
लखनऊ, 12 सितंबर – श्री हरि हर सेवा समिति, लखनऊ के तत्वाधान में आयोजित सात दिवसीय श्री शिव महापुराण कथा का शुभारंभ एक भव्य शोभायात्रा के साथ हुआ। जानकीपुरम विस्तार के सेक्टर सात स्थित सूर्या लान में आयोजित इस कथा का प्रवर्तन महामंडलेश्वर स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती द्वारा किया गया। कथा के आरंभ से पूर्व एक विशाल शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। शोभायात्रा की भव्यता और आयोजन की सुंदरता ने सभी का मन मोह लिया।
शिव: सबसे बड़े राष्ट्रवादी, साम्यवादी और समाजवादी देवता

स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती ने अपने उद्बोधन में भगवान शिव की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि शिव केवल आध्यात्मिक तत्व ही नहीं, बल्कि संपूर्ण वैज्ञानिक अवधारणा हैं। शिव सृष्टि के सृजनकर्ता, पालक और संहर्ता हैं, जो सृष्टि के कल्याण के लिए दुष्टों के संहार से भी पीछे नहीं हटते। स्वामी जी ने शिव को सबसे बड़ा राष्ट्रवादी देवता बताया और कहा कि शिव सच्चे अर्थों में साम्य और समाजवाद के प्रतीक हैं। वह बिना किसी विशेष स्वरूप के मात्र एक पत्थर की बटिया में भी समान रूप से प्राप्त किए जा सकते हैं। उनकी पूजा के लिए केवल जल ही पर्याप्त है, और वह संसार की सभी त्याज्य वस्तुओं को भी सप्रेम स्वीकार करते हैं, बशर्ते श्रद्धा सच्ची हो।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में शिव की प्रासंगिकता

स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती ने शिव की वैश्विक मान्यता पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि शिव की सरलता और समावेशी स्वरूप उन्हें विश्व भर में पूजनीय बनाता है। मुस्लिम देशों सहित कई अन्य देशों में उत्खनन के दौरान शिवलिंग और मूर्तियों का प्राप्त होना इस बात का प्रमाण है कि शिव एक विश्वव्यापी देवता हैं। स्वामी जी ने कहा कि शिव की पूजा संसार के हर कोने में की जाती है, जो उनकी सार्वभौमिकता और व्यापकता को दर्शाता है।
राम और शिव: एक ही तत्व
स्वामी जी ने भगवान शिव और भगवान राम के बीच संबंधों पर भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि भगवान शिव, भगवान राम को अपना आराध्य मानते हैं, वहीं भगवान राम “सिव द्रोही मम दास कहावा, सो नर मोहि सपनेहु नहिं पावा” कहकर शिव की श्रेष्ठता को स्वीकारते हैं। यह सिद्ध करता है कि शिव और राम दोनों एक ही तत्व हैं और दोनों में एक-दूसरे का वास है। भारतीय संस्कृति की यही विशिष्टता है कि यह सभी को अपना आराध्य चुनने की स्वतंत्रता प्रदान करती है, जो हिन्दुत्व का मूल सिद्धांत है और उसे अन्य धर्मों से अलग करता है।
शिवत्व की राह: कल्याण का उद्घोष
स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती ने बताया कि वर्तमान समय में जब विश्व कई प्रकार की विकृतियों और मतभेदों से ग्रस्त है, शिवत्व की राह अपनाना अनिवार्य हो गया है। शिवत्व कल्याण का उद्घोष है और इसे अपनाने से ही मानव मात्र परम सुख प्राप्त कर सकता है। स्वामी जी ने कहा कि शिव का चरित्र अपनाकर व्यक्ति अपनी सभी समस्याओं का समाधान पा सकता है और जीवन में शांति और समृद्धि ला सकता है।
भव्य शोभायात्रा और कथा का आयोजन
श्री शिव महापुराण कथा के शुभारंभ से पहले एक भव्य शोभायात्रा निकाली गई, जो एकेटीयू मंदिर से प्रारंभ होकर कथा स्थल सूर्या लान तक पहुंची। शोभायात्रा में हाथी, घोड़े, ऊंट, रथादि और बाजे गाजे के साथ श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या ने भाग लिया। महिलाएं एक जैसी साड़ियों में सिर पर कलश उठाए शोभायात्रा की शोभा बढ़ा रही थीं। यात्रा के दौरान जानकीपुरम विस्तार में विभिन्न स्थानों पर स्थानीय जनों ने स्वागत और जलपान की व्यवस्था की, जिससे सभी श्रद्धालु प्रसन्नचित्त रहे। शोभायात्रा के दौरान जानकीपुरम थाना पुलिस के चाक चौबंद इंतजाम की भी सभी ने सराहना की। कथा स्थल पर पहुंचने पर स्वामी जी ने एक संक्षिप्त उद्बोधन दिया, जिसके बाद अपराह्न नैमित्यिक कथा का प्रारंभ हुआ।
कथा का उद्देश्य और समापन समारोह
श्री शिव महापुराण कथा का आयोजन 18 सितंबर तक प्रतिदिन अपराह्न 3 बजे से 7 बजे तक चलेगा। इस दौरान कथा में शिव महापुराण के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। कथा के समापन पर एक विशाल भंडारे का आयोजन किया जाएगा, जिसमें सभी श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण कर सकेंगे। इस कार्यक्रम में समिति के पदाधिकारी, महिला मंडल, विभिन्न जिलों से आए श्रद्धालु और स्थानीय लोग भारी संख्या में शामिल हो रहे हैं, जिससे कार्यक्रम की भव्यता और धार्मिकता का स्तर और बढ़ गया है।
शिव महापुराण कथा: एक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
शिव महापुराण कथा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करती है। शिव का सृजन, पालन और संहार का सिद्धांत यह दर्शाता है कि जीवन में संतुलन बनाए रखना कितना आवश्यक है। स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती के अनुसार, शिव का सिद्धांत और उनकी पूजा विधि यह सिखाती है कि जीवन में सरलता और सादगी अपनाना चाहिए। शिव का अद्वितीय स्वरूप यह दर्शाता है कि वह सभी के लिए सुलभ हैं और किसी भी भेदभाव के बिना सभी को समान रूप से स्वीकार करते हैं।
श्री शिव महापुराण कथा के इस आयोजन ने लखनऊ के श्रद्धालुओं को भगवान शिव के प्रति और अधिक आस्था से भर दिया है। स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती की व्याख्या और कथा के माध्यम से प्रस्तुत शिवत्व की अवधारणा ने सभी के दिलों में एक नई ऊर्जा और उत्साह का संचार किया है। श्री हरि हर सेवा समिति द्वारा किया गया यह आयोजन समाज में शिवत्व के प्रचार-प्रसार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो निश्चित रूप से समाज को एक नई दिशा प्रदान करेगा।
उपसंहार: शिवत्व की सार्वभौमिकता
स्वामी जी के प्रवचनों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि शिवत्व केवल एक धार्मिक अवधारणा नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की एक शैली है, जो संतुलन, सरलता और समर्पण पर आधारित है। शिव की पूजा में किसी विशेष विधि या सामग्री की आवश्यकता नहीं होती; केवल सच्चे मन और श्रद्धा की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि शिव की पूजा संसार के हर कोने में होती है और उन्हें वैश्विक मान्यता प्राप्त है।
इस प्रकार, श्री शिव महापुराण कथा का यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि समाज के व्यापक हित के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह आयोजन समाज में शिवत्व के मूल्यों का प्रचार-प्रसार करेगा और लोगों को जीवन में सादगी, संतुलन और समर्पण का महत्व समझाएगा। शिवत्व का यह संदेश न केवल धार्मिक अनुयायियों के लिए, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए कल्याणकारी है।