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गुजरात का मोढेरा सूर्य मंदिर – जहाँ आस्था संग जीवंत होती है शिल्पकला

गुजरात के मेहसाणा ज़िले में स्थित मोढेरा सूर्य मंदिर भारत की प्राचीन स्थापत्य कला, धार्मिक आस्था और विज्ञान का अनूठा उदाहरण है। यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है और अपने शानदार शिल्प तथा अद्वितीय निर्माण शैली के कारण विश्व प्रसिद्ध है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

मोढेरा सूर्य मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम ने कराया था। सोलंकी राजाओं को सूर्यवंशी माना जाता था, इस कारण उन्होंने सूर्य मंदिरों के निर्माण पर विशेष ध्यान दिया। यह मंदिर 1026 ईस्वी के आसपास निर्मित हुआ था और आज भी अपनी भव्यता के लिए जाना जाता है।

स्थापत्य विशेषताएँ

मंदिर मुख्यतः तीन भागों में विभाजित है—

गर्भगृह (संरचना का सबसे पवित्र हिस्सा) – यहाँ सूर्य देव की प्रतिमा प्रतिष्ठित थी।

सभा मंडप (सभामंडप) – स्तंभों पर अद्भुत नक्काशी और शिल्पकला देखने को मिलती है। यहाँ धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे।

सूर्यकुंड (जलाशय) – मंदिर के सामने बना विशाल कुंड, जिसमें सीढ़ीनुमा घाट और छोटी-छोटी वेदिकाएँ हैं। माना जाता है कि पूजा से पहले श्रद्धालु यहाँ स्नान करते थे।

इस मंदिर की सबसे अद्भुत बात यह है कि इसे इस प्रकार बनाया गया कि सूर्योदय की पहली किरण सीधे गर्भगृह में स्थित सूर्य प्रतिमा पर पड़ती थी। यह निर्माण उस समय के उन्नत खगोल विज्ञान और वास्तुकला का प्रमाण है

कलात्मकता

मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर रामायण, महाभारत, देवी-देवताओं और अप्सराओं की सुंदर नक्काशी की गई है। शिल्प इतना जीवंत है कि लगता है मानो पत्थर बोल रहे हों।

वर्तमान स्थिति

आज गर्भगृह में मूर्ति नहीं है, लेकिन यह स्थल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित है। यहाँ हर वर्ष मोढेरा नृत्य महोत्सव आयोजित किया जाता है, जिसमें शास्त्रीय नृत्य और संगीत की प्रस्तुतियाँ मंदिर की भव्य पृष्ठभूमि में होती हैं। यह महोत्सव मंदिर की गरिमा को और भी बढ़ा देता है।

पर्यटन और महत्व

मोढेरा सूर्य मंदिर गुजरात ही नहीं बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर है। यहाँ आने वाले पर्यटक न केवल प्राचीन स्थापत्य का आनंद लेते हैं बल्कि भारतीय विज्ञान, संस्कृति और अध्यात्म की गहराई को भी महसूस करते हैं।

मोढेरा सूर्य मंदिर भारत की महान स्थापत्य परंपरा, धार्मिक आस्था और वैज्ञानिक सोच का अनूठा प्रतीक है। यह मंदिर न सिर्फ गुजरात बल्कि सम्पूर्ण भारत की पहचान है और आने वाली पीढ़ियों को हमारे गौरवशाली इतिहास की याद दिलाता रहेगा।

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