
लखनऊ/नई दिल्ली: कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। देश की लगभग 58% आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर करती है, लेकिन इसके बावजूद किसान कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), कृषि कानूनों, जलवायु परिवर्तन, और बाजार की अस्थिरता जैसे मुद्दे भारतीय किसानों के सामने प्रमुख समस्याएं हैं। सरकार ने कृषि सुधारों की दिशा में कई कदम उठाए हैं, लेकिन किसानों की आय में वृद्धि और उनकी समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।
कृषि सुधार: सरकार के प्रयास

भारत सरकार ने हाल के वर्षों में कृषि सुधारों की दिशा में कई पहलें की हैं। इनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित शामिल हैं:
1. कृषि कानून (2020): केंद्र सरकार ने तीन प्रमुख कृषि कानून पेश किए, जिनका उद्देश्य किसानों को कृषि मंडियों से बाहर भी अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता देना था। हालांकि, इन कानूनों का देशभर में व्यापक विरोध हुआ, खासकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा। विरोध के बाद सरकार ने इन कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया।
2. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN): इस योजना के तहत छोटे और सीमांत किसानों को हर साल 6,000 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। यह योजना किसानों को आर्थिक रूप से समर्थन देने और उनकी आय बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।
3. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): इस योजना का उद्देश्य किसानों को प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और बीमारियों से फसलों के नुकसान की भरपाई के लिए बीमा कवर प्रदान करना है। हालांकि, इस योजना में कई चुनौतियां भी सामने आई हैं, जैसे क्लेम प्रोसेस में देरी और सभी किसानों तक इसकी पहुंच न होना।
4. कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड: इस फंड के तहत किसानों और कृषि सहकारी समितियों को बेहतर भंडारण, कोल्ड स्टोरेज और कृषि-प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता दी जा रही है। इसका उद्देश्य कृषि उत्पादों की बर्बादी को कम करना और किसानों को बाजार में बेहतर कीमत दिलाना है।
किसानों की प्रमुख समस्याएं
1. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): किसानों की एक प्रमुख मांग है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी दर्जा दे। MSP वह मूल्य है जिस पर सरकार किसानों से उनकी उपज खरीदती है। कई किसानों का कहना है कि उन्हें MSP नहीं मिलता, जिससे उन्हें बाजार में कम कीमतों पर अपनी फसल बेचनी पड़ती है।
2. बढ़ती लागत: उर्वरक, बीज, कीटनाशक, और सिंचाई जैसी कृषि उत्पादन की लागत में वृद्धि हो रही है, जबकि किसानों की आय में वृद्धि नहीं हो पा रही है। इससे किसानों को आर्थिक रूप से नुकसान उठाना पड़ता है, जिससे कर्ज का बोझ बढ़ता है।
3. जलवायु परिवर्तन: अनियमित बारिश, सूखा, और बाढ़ जैसी जलवायु घटनाओं ने किसानों की समस्याओं को और बढ़ा दिया है। फसल की विफलता और उत्पादन में कमी के कारण किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है।
4. कर्ज का बढ़ता बोझ: किसानों की आय सीमित होने के कारण उन्हें अक्सर कर्ज लेना पड़ता है। कई किसान साहूकारों से ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज लेते हैं, जिससे उनका वित्तीय संकट और गहरा जाता है।
5. सिंचाई की समस्या: देश के कई हिस्सों में सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है। किसान मानसून पर निर्भर होते हैं, और खराब मानसून के कारण फसल उत्पादन में कमी आ जाती है।
समाधान और भविष्य की दिशा
1. MSP का कानूनी दर्जा: किसानों को MSP का कानूनी दर्जा देने से बाजार में फसल की न्यूनतम कीमत सुनिश्चित की जा सकेगी, जिससे उन्हें अपनी उपज का सही मूल्य मिलेगा। इससे उनकी आय में वृद्धि हो सकती है।
2. कृषि तकनीक का उपयोग: उन्नत कृषि तकनीकों जैसे ड्रिप इरिगेशन, स्मार्ट खेती और डिजिटल प्लेटफार्मों का उपयोग किसानों की उत्पादकता को बढ़ा सकता है। इसके अलावा, किसानों को तकनीकी ज्ञान और प्रशिक्षण प्रदान करना जरूरी है।
3. प्राकृतिक खेती को बढ़ावा: सरकार द्वारा जैविक और प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इससे उत्पादन की लागत कम होगी और किसानों की आय में सुधार होगा। साथ ही, इससे पर्यावरण को भी लाभ होगा।
4. कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार: भंडारण और प्रसंस्करण इकाइयों में सुधार से किसानों को उनकी फसलों का सही मूल्य मिलेगा। इससे बिचौलियों की भूमिका कम होगी और किसान सीधे बाजार से जुड़ सकेंगे।
5. जल प्रबंधन: सिंचाई परियोजनाओं में सुधार और जल संसाधनों का प्रभावी उपयोग करके किसानों को बेहतर सिंचाई सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं। सूखे वाले क्षेत्रों में माइक्रो-इरिगेशन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
भारत में कृषि सुधारों की दिशा में कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन किसानों की समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं। MSP का कानूनी दर्जा, तकनीकी नवाचार, और जलवायु अनुकूलन जैसे कदम किसानों की स्थिति में सुधार लाने में मदद कर सकते हैं। कृषि क्षेत्र की समस्याओं को हल करने के लिए सरकार और किसानों के बीच निरंतर संवाद और सहयोग आवश्यक है। अगर सही दिशा में कदम उठाए जाते हैं, तो भारत के किसान न केवल आत्मनिर्भर बन सकते हैं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं।