
- स्वामी राघवाचार्य जी ने कहा, “राम ही सभी आत्माओं की आत्मा हैं और उनके बिना कोई गति नहीं है।”
- सनातन धर्म वेदों पर आधारित है और इसके नियामक वेद ही हैं, जो जीवन के आदर्श हैं।
- स्वामी जी ने योग को व्यायाम से ऊपर उठाकर आत्मा के परमात्मा से मिलन का साधन बताया।
- भगवान राम के चार प्रकार के भक्त होते हैं: आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी।
- श्रीराम कथा महोत्सव में स्वामी करपात्री जी महाराज के नाम पर बने द्वार श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रहे हैं।
लखनऊ, 28 दिसम्बर 2024: मोती महल लान में चल रही श्रीराम कथा के तीसरे दिन अयोध्या से आए प्रख्यात रामकथा मर्मज्ञ स्वामी राघवाचार्य जी महाराज ने भगवान श्रीराम के जीवन, उनके आदर्श और सनातन धर्म के महत्व पर गहन विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म का आधार वेद हैं और यह धर्म पूरी तरह से वैदिक सिद्धांतों पर आधारित है। वेद ही सनातन धर्म के नियामक हैं और इसका पालन करने से ही जीवन में शांति, समृद्धि और आत्मिक उन्नति संभव है।
स्वामी जी ने अपने प्रवचन की शुरुआत भगवान श्रीराम के अद्भुत चरित्र और उनके महत्व को समझाने से की। उन्होंने कहा, “जो सबको अपने में रमण कराए उसका नाम राम है। और, जो सबमें रमण करे उसका नाम है राम।” उनका यह कथन इस अर्थ में था कि भगवान श्रीराम केवल हमारे जीवन के मार्गदर्शक ही नहीं हैं, बल्कि वह प्रत्येक आत्मा के भीतर निवास करते हैं। उनका अस्तित्व सर्वव्यापी है और उनके बिना कोई भी तत्व अस्तित्व में नहीं रह सकता। भगवान श्रीराम अनंत आनंद के सिंधु हैं, जो सभी की प्रेरणा, भोग और भोग्य हैं। उन्होंने यह भी कहा कि श्रीराम की पूजा और भक्ति जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य है और उनके बिना कोई गति संभव नहीं है।
स्वामी राघवाचार्य जी ने ‘अंतर्यामी’ शब्द का महत्व भी स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि अंतर्यामी वह परमात्मा है जो सभी जीवों के भीतर बैठकर उनका नियमन करता है। वह हर समय हमारे भीतर होते हुए भी हम उन्हें बाहरी चकाचौंध और व्यस्तताओं के कारण पहचान नहीं पाते। उन्होंने यह भी बताया कि भगवान ने हमें यह अनमोल मानव जीवन दिया है, जिसका उद्देश्य भगवान की भक्ति और धर्म के पालन में समर्पित होना चाहिए।
योग का महत्व:
स्वामी राघवाचार्य जी ने आज के समय में योग के महत्व पर भी विशेष प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारतीय ऋषियों ने शरीर, मन और आत्मा के संतुलन के लिए योग को जीवन का अभिन्न हिस्सा माना है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आजकल जिसे हम योग कहते हैं, वह केवल व्यायाम तक सीमित हो गया है, जबकि योग एक दिव्य साधना है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का मार्ग है। उन्होंने कहा कि अष्टांग योग – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि – जीवन को सही दिशा देने के लिए आवश्यक हैं।
स्वामी जी ने कहा कि “हमें योग को केवल व्यायाम से ऊपर उठाकर उसकी वास्तविकता को समझना होगा।” योग केवल शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नहीं है, बल्कि यह हमारे मानसिक, भावनात्मक और आत्मिक संतुलन को बनाए रखने का एक शक्तिशाली उपकरण है। योग का वास्तविक उद्देश्य आत्मा का परमात्मा से मिलन है, और इसका अंतिम फल समाधि है, जो आत्मा की सर्वोच्च अवस्था है।
भगवान राम और उनके भक्त:
स्वामी राघवाचार्य जी ने रामकथा में भगवान श्रीराम के भक्तों का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि भगवान के भक्तों के चार प्रमुख प्रकार होते हैं: आर्त (जो कष्ट से जूझ रहे हैं), जिज्ञासु (जो ज्ञान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं), अर्थार्थी (जो भौतिक सुखों की इच्छा रखते हैं) और ज्ञानी (जो भगवान को सर्वोच्च प्रेम और ज्ञान से समझते हैं)। स्वामी जी ने लक्ष्मण को भगवान राम की आत्मा के रूप में प्रस्तुत किया और कहा कि लक्ष्मण वह हैं जो भगवान राम के साथ हर परिस्थिति में होते हैं और उनका मार्गदर्शन करते हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि ज्ञानी भक्त वे होते हैं जो भगवान को अपनी आत्मा से भी प्रिय मानते हैं और उनका प्रेम व भक्ति केवल बाहरी आडंबरों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि यह परमात्मा के साथ एक गहरे संबंध में बदल जाती है।
धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज और रामकथा द्वार:
श्रीराम कथा सेवा समिति के सहसंयोजक एवं मंच समन्वयक डॉ. सप्तर्षि मिश्र ने जानकारी दी कि इस कथा महोत्सव में समाजसेवी, न्यायधीश और गणमान्य लोग भाग ले रहे हैं। विशेष रूप से, धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के नाम पर बनाए गए द्वार दर्शकों को आकर्षित कर रहे हैं। इन द्वारों ने सभी श्रद्धालुओं को श्रीराम कथा के प्रति और अधिक आकर्षित किया है।
कथा के आयोजन में आज के व्यास पूजन के मुख्य यजमान एडवोकेट शिव कुमार सिंह और एडवोकेट संजीव पाण्डेय थे। इसके अलावा, समाजसेवी महेश गुप्ता, न्यायाधीश अनुपमा श्रीवास्तव, डॉ. राकेश शुक्ल, मनोज मिश्र, धर्मेन्द्र कुमार गुप्ता, आचार्य देव और अन्य प्रमुख लोग भी उपस्थित थे।
कथा का समापन:
डॉ. सप्तर्षि मिश्र ने कथा के समापन की जानकारी देते हुए बताया कि कथा का समापन 2 जनवरी को विशाल संत सम्मेलन के साथ होगा, जिसमें बड़े संख्या में संत महात्मा और श्रद्धालु भाग लेंगे। यह सम्मेलन श्रीराम कथा के पवित्र संदेश को समाज में और अधिक प्रसारित करने के लिए आयोजित किया जा रहा है।
स्वामी राघवाचार्य जी के प्रवचन ने कथा में उपस्थित सभी श्रद्धालुओं को भगवान श्रीराम के अद्भुत चरित्र, योग के महत्व और सनातन धर्म के सिद्धांतों की गहरी समझ प्रदान की। उनका यह संदेश सभी के जीवन में एक दिव्य मार्गदर्शन के रूप में कार्य करेगा।