखाने वाली थी।

दूसरी ओर, कैवल्य वोहरा का जन्म 15 मार्च 2003 को बेंगलुरु में हुआ। कुछ ही समय बाद उनका परिवार भी दुबई चला गया। उन्होंने Dubai College से शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उनका फोकस कंप्यूटर साइंस और प्रोग्रामिंग पर रहा। कैवल्य की रुचि टेक्नोलॉजी में इतनी गहरी थी कि वे किशोरावस्था से ही विभिन्न कोडिंग प्रोजेक्ट्स पर काम करने लगे थे।

दुबई में रहते हुए दोनों की पहचान आपसी नेटवर्किंग और साझा रुचियों के चलते हुई। धीरे-धीरे यह पहचान गहरी दोस्ती में बदल गई। दोनों के सपनों और जिज्ञासा में गहरा सामंजस्य था- नए प्रयोग करना, टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके समस्याओं का समाधान खोजना और दुनिया में बदलाव लाने का सपना देखना।

स्टैनफोर्ड का सफर और बड़ा निर्णय

हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों ने अपनी मेहनत और योग्यता से दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक Stanford University में दाखिला लिया। यह किसी भी भारतीय परिवार के लिए गर्व का क्षण होता है।

स्टैनफोर्ड में दोनों कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रहे थे। यहाँ का वातावरण नवाचार और उद्यमिता से भरा हुआ था। Silicon Valley की हवा ही ऐसी है कि हर छात्र बड़े सपनों के साथ नई चीज़ें सोचता है। आदित और कैवल्य ने भी महसूस किया कि वे सिर्फ पढ़ाई तक सीमित नहीं रह सकते।

फिर आया कोविड महामारी का समय। सारी कक्षाएँ ऑनलाइन हो गईं और अमेरिका जैसे देश में भी छात्र-जीवन सामान्य नहीं रह गया। इसी दौरान दोनों ने आत्ममंथन किया और निष्कर्ष निकाला कि उनकी असली चाहत कक्षाओं में बैठकर डिग्री पाना नहीं, बल्कि अपनी ऊर्जा और आइडिया को बिज़नेस बनाने में लगाना है।

यह निर्णय आसान नहीं था। स्टैनफोर्ड छोड़ना यानी उस डिग्री और प्रतिष्ठा को छोड़ना जिसे पाने का सपना हजारों छात्र देखते हैं। परिवारों ने भी चिंता जताई कि इतनी कम उम्र में इतना बड़ा रिस्क लेना कहीं गलत साबित न हो जाए। लेकिन आदित और कैवल्य ने दृढ़ निश्चय किया- “अगर कोशिश करनी है तो अभी करनी होगी।”

पहली कोशिश: KiranaKart और असफलता का अनुभव

भारत लौटने के बाद दोनों दोस्तों ने पहला प्रयोग किया- KiranaKart। इसका उद्देश्य था स्थानीय किराना दुकानों को डिजिटल प्लेटफॉर्म से जोड़ना और ग्राहकों तक तेज़ी से सामान पहुँचाना।

शुरुआत में यह विचार आकर्षक लगा। उन्हें Y Combinator जैसे निवेशक से शुरुआती फंडिंग भी मिली। बेंगलुरु और मुंबई जैसे शहरों में इस सेवा की टेस्टिंग शुरू हुई। लेकिन जल्द ही कई चुनौतियाँ सामने आईं।

  • छोटे दुकानदारों को डिजिटल सिस्टम अपनाने में दिक्कतें आईं।
  • डिलीवरी नेटवर्क उतना मजबूत नहीं था जितना ग्राहकों की उम्मीद थी।
  • ऑर्डर प्रोसेसिंग और सप्लाई चेन में देरी होने लगी।
  • नतीजा यह हुआ कि ग्राहकों का भरोसा कमजोर पड़ा और धीरे-धीरे यह स्टार्टअप बंद करना पड़ा।

यह दोनों के लिए कड़वा अनुभव था, लेकिन यहीं से असली सीख भी मिली। उन्होंने महसूस किया कि किसी बिज़नेस की सफलता केवल आइडिया पर नहीं, बल्कि ग्राहकों की वास्तविक समस्या को समझकर उसे हल करने पर निर्भर करती है।

Zepto का जन्म: 10 मिनट डिलीवरी का वादा

KiranaKart के असफल होने के बावजूद दोनों दोस्तों ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने अनुभव से सीखा और एक नया मॉडल सोचा। मार्च 2021 में Zepto का जन्म हुआ।

Zepto का वादा था- “ग्रॉसरी सिर्फ 10 मिनट में।” यह वादा सुनकर कई लोगों ने इसे मज़ाक समझा, लेकिन आदित और कैवल्य को विश्वास था कि टेक्नोलॉजी और सही रणनीति के सहारे यह संभव है।

उन्होंने डार्क स्टोर्स का मॉडल अपनाया। ये छोटे-छोटे वेयरहाउस होते हैं जो शहर के विभिन्न हिस्सों में ग्राहकों के करीब बनाए जाते हैं। हर डार्क स्टोर से एक तय दायरे में तेज़ डिलीवरी की जाती है।

इस मॉडल की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि सामान पहले से ही स्टोर में स्टॉक रहता और डिलीवरी पार्टनर को केवल पैकेज उठाकर ग्राहक तक पहुँचना होता। इससे समय बहुत कम लगता और 10 मिनट का वादा पूरा करना संभव हुआ।

महामारी के दौर में जब लोग घरों से बाहर निकलने से बच रहे थे, Zepto एक राहत की तरह आया। दूध, ब्रेड, अंडे, दाल, तेल जैसी रोज़मर्रा की चीज़ें मिनटों में मिलना ग्राहकों के लिए बड़ी सुविधा साबित हुई।

निवेशकों का भरोसा और यूनिकॉर्न बनने का सफर

Zepto के मॉडल ने न केवल ग्राहकों का, बल्कि निवेशकों का भी ध्यान खींचा।

  • शुरुआती चरण में Y Combinator से फंडिंग मिली। इसके बाद Nexus Venture Partners, StepStone Group, और Glade Brook Capital जैसे बड़े नाम जुड़े।
  • 2022 और 2023 में कंपनी ने कई फंडिंग राउंड्स पूरे किए। हर दौर में Zepto की वैल्यूएशन तेजी से बढ़ती गई। 2023 में यह आधिकारिक तौर पर यूनिकॉर्न बन गया यानी कंपनी का मूल्य एक बिलियन डॉलर से अधिक हो गया।
  • 2024 तक इसकी वैल्यूएशन पाँच बिलियन डॉलर तक पहुँच गई और राजस्व 4,454 करोड़ रुपये का आँकड़ा पार कर गया। यह किसी भी भारतीय स्टार्टअप के लिए बेहद तेज़ प्रगति थी।
  • Zepto ने साबित किया कि अगर सही बिज़नेस मॉडल, टेक्नोलॉजी और ग्राहक-केंद्रित सोच हो, तो कम समय में भी चमत्कारिक सफलता हासिल की जा सकती है।

चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

हर बड़ी सफलता के साथ आलोचनाएँ भी आती हैं। Zepto को भी इससे गुजरना पड़ा।

  • कंपनी पर आरोप लगा कि वह कर्मचारियों से लंबे समय तक काम कराती है और उन पर दबाव डालती है। कुछ शुरुआती सह-संस्थापकों के बीच हिस्सेदारी विवाद भी अदालत तक पहुँचा।
  • ग्राहकों ने भी कई बार शिकायत की कि ऐप पर डिस्काउंट और ऑफर्स को लेकर भ्रामक तरीकों (डार्क पैटर्न) का इस्तेमाल किया जाता है।
  • डिलीवरी पार्टनर्स ने सुरक्षा और उचित वेतन को लेकर चिंताएँ जताईं। कई बार 10 मिनट की डिलीवरी की दौड़ में सड़क हादसे की खबरें भी सामने आईं।
  • इन आलोचनाओं से Zepto की छवि को झटका लगा, लेकिन आदित और कैवल्य ने इन्हें सुधारने की कोशिश की। उन्होंने कर्मचारियों की नीतियों में बदलाव किए, सुरक्षा उपाय बढ़ाए और ग्राहकों की पारदर्शिता पर ध्यान दिया।

उपलब्धियाँ और सम्मान

Zepto आज भारत के क्विक कॉमर्स सेक्टर का सबसे प्रमुख नाम है।

  • 2023 और 2024 में आदित पालीचा और कैवल्य वोहरा दोनों को Hurun India की “Under 30” सूची में शामिल किया गया।
  • कैवल्य वोहरा भारत के सबसे युवा अरबपति माने जाते हैं।
  • Zepto को कई बिज़नेस अवॉर्ड्स और इनोवेशन अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं।
  • इन सब उपलब्धियों ने साबित कर दिया कि यह दोनों दोस्त भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम में नई पीढ़ी के रोल मॉडल हैं।

जनता और ग्राहकों का नजरिया

ग्राहकों के लिए Zepto ने जीवन को आसान बनाया है। कामकाजी लोगों, छात्रों और गृहिणियों के लिए यह सबसे भरोसेमंद ऐप्स में से एक बन चुका है। कई लोग इसे सुविधा और समय बचाने के लिए सराहते हैं। खासकर मेट्रो शहरों में Zepto की लोकप्रियता बहुत अधिक है।

हालाँकि, कुछ ग्राहक अब भी मानते हैं कि कंपनी को अपने दाम और डिलीवरी चार्ज पर संतुलन बनाना चाहिए।

इस कहानी से मिलने वाला सबक

Zepto की यात्रा उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है जो कुछ नया करना चाहते हैं। यह कहानी सिखाती है :

  • असफलता अंत नहीं, बल्कि नए अवसरों की शुरुआत है।
  • बड़े सपनों को सच करने के लिए जोखिम उठाना जरूरी है।
  • आलोचनाओं को सीख में बदलना ही असली उद्यमिता है।
  • उम्र सफलता की राह में बाधा नहीं है।

आदित और कैवल्य ने यह दिखा दिया कि अगर जुनून और आत्मविश्वास हो, तो दुनिया की कोई भी मंजिल पाना संभव है। आदित पालीचा और कैवल्य वोहरा की कहानी केवल Zepto की सफलता की कहानी नहीं है। यह कहानी उन लाखों युवाओं के लिए सबक है जो किसी आइडिया को लेकर बैठे हैं लेकिन डर या संकोच के कारण कदम आगे नहीं बढ़ा पाते। 2001 में मुंबई में जन्मे आदित और 2003 में बेंगलुरु में जन्मे कैवल्य ने दिखा दिया कि बड़े सपने देखने के लिए उम्र मायने नहीं रखती। आज Zepto लाखों घरों तक पहुँच चुका है, लेकिन इसकी असली पहचान यह है कि यह दो दोस्तों के साहस और सपनों का प्रतीक है।

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