
- डॉ. राजेश्वर सिंह बोले – कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण की जननी है।
- 1916 लखनऊ पैक्ट से शुरू हुई वोट बैंक राजनीति।
- शाह बानो केस से शाहीनबाग आंदोलन तक कांग्रेस की भूमिका।
- देश को डॉ. कलाम जैसे प्रगतिशील मुस्लिम नेता की जरूरत।
लखनऊ : सरोजनीनगर के विधायक और भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता डॉ. राजेश्वर सिंह ने कांग्रेस पार्टी पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि “कांग्रेस भारत में मुस्लिम तुष्टिकरण की जननी है।” उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने 100 साल से ज्यादा समय से केवल वोट बैंक की राजनीति की और देश की एकता और अखंडता के साथ खिलवाड़ किया।
डॉ. सिंह ने कहा कि आज़ादी से पहले से लेकर आज तक, कांग्रेस ने हर दौर में मुस्लिम तुष्टिकरण को ही प्राथमिकता दी। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “शाह बानो से लेकर शाहीनबाग तक कांग्रेस का एजेंडा केवल मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति रहा है।”
आज़ादी से पहले की राजनीति और कांग्रेस का तुष्टिकरण
डॉ. राजेश्वर सिंह ने अपने विस्तृत विचारों में कहा कि मुस्लिम तुष्टिकरण की शुरुआत कांग्रेस ने आज़ादी से पहले ही कर दी थी।
1916 का लखनऊ पैक्ट – कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के साथ समझौता कर मुसलमानों को पृथक निर्वाचन की सुविधा दी। यह भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिक आधार पर वोट बैंक की नींव थी।
1920 का खिलाफ़त आंदोलन – कांग्रेस ने तुर्की के खलीफा के समर्थन में आंदोलन छेड़ा। परिणामस्वरूप मालाबार क्षेत्र में भयानक मोपला नरसंहार हुआ, जिसमें हजारों हिंदुओं की हत्या और महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुआ। लेकिन कांग्रेस ने उस त्रासदी पर कभी आवाज़ नहीं उठाई।
1942 में कांग्रेस मंत्रिमंडल में मुस्लिम लीग को जगह – इस कदम ने साम्प्रदायिक ताकतों को और बढ़ावा दिया।
1947 का विभाजन – डॉ. सिंह ने याद दिलाया कि विभाजन के समय कांग्रेस की कमजोर नीतियों ने देश को 1.5 करोड़ विस्थापित और 15–20 लाख लोगों की मौत की त्रासदी दी। लाखों महिलाओं पर अमानवीय अत्याचार हुए।
उन्होंने कहा कि “राष्ट्रीय एकता की कीमत पर कांग्रेस ने वोट बैंक की राजनीति को जन्म दिया और देश को विभाजन की पीड़ा दी।”
स्वतंत्र भारत में कांग्रेस और तुष्टिकरण की नीतियाँ
आज़ादी के बाद कांग्रेस ने तुष्टिकरण को नीतिगत स्तर पर लागू किया। डॉ. सिंह ने कई उदाहरण गिनाए :
- नेहरू-लियाकत समझौता (1950) – जिसमें भारतीय मुसलमानों को सुरक्षा दी गई, लेकिन पाकिस्तान में हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों की स्थिति पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
- 1955-56 में हिंदू कोड बिल सुधार – सिर्फ हिंदू समाज में सुधार लाया गया, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ पर कोई बदलाव नहीं किया गया।
- हज सब्सिडी (1959) – कांग्रेस सरकार ने पहली बार हज यात्रा पर सरकारी सब्सिडी दी, जो दशकों तक जारी रही।
- शाह बानो केस (1985) – सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद में कानून बनाकर पलट दिया गया, ताकि मुस्लिम वोट बैंक नाराज़ न हो।
- वक्फ अधिनियम (1995) – जिसके जरिए वक्फ संपत्तियों को अत्यधिक विशेषाधिकार दिए गए।
- सच्चर समिति रिपोर्ट (2006) – मुस्लिम तुष्टिकरण का नया चेहरा, जिसमें कहा गया कि मुस्लिम समाज पिछड़ा है और उन्हें विशेष लाभ दिए जाएं।
- मनमोहन सिंह का बयान – “देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलमानों का है।”
डॉ. सिंह ने कहा कि कांग्रेस ने बहुसंख्यक समाज के साथ लगातार भेदभाव किया और मुस्लिम तुष्टिकरण को संस्थागत रूप दे दिया।
यूपीए काल और वोट बैंक राजनीति
डॉ. सिंह ने यूपीए सरकार के दौर को कांग्रेस की वोट बैंक राजनीति का चरम बताया। उन्होंने कहा :
Communal Violence Bill (2011) – इसमें दंगों की स्थिति में हमेशा बहुसंख्यक समाज को दोषी मानने का प्रावधान था।
RTE (2009) – मदरसों को आधुनिक शिक्षा से छूट देकर लगभग 2.5 करोड़ बच्चों को विकास से वंचित कर दिया गया।
POTA हटाना और SIMI पर ढील – आतंकवाद के खिलाफ कड़ा कानून कमजोर किया गया।
अफजल गुरु को बचाने की कोशिश – संसद हमले के दोषी को फांसी से बचाने के प्रयास हुए।
“हिंदू आतंकवाद” थ्योरी – देश की सांस्कृतिक छवि धूमिल करने के लिए कांग्रेस ने यह झूठा नैरेटिव खड़ा किया।
शाहीनबाग आंदोलन और CAA विरोध – कांग्रेस ने खुलेआम इन आंदोलनों का समर्थन किया।
हिजाब विवाद – कांग्रेस ने कट्टरपंथी एजेंडे को समर्थन देकर मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा को नुकसान पहुंचाया।
डॉ. सिंह ने कहा कि कांग्रेस ने दशकों तक राम मंदिर निर्माण का भी विरोध किया और अदालत में अड़ंगे लगाए।
शाह बानो से शाहीनबाग तक कांग्रेस का एजेंडा
डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा कि “कांग्रेस ने वही किया जो 1916 में शुरू किया था। शाह बानो केस से लेकर शाहीनबाग आंदोलन तक कांग्रेस की नीतियाँ केवल मुस्लिम वोट बैंक पर केंद्रित रहीं।”
उन्होंने कहा कि कांग्रेस का इतिहास इस बात का प्रमाण है कि उसने हमेशा मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए राष्ट्रीय हितों की बलि दी।
भारत को चाहिए प्रगतिशील मुस्लिम नेतृत्व
डॉ. सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है कि भारत को डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे प्रगतिशील और प्रेरक मुस्लिम नेता चाहिए। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज को तय करना होगा कि वे किस तरह का नेतृत्व चाहते हैं –
क्या अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे अपराधी नेता?
या फिर कलाम जैसे महान वैज्ञानिक, शिक्षाविद और राष्ट्रप्रेमी नेता?
उन्होंने कहा –
“धार्मिक नेताओं को मस्जिदों तक सीमित रहना चाहिए, राजनीति का निर्धारण नहीं करना चाहिए।”
“मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा, बराबरी और सम्मान का अधिकार मिलना चाहिए।”
“मुस्लिम समाज को अशिक्षा, कट्टरपंथ और पिछड़ेपन से बाहर आना होगा।”
दो सवाल जिन पर मुस्लिम समाज को आत्ममंथन करना चाहिए
डॉ. सिंह ने मुस्लिम समाज से दो अहम सवाल पूछे :
- नेतृत्व का चुनाव – क्यों मुस्लिम समाज से बड़े पैमाने पर डॉ. कलाम जैसे प्रेरक नेता नहीं निकलते, और क्यों अतीक-अंसारी जैसे अपराधियों को नेता बनाया जाता है?
- प्रगति या पतन – क्यों दुबई जैसे मुस्लिम देश शिक्षा और विकास का मॉडल बन गए, जबकि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान चरमपंथ और अस्थिरता में फंसे हुए हैं?
डॉ. राजेश्वर सिंह ने अपने बयान के अंत में कहा :
“भारत को आज ऐसे प्रगतिशील और अग्रगामी मुस्लिम समाज की आवश्यकता है, जो शिक्षा, रोज़गार और सुधार की राह पर चले। सच्चा नेतृत्व वही है जो समाज को कट्टरपंथ से बाहर लाकर तरक़्क़ी की ओर ले जाए।”