
- सुप्रीम कोर्ट के आदेश से यूपी के लगभग 1.5 लाख परिषदीय शिक्षकों की नौकरी पर संकट गहरा गया।
- अदालत ने सभी शिक्षकों के लिए टीईटी (TET) पास करना अनिवार्य कर दिया है।
- भाजपा नेता डॉ. रजनीश सिंह ने CM योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की।
- पत्र में कहा गया – शिक्षकों को उनकी नियुक्ति समय की अर्हता और सेवा शर्तों से ही आच्छादित रखा जाए।
- सरकार के सामने दो विकल्प – सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका या विधानसभा से नया कानून बनाना।
अयोध्या/लखनऊ, 14 सितम्बर 2025: उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत लगभग डेढ़ लाख शिक्षकों का भविष्य अचानक अनिश्चितता में घिर गया है। इसकी वजह है सुप्रीम कोर्ट का हालिया आदेश, जिसमें कहा गया है कि परिषदीय विद्यालयों में पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों के लिए टीईटी (Teacher Eligibility Test) पास करना अनिवार्य होगा। यह आदेश उन शिक्षकों के लिए झटका है जो वर्षों से सेवा दे रहे हैं, लेकिन उनकी नियुक्ति के समय यह शर्त लागू नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश – क्या कहा गया?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया है कि शिक्षक बनने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तय न्यूनतम योग्यता का पालन अनिवार्य होगा। अदालत ने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए टीईटी जैसी परीक्षा जरूरी है। यह केवल नए अभ्यर्थियों पर ही नहीं बल्कि पहले से कार्यरत शिक्षकों पर भी लागू होगी। अदालत का यह मानना है कि अगर शिक्षक योग्य और प्रशिक्षित नहीं होंगे तो बच्चों की शिक्षा प्रभावित होगी।
हालाँकि, इस आदेश से यह स्थिति बन गई है कि पहले से नियुक्त और लंबे समय से सेवा दे रहे शिक्षक अचानक से अयोग्य घोषित हो सकते हैं। इसका असर केवल उनके करियर तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि उनके परिवार और समाज पर भी गंभीर रूप से पड़ेगा।
कितने और कौन से शिक्षक प्रभावित?
इस आदेश का असर उत्तर प्रदेश के लगभग 1.5 लाख शिक्षकों पर पड़ने वाला है। इनमें बड़ी संख्या उन शिक्षकों की है जो ग्रामीण इलाकों के परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत हैं। अधिकांश शिक्षकों की नियुक्ति उस समय की शर्तों के आधार पर की गई थी, जब टीईटी अनिवार्य नहीं था। कई शिक्षक ऐसे हैं जो दस से पंद्रह वर्षों से नौकरी कर रहे हैं और अब तक उनके अनुभव और सेवाओं के आधार पर शिक्षा व्यवस्था को मजबूती मिलती रही है।
इस आदेश के बाद वे सभी असमंजस की स्थिति में हैं। उनके सामने यह संकट खड़ा हो गया है कि अगर वे टीईटी पास नहीं कर पाए तो उनकी नौकरी चली जाएगी। इसका सीधा असर उनके बच्चों की पढ़ाई, पारिवारिक जीवन और सामाजिक स्थिति पर पड़ेगा।
डॉ. रजनीश सिंह का पत्र
भाजपा नेता डॉ. रजनीश सिंह ने इस गंभीर मामले को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष उठाया है। अपने पत्र में उन्होंने स्पष्ट कहा है कि शिक्षकों को उनकी नियुक्ति के समय की अर्हता और सेवा शर्तों के आधार पर ही मान्यता मिलनी चाहिए। उनका तर्क है कि जब किसी शिक्षक को नियुक्त करते समय नियम अलग थे तो बाद में नए नियम थोपना न्यायसंगत नहीं होगा।
उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने समय रहते कदम नहीं उठाए तो हजारों परिवारों का सामाजिक जीवन प्रभावित होगा। डॉ. सिंह ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि इस मामले में तुरंत सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि यदि अदालत से राहत नहीं मिलती तो विधानसभा से नया कानून लाकर शिक्षकों को सुरक्षा प्रदान की जाए।
शिक्षकों की प्रतिक्रिया और संघर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश शिक्षकों के बीच असमंजस और नाराज़गी का कारण बन गया है। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर शिक्षक समुदाय अपनी चिंता व्यक्त कर रहा है और कई संगठनों ने राज्य सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। शिक्षकों का कहना है कि उनकी नियुक्ति पूरी तरह वैध थी और उन्होंने सभी प्रक्रियाओं का पालन किया था। ऐसे में उन्हें अचानक अयोग्य करार देना नाइंसाफी है।
कई जगहों पर शिक्षकों की बैठकें हो रही हैं, जहाँ वे आंदोलन की रणनीति पर चर्चा कर रहे हैं। अगर सरकार ने समय रहते समाधान नहीं निकाला तो बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
सरकार के सामने चुनौतियाँ और विकल्प
राज्य सरकार के लिए यह मामला बेहद पेचीदा है। एक तरफ सुप्रीम कोर्ट का आदेश है, जिसका पालन करना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। दूसरी ओर, हजारों शिक्षक और उनके परिवार हैं जिनकी रोज़ी-रोटी इस निर्णय पर टिकी हुई है।
सरकार के पास दो प्रमुख विकल्प हैं। पहला, सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करना और यह दलील देना कि नियुक्ति के समय लागू नियमों को बदलकर लागू करना न्यायसंगत नहीं है। दूसरा विकल्प यह है कि अगर अदालत से राहत न मिले तो विधानसभा से नया कानून पारित किया जाए, जिसमें स्पष्ट किया जाए कि पहले से नियुक्त शिक्षकों पर नया नियम लागू नहीं होगा। इसके अलावा, सरकार चाहे तो शिक्षकों के लिए विशेष प्रशिक्षण और परीक्षा की व्यवस्था भी कर सकती है ताकि शिक्षा की गुणवत्ता बनी रहे और शिक्षकों की नौकरी भी सुरक्षित हो।
राजनीतिक और सामाजिक असर
इस मामले का राजनीतिक असर भी गहरा हो सकता है। विपक्ष पहले ही सरकार की नीतियों पर सवाल उठाता रहा है। अब अगर हजारों शिक्षकों की नौकरी पर संकट आ गया तो विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बना सकता है। भाजपा सरकार पर शिक्षक समुदाय और उनके परिवारों का दबाव भी बढ़ेगा। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में इस आदेश का असर पड़ेगा। क्योंकि शिक्षकों का समाज में सम्मानजनक स्थान है और यदि उनकी नौकरियाँ खतरे में आती हैं तो इसका सीधा असर स्थानीय समाज और बच्चों की पढ़ाई पर पड़ेगा। आने वाले चुनावों में यह मुद्दा सरकार के लिए चुनौती बन सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के उद्देश्य से दिया गया है, लेकिन इसका सीधा असर उन शिक्षकों पर पड़ा है जो पहले से सेवा दे रहे हैं। भाजपा नेता डॉ. रजनीश सिंह का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखा पत्र इस दिशा में एक अहम पहल है। इससे यह उम्मीद जगी है कि सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करेगी और शिक्षकों को राहत मिलेगी। अब सबकी निगाहें राज्य सरकार पर हैं। अगर सरकार समय रहते पुनर्विचार याचिका दाखिल करती है या नया कानून बनाती है तो हजारों शिक्षकों और उनके परिवारों को राहत मिलेगी। वरना यह मुद्दा एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक संकट का रूप ले सकता है।