
- डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा कि डिजिटल illiteracy आने वाले समय की सबसे बड़ी अशिक्षा होगी।
- 2025 तक 85 मिलियन नौकरियाँ खत्म होंगी, जबकि 97 मिलियन नई नौकरियाँ पैदा होंगी।
- भारत की 65% युवा आबादी को AI और डिजिटल शिक्षा से सशक्त करना समय की मांग है।
- फेक न्यूज़ और डीपफेक से निपटने के लिए सजग और डिजिटल साक्षर युवा ही सक्षम होंगे।
- डिजिटल साक्षरता केवल रोजगार नहीं बल्कि लोकतंत्र और राष्ट्र-निर्माण की मजबूती का आधार है।
लखनऊ : सरोजनीनगर विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा है कि डिजिटल युग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की क्रांति में भारत के युवाओं को सबसे बड़ी भूमिका निभानी होगी। उन्होंने चेतावनी दी कि आने वाले समय में डिजिटल illiteracy ही नई अशिक्षा साबित होगी, और जो युवा समय रहते डिजिटल कौशल हासिल नहीं करेंगे, वे भविष्य की प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाएंगे।
डिजिटल क्रांति और बदलती दुनिया
डॉ. सिंह ने अपने संदेश में बताया कि आज दुनिया एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ी है। पहली बार ऐसा हो रहा है कि गैर-मानव बुद्धि यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस संस्कृति का निर्माण कर रही है।
AI अब केवल कंप्यूटर या टेक्नोलॉजी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लेख लिख रहा है, संगीत रच रहा है, कोडिंग कर रहा है और कानूनी-चिकित्सकीय सलाह भी देने लगा है। इसका सीधा मतलब है कि यह बदलाव पूरी मानव सभ्यता को प्रभावित करेगा। ऐसे में यदि युवा केवल AI के उपभोक्ता बनकर रह जाएंगे तो वे पीछे रह जाएंगे। उन्हें उपभोक्ता नहीं बल्कि निर्माता और नियंत्रक बनना होगा।
रोजगार की चुनौतियाँ और नए अवसर
डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा कि AI के आगमन से रोजगार का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक 85 मिलियन पारंपरिक नौकरियाँ खत्म होंगी, लेकिन इसी दौरान 97 मिलियन नई नौकरियाँ पैदा होंगी। ये नौकरियाँ पारंपरिक कौशल से नहीं, बल्कि डिजिटल और AI आधारित कौशल से जुड़ी होंगी।
उन्होंने युवाओं को समझाया कि आने वाले समय में डेटा एनालिसिस, मशीन लर्निंग, प्रोग्रामिंग, डिजिटल समस्या-समाधान जैसे क्षेत्र ही भविष्य की सबसे बड़ी रोजगार संभावनाएँ पैदा करेंगे। इसलिए आज से ही इन क्षेत्रों में दक्ष होना आवश्यक है।
भारत की युवा शक्ति – सबसे बड़ा रणनीतिक लाभ
डॉ. सिंह ने यह भी कहा कि भारत के पास इस समय दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी है। देश की 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है। यह युवा जनसांख्यिकीय भारत की सबसे बड़ी ताकत है। यदि इन्हें डिजिटल कौशल और AI ज्ञान से प्रशिक्षित किया जाए, तो भारतीय युवा पूरी दुनिया के लिए AI Workforce of the World बन सकते हैं।
उन्होंने 90 के दशक का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे उस समय भारतीय इंजीनियरों ने सॉफ्टवेयर क्रांति में दुनिया का नेतृत्व किया था, वैसे ही आज के भारतीय युवा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्रांति में भी नेतृत्व कर सकते हैं।
फेक न्यूज़ और डीपफेक का बढ़ता खतरा
डॉ. सिंह ने युवाओं को आगाह किया कि AI केवल अवसर ही नहीं बल्कि बड़ी चुनौतियाँ भी लेकर आया है। आज डीपफेक वीडियो, फर्जी सूचनाएँ और फेक न्यूज़ लोकतंत्र, चुनाव प्रक्रिया और सामाजिक सद्भाव के लिए गंभीर खतरा बन चुके हैं।
उन्होंने कहा कि केवल वही युवा इस खतरे का सामना कर पाएंगे, जो डिजिटल साक्षर होंगे और तकनीकी उपकरणों का सही उपयोग कर पाएंगे। सजग और तकनीकी रूप से प्रशिक्षित युवा ही समाज को इन खतरों से बचाने की ढाल बन सकते हैं।
लोकतांत्रिक सशक्तिकरण का आधार
डॉ. राजेश्वर सिंह ने डिजिटल साक्षरता को केवल रोजगार या तकनीकी प्रगति से नहीं जोड़ा, बल्कि इसे लोकतंत्र की मजबूती का आधार भी बताया। उनके अनुसार, डिजिटल कौशल युवाओं को सवाल पूछने, जवाबदेही तय करने और शासन में सक्रिय भागीदारी करने की शक्ति देता है।
डिजिटल शिक्षा युवाओं को अधिक जागरूक नागरिक बनाती है, जो न केवल अपने अधिकार समझते हैं बल्कि राष्ट्र के विकास में भी योगदान करते हैं।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा और भारत की भूमिका
उन्होंने कहा कि आज चीन, अमेरिका और दक्षिण कोरिया जैसे देश आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की रिसर्च और शिक्षा पर अरबों डॉलर खर्च कर रहे हैं। भारत यदि इस दिशा में ठोस पहल करता है तो वह न केवल पिछड़ापन दूर करेगा बल्कि सीधे लीपफ्रॉग करते हुए वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सबसे आगे पहुँच सकता है।
डॉ. सिंह का मानना है कि भारत के पास अवसर है कि वह डिजिटल साक्षरता को अपनाकर दुनिया का नेतृत्व करे।
डॉ. राजेश्वर सिंह का विज़न
अंत में अपने संदेश में डॉ. सिंह ने कहा कि युवाओं को डिजिटल शिक्षा केवल रोजगार के लिए नहीं बल्कि राष्ट्र-निर्माण और लोकतंत्र की मजबूती के लिए भी अर्जित करनी चाहिए।
उन्होंने स्पष्ट कहा—
“जो युवा आज डिजिटल कौशल अपनाएंगे, वही कल भारत को वैश्विक नेतृत्व दिलाएंगे। डिजिटल साक्षरता ही युवाओं का भविष्य-सुरक्षा कवच है।”