
लखनऊ: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इसे ‘गोकुलाष्टमी’ या ‘कृष्णाष्टमी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार भाद्रपद मास (अगस्त-सितंबर) में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। श्रीकृष्ण को विष्णु के आठवें अवतार के रूप में पूजा जाता है, जिन्होंने धरती पर अवतार लेकर अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना की।
पौराणिक कथा: श्रीकृष्ण का जन्म लगभग 5,250 साल पहले मथुरा में हुआ था। उनके माता-पिता वासुदेव और देवकी थे। देवकी के भाई, कंस, को यह भविष्यवाणी की गई थी कि देवकी का आठवाँ पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। इस भय से कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में बंद कर दिया और उनके सभी नवजात बच्चों की हत्या कर दी।

जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो वह आधी रात का समय था। उस समय अद्भुत घटनाएँ घटित हुईं। कारागार के द्वार अपने आप खुल गए, पहरेदार सो गए और वासुदेव ने नवजात कृष्ण को यमुना पार गोकुल में अपने मित्र नंद बाबा और यशोदा के पास पहुंचा दिया। इसके बाद, वासुदेव एक कन्या को साथ लाकर कंस को दे दिया। जब कंस ने उस कन्या को मारने का प्रयास किया, तो वह देवी दुर्गा के रूप में प्रकट हुईं और कंस को चेतावनी दी कि उसे मारने वाला बच्चा सुरक्षित है और उचित समय पर उसे नष्ट करेगा।
कृष्ण की बाललीला:
गोकुल में नंद और यशोदा के पुत्र के रूप में कृष्ण का पालन-पोषण हुआ। उन्होंने बचपन से ही अद्भुत लीलाएँ कीं, जिनमें पूतना राक्षसी का वध, कालिया नाग का दमन, और गोवर्धन पर्वत उठाना शामिल है। बाल कृष्ण की माखन चुराने वाली लीला भी बहुत प्रसिद्ध है, जिसे ‘माखनचोर’ के नाम से जाना जाता है। उनकी लीलाओं में गोपियों के साथ रासलीला और राधा-कृष्ण की प्रेमकथा भी विशेष स्थान रखती हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व:
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं, मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, और रात्रि के समय श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में उत्सव मनाया जाता है। मथुरा, वृंदावन, और द्वारका जैसे स्थानों पर यह त्योहार विशेष धूमधाम से मनाया जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी का सांस्कृतिक महत्त्व भी कम नहीं है। इस दिन नाटक, संगीत, और नृत्य के माध्यम से श्रीकृष्ण की लीलाओं का मंचन होता है, जिसे ‘रासलीला’ कहते हैं। विशेषकर महाराष्ट्र में दही-हांडी का आयोजन किया जाता है, जिसमें मटकी फोड़ने की प्रतियोगिता होती है। इसे कृष्ण की बाललीलाओं की याद में किया जाता है।
उपवास और पूजा की विधि:
जन्माष्टमी के दिन लोग व्रत रखते हैं, जो सुबह से शुरू होकर मध्यरात्रि तक चलता है, जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। इस दिन लोग केवल फलाहार करते हैं और पानी का सेवन करते हैं। शाम को भगवान कृष्ण की मूर्ति को दूध, दही, शहद, और गंगाजल से स्नान कराकर नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। इसके बाद विशेष भोग चढ़ाया जाता है, जिसमें माखन-मिश्री प्रमुख होते हैं। मध्यरात्रि को कृष्ण जन्म के समय शंख और घंटियों की ध्वनि के साथ जन्मोत्सव मनाया जाता है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी केवल भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव नहीं है, बल्कि यह धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक परंपराओं, और सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी शिक्षाएँ आज भी समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके द्वारा दिया गया ‘भगवद गीता’ का उपदेश, जो महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को दिया गया था, जीवन की कठिनाइयों में मार्गदर्शन प्रदान करता है। जन्माष्टमी का पर्व हमें धर्म, प्रेम, और कर्तव्य की सीख देता है, और समाज में सद्भावना और एकता की भावना को मजबूत करता है।