
- खुलेआम अवैध खनन करवाने के आरोप लगने के बाद खनन माफिया के सहयोगी डीएम को हटाया गया, बेलगाम खनिज अधिकारी अभी भी माल काट रहा
- पेशेवर अपराधी व दबंग खनन माफिया करवरिया बन्धुओं का दशकों का है आपराधिक इतिहास
- प्रयागराज में 1996 में चर्चित विधायक जवाहर पंडित उर्फ जवाहर यादव हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे करवरिया
- दिनदहाड़े हुए विधायक जवाहर पंडित हत्याकांड में पहली बार AK47 जैसे खतरनाक असलहे के इस्तेमाल होने की पुष्टि हुई थी
- इसके बाद 2007 में प्रयागराज के महेवा स्थित एक बालू घाट में कारोबारी विजय महरा की दिनदहाड़े हुई हत्या में भी इनका नाम चर्चा में आया था लेकिन दुश्मनी की डर से परिजनों की तरफ से एफआईआर न पंजीकृत करवाने पर बेदाग बचे

लखनऊ: उत्तरप्रदेश में भले ही सीएम योगी आदित्यनाथ अपराध व अपराधियों को खत्म करने के लिए तमाम सारे अभियान चला रहे हों लेकिन अभी भी ऐसे माफिया बचे हुए हैं जो कई दशकों से अपने काले कारनामों का साम्राज्य तो फैलाए हुए हैं लेकिन सत्तारूढ़ दल का कोई न कोई सदस्य का हांथ होने के चलते उनके खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हो पाती है।पेशेवर माफियाओं व अपराधियों की पूरी कुंडली तो लगभग सभी के पास होती ही है लेकिन हमें लगा कि शायद राजनीति का चोला ओढ़े हुए इन माफियाओं के बारे में शायद ही आपको कोई जानकारी हो।

दरअसल, हाल ही में हमने कौशाम्बी जनपद में जिस पेशेवर अपराधी व खनन माफिया के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है, वो करवरिया बन्धुओं का मामला है। ये सबको मैनेज करके चलने वाले माफिया हैं और ऊपर से अभी तक राजनीतिक चोला ओढ़े हुए थे। फिलहाल अब इनके पास कोई भी राजनीतिक पद नहीं है लेकिन इससे पहले ये जिला पंचायत अध्यक्ष, सांसद, विधायक, एमएलसी रह चुके हैं और मैनेजमेंट करके तमाम माफियागिरी वाले कार्यों में सदैव मुख्य धारा में बने रहे। इनकी एक और विशेषता रही कि ये तीनों भाई ये कभी भी एक पार्टी विशेष के नहीं रहे, ये अलग अलग पार्टियों में रहे और सत्तासीन पार्टी में एक्टिव नेता बनकर रहे। इससे पहले राजनीति में होने के कारण आज तक इनका नाम उस स्तर के अपराधियों में नहीं लिखा गया जबकि ये शार्प माइंड खूंखार पेशेवर ऐसे अपराधी हैं, जो घटना स्वयं कारित नहीं करते हैं बल्कि इनका अपना एक बड़ा नेटवर्क भी है। जिसमें देश व प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों के शूटर भी हैं। उन्हीं के बल पर ये लोग तमाम अनैतिक गतिविधियों को अंजाम तक पहुंचाने का काम करते हैं। इनके पिताजी से लेकर इनके बेटों तक की प्रवृत्ति में कोई बदलाव नहीं आया है, मतलब ये लोग पुश्तैनी माफिया हैं।
इन लोगों के पास पूर्व में शराब के बड़े कारोबार से लेकर, चीनी मिल जैसे कई बड़े कारोबार थे उसके बाद इन लोगों ने खुद को अपडेट करते हुए राजनीतिक पकड़ बनाई और काली कमाई का सबसे मुख्य अड्डा यानी बालू खनन को अपना मुख्य कारोबार बनाया। जिसमें इन्हीं के लोगों के मुताबिक बालू घाटों से बोरों में भरकर रुपए जाते थे जिसका न तो कोई टैक्स होता था और न ही कोई बिल होता था, शायद इसीलिए उन्होंने जरायम की दुनिया में स्वयं को एक बादशाह के तौर पर स्थापित भी कर लिया। इसके साथ ही इन लोगों ने प्रयागराज व कौशाम्बी में होटल, पेट्रोल पंप, कोल्ड स्टोर, जमीन के कारोबार के साथ ही कौशाम्बी के महेवाघाट थानांतर्गत रामनगर में प्राथमिक विद्यालय से लेकर नदी के किनारे तक गरीब बस्ती में अवैध कब्जा कर ऑफिस के नाम पर अपना झंडा बुलंद किया उसके बाद औने पौने दाम पर लोगों की जमीनें लिखवाया और आलम यह रहा कि लिखवाया 10 बिस्वा तो 2 बीघे में कब्जा किया। ये जहां भी खड़े हो जाते लोग दूर हटने को विवश हो जाते और उसके बाद परिणाम यह निकला कि जहां भी ये चाहते थे लोगों से उनकी जमीनों तक का बैनामा ले लेते थे। कौशाम्बी जनपद के महेवाघाट थानांतर्गत रामनगर में यमुना नदी के किनारे में बने ऑफिस और उसके आसपास एवं जमुनापुर मोड़ से ठीक आगे जिस जगह पर कोल्ड स्टोर बना हुआ है, वो जगह इसका जीता जागता प्रमाण है।
इसी कड़ी में राजधानी लखनऊ व नोएडा जैसे कई और महानगरों में भी कई सारे मकान, रेस्टोरेंट के अलावा कई सारी अघोषित संपत्तियां हैं। इन्हीं संपत्तियों के नशे में चूर होकर इन माफिया बन्धुओं ने आज तक किसी को भी सामने खड़ा होने तक की इजाजत नहीं दी, चाहे वो राजनीति हो या फिर बिजनेस, जिस भी जगह पर इनके सामने किसी ने आने का दु:साहस किया, इन्होंने उसे अपने पैसे व रसूख के चलते कहीं का नहीं छोंडा, या तो उसकी हत्या करवा दिया या फिर अपने गुर्गों से तब तक टॉर्चर करवाया, जब तक वो सरेंडर नहीं हुआ।
1996 में हुआ तत्कालीन विधायक जवाहर पंडित उर्फ जवाहर यादव हत्याकांड इसका सबसे बड़ा सबूत है, जिस मामले में भी इन लोगों ने अपनी पहुंच व रसूख के चलते मामले को 25 साल तक प्रभावित रखा, लेकिन 2017 में यूपी में योगी सरकार आने के बाद मामले की प्रभावी पैरवी हुई और 2019 में इन लोगों को उम्रकैद की सजा हुई, जिसके बाद भी इलाज के लिए पेरोल के नाम पर इन लोगों ने न सिर्फ खूब मनमानी की बल्कि कोर्ट को भी गुमराह किया लेकिन बीते साल हुए निकाय चुनाव के दौरान प्रयागराज, कौशाम्बी व चित्रकूट की अलग-अलग जगहों में चुनाव प्रचार करना इनके लिए घातक हुआ और मामले के एविडेंस कोर्ट पहुंचने पर कोर्ट ने फटकार लगाते हुए न सिर्फ इनका पेरोल कैंसिल किया बल्कि नैनी जेल प्रशासन को यह आदेश भी जारी किया कि अब इन लोगों को सारा इलाज जेल के अंदर ही मुहैया कराया जाए।
इसके साथ ही प्रयागराज के ही महेवा स्थित एक बालू घाट में 2007 में आस्तित्व को लेकर घाट में दिनदहाड़े कारोबारी विजय महरा की हत्या हो जाती है, उस हत्या में भी इन माफियाओं का ही नाम सामने आया था लेकिन इनके प्रभाव व रसूख के चलते और दुश्मनी बढ़ने की खातिर मेहरा परिवार ने एफआईआर ही नहीं दर्ज करवाई। हत्या जैसे मामले में एफआईआर दर्ज न होने से यह प्रकरण पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना रहा। लेकिन उस दौर में स्वतः संज्ञान जैसी कोई चीज ही नहीं थी जिससे उस परिवार को न्याय मिल सकता।
ऐसे में इन माफियाओं के खिलाफ खड़ा होने का मेरा सिर्फ एक ही उद्देश्य है कि जिस प्रकार से इन लोगों ने लोगों के बीच रहते हुए भी लगभग 4 दशक तक राजनीतिक चोला ओढ़कर जरायम की दुनिया में स्वयं को मजबूत रखा, अब उसी प्रकार से इन लोगों का पतन भी होना चाहिए, जिससे प्रदेश में स्थापित योगी सरकार की एक और मिशाल कायम हो सके। गौर करने वाली बात यह भी है कि भदोही के दबंग बाहुबली विजय मिश्रा से लेकर गोरखपुर वाले माफिया हरिशंकर तिवारी के परिवार तक में इनकी रिश्तेदारियां हैं। माफिया हैं तो माफिया को ही पसंद करेंगे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार सत्तारूढ़ पार्टी के कद्दावर नेताओं का भी आशीर्वाद प्राप्त होने के कारण कई बार पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी गुमराह हो जाता है और ऐसे माफियाओं को बचाने तक की पैरवी कर डालते हैं, जिसका फायदा भी सीधा इन्हीं लोगों को मिलता है और इसी का परिणाम है कि डीएम साहब तो चले गए लेकिन मुख्य कर्ताधर्ता खनिज अधिकारी अभी तक जिले में काबिज है। ऐसा पहली बार देखा जा रहा है कि मेरी लगातार खनन विरोधी खबरों के कारण छोटे कर्मचारी (खनिज अधिकारी) को बचाने लिए जिलाधिकारी की बलि चढ़ा दी गई।