
- बिहार में मतदाता सूची से नाम हटाने को लेकर विपक्ष ने चुनाव आयोग पर वोट चोरी के आरोप लगाए।
- चुनाव आयोग ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और निष्पक्ष है।
- मुख्य चुनाव आयुक्त ने राहुल गांधी से सात दिन में हलफनामा देने की मांग की, वरना आरोप झूठे माने जाएंगे।
- आयोग ने बताया कि 1 करोड़ कर्मचारी और लाखों एजेंट मतदाता सूची तैयार करने में शामिल होते हैं।
- विपक्ष की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के बीच आयोग ने कहा कि शिकायतें सड़क पर नहीं बल्कि औपचारिक चैनलों से करनी चाहिए।
नई दिल्ली: बिहार की सियासत इस समय मतदाता सूची को लेकर गरमा गई है। विपक्षी दलों ने गंभीर आरोप लगाया है कि राज्य में जानबूझकर मतदाता सूची में गड़बड़ी की गई है और लाखों वैध मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर सबसे पहले चुनाव आयोग को घेरा और कहा कि यह लोकतंत्र के साथ सीधी छेड़छाड़ है। विपक्ष का मानना है कि यदि मतदाता सूची से लाखों नाम गायब होंगे तो यह मतदाताओं के अधिकारों का हनन होगा और चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सीधा सवाल उठेगा। यही वजह है कि इस मुद्दे पर विपक्ष अब पूरी ताक़त के साथ सड़क से संसद तक आंदोलन की तैयारी कर रहा है।
चुनाव आयोग का जवाब – आरोप पूरी तरह बेबुनियाद
विपक्ष के इन आरोपों पर चुनाव आयोग ने सख्त प्रतिक्रिया दी है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर साफ किया कि मतदाता सूची तैयार करने की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और निष्पक्ष है। उन्होंने कहा कि सभी राजनीतिक दलों को ड्राफ्ट मतदाता सूची की हार्ड कॉपी और डिजिटल कॉपी समय पर उपलब्ध कराई गई थी ताकि वे जांच कर सकें और यदि कोई त्रुटि हो तो आपत्ति दर्ज करा सकें। आयोग का कहना है कि ऐसा लगता है कि विपक्षी दलों और उनके बूथ-लेवल एजेंटों ने समय रहते अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं निभाई और अब जब सुधार की अवधि लगभग समाप्त होने वाली है, तब आरोप लगाकर भ्रम फैलाया जा रहा है। चुनाव आयोग ने दोहराया कि अभी भी 30 सितंबर तक आपत्तियां और दावे दर्ज किए जा सकते हैं और 1 अक्टूबर को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी।
राहुल गांधी से हलफनामा मांगा गया
चुनाव आयोग ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से सीधा सवाल पूछा है और उन्हें चुनौती दी है कि यदि उनके आरोप सही हैं तो वे हलफनामा देकर सबूत प्रस्तुत करें। मुख्य चुनाव आयुक्त ने स्पष्ट किया कि राहुल गांधी के पास सात दिन का समय है। यदि इस अवधि में वे हलफनामा जमा नहीं करते हैं, तो यह माना जाएगा कि उनके आरोप झूठे और राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित हैं। आयोग ने यहां तक कहा कि ऐसी स्थिति में राहुल गांधी को देश से माफी मांगनी चाहिए। चुनाव आयोग के इस बयान ने सियासी हलकों में हलचल और बढ़ा दी है क्योंकि इससे यह टकराव अब व्यक्तिगत चुनौती के स्तर पर भी पहुंच गया है।
मतदाता सूची प्रक्रिया – पारदर्शिता और संख्या का विवरण
आयोग ने मतदाता सूची तैयार करने की प्रक्रिया के बारे में भी विस्तार से बताया। मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि यह काम किसी छोटे स्तर पर नहीं होता, बल्कि इसमें बड़े पैमाने पर प्रशासनिक और तकनीकी प्रयास शामिल होते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग एक करोड़ सरकारी कर्मचारी लगते हैं। इसके अलावा, दस लाख से अधिक बूथ लेवल एजेंट और बीस लाख पोलिंग एजेंट लगातार काम करते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मतदाता सूची निष्पक्ष और सटीक हो। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर आयोग ने 1 अगस्त को उन 65 लाख मतदाताओं की सूची अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक की थी जिनके नाम हटाए गए थे। इसमें हर नाम हटाए जाने का कारण भी दर्ज है ताकि कोई भी नागरिक या राजनीतिक दल इसे जांच सके। आयोग का कहना है कि पारदर्शिता के इस स्तर के बावजूद यदि आरोप लगाए जाते हैं, तो इसका सीधा मतलब है कि विपक्ष तथ्यों की अनदेखी कर रहा है।
विपक्ष की वोटर अधिकार यात्रा और आयोग की प्रतिक्रिया
इसी बीच, राहुल गांधी ने बिहार में “वोटर अधिकार यात्रा” शुरू की है। यह यात्रा 16 दिनों तक चलेगी और इसका उद्देश्य मतदाता सूची में कथित हेरफेर के खिलाफ जनता को जागरूक करना है। इस यात्रा में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव भी शामिल हैं। यात्रा का समापन 1 सितंबर को पटना में एक बड़ी रैली के साथ होगा। दिलचस्प यह है कि चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस का समय ठीक उसी समय रखा गया जब यह यात्रा शुरू हुई। इस पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि विपक्ष को पहले औपचारिक चैनलों के माध्यम से शिकायत दर्ज करानी चाहिए थी, न कि सड़कों पर यात्रा निकालकर जनता के बीच भ्रम फैलाना चाहिए।
चुनाव आयोग का संदेश – निष्पक्षता पर अडिग
चुनाव आयोग ने इस पूरे विवाद पर अपना अंतिम रुख साफ करते हुए कहा कि उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ निष्पक्ष और शुद्ध मतदाता सूची तैयार करना है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि चुनाव आयोग किसी दल के पक्ष या विपक्ष में खड़ा नहीं होता। संविधान के तहत सभी राजनीतिक दल समान हैं और आयोग की जिम्मेदारी है कि हर नागरिक को समान अधिकार के साथ चुनावी प्रक्रिया में शामिल किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि 18 वर्ष से अधिक उम्र का प्रत्येक भारतीय नागरिक मतदाता बनने और मतदान करने का अधिकार रखता है, और आयोग इस अधिकार की रक्षा करने के लिए पूरी मजबूती के साथ खड़ा है। ज्ञानेश कुमार ने अंत में यह संदेश दिया कि आयोग गरीब-अमीर, महिला-पुरुष, युवा-बुजुर्ग सभी के साथ समान व्यवहार करता है और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए किसी भी दबाव या भ्रम से प्रभावित नहीं होगा।