HomeDaily Newsआज की पीढ़ी ऑडियो-विजुअल कंटेंट को ही करती है पसंद: प्रो.अनुभूति यादव

आज की पीढ़ी ऑडियो-विजुअल कंटेंट को ही करती है पसंद: प्रो.अनुभूति यादव

प्रयागराज, 13 सितंबर, 2024: यूजीसी- मालवीय मिशन टीचर्स ट्रेनिंग सेंटर द्वारा ईश्वर शरण पीजी कॉलेज, प्रयागराज में आयोजित 24 दिवसीय ओरिएंटेशन कार्यक्रम के दौरान, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन (IIMC), नई दिल्ली की प्रोफेसर अनुभूति यादव ने आज के समय में ऑडियो-विजुअल कंटेंट की बढ़ती मांग पर जोर दिया।

अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि वर्तमान में युवा पीढ़ी मोबाइल के माध्यम से अधिकांश कंटेंट ऑडियो-विजुअल फॉर्मेट में ही पसंद करती है। इसलिए, शिक्षकों को भी अपनी शिक्षण पद्धति में बदलाव लाकर विद्यार्थियों को ऑडियो-विजुअल सामग्री प्रदान करनी चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि न केवल छात्र बल्कि शिक्षक भी मोबाइल फॉर्मेट में संक्षिप्त और प्रभावी कंटेंट को प्राथमिकता दे रहे हैं।

प्रो. यादव ने इनशॉर्ट्स जैसे मोबाइल ऐप्स की लोकप्रियता का हवाला देते हुए कहा कि इस प्रकार के प्लेटफॉर्म्स तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं, क्योंकि ये संक्षिप्त रूप में सूचना प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान युग में, सूचना के प्रदूषण से बचने के लिए शिक्षकों और छात्रों दोनों को “ट्रुथ वॉरियर” बनने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, प्रो. यादव ने प्रतिभागियों को ऑनलाइन टूल्स के जरिए स्टोरी मैप, टाइमलाइन, डेटा विजुअलाइजेशन, इंफो ग्राफिक्स, और इंफो स्फीयर जैसी नई तकनीकों के निर्माण की जानकारी दी।

सामाजिक मुद्दों पर फोकस: डॉ. रमाशंकर सिंह

ओरिएंटेशन कार्यक्रम के दूसरे सत्र में, युवा इतिहासकार और शोधकर्ता डॉ. रमाशंकर सिंह ने शोध की नई प्रवृत्तियों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि हाशिए के समुदायों और विमुक्त जातियों पर आधारित शोधों को आज प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके साथ ही, उन्होंने उन समुदायों पर भी चर्चा की जो नदियों के किनारे बसे हैं और कैसे उनकी आर्थिकी, सामाजिकी और राजनीतिक जीवन नीतिगत सच्चाई से जुड़े हैं।

डॉ. सिंह ने कलंदर समुदाय का उदाहरण देते हुए बताया कि पहले वे भालुओं को अपने जीवनयापन का साधन बनाते थे, लेकिन अब उनका आजीविका स्रोत समाप्त हो चुका है और यह समुदाय संकट में है। उन्होंने हाशिए के समुदायों के बच्चों के जीवन में शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन के अवसरों की कमी को लेकर चिंता जताई, जिससे बड़ी आबादी मुख्यधारा से दूर हो रही है।

ऐतिहासिक शोध की विधियाँ: डॉ. शुभनीत कौशिक

कार्यक्रम के तीसरे सत्र में, डॉ. शुभनीत कौशिक, जो एक युवा इतिहासकार और लेखक हैं, ने “ऐतिहासिक शोध प्रविधि” पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने इतिहास के विभिन्न दृष्टिकोणों और उनके आधार पर विभिन्न शोध विधियों पर चर्चा की। डॉ. कौशिक ने कहा कि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इतिहास अतीत और वर्तमान के बीच संवाद का पुल है, जबकि अन्य इसे अतीत को वैसा ही दिखाना मानते हैं जैसा वह घटित हुआ था।

इसके अलावा, उन्होंने जोर दिया कि इतिहासकारों का मुख्य कर्तव्य है अतीत के “क्यों” को समझना और उसकी गहराई में जाना।

कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. शाइस्ता इरशाद ने सभी वक्ताओं का स्वागत किया और डॉ. अंकित पाठक ने समापन समारोह में वक्ताओं और उपस्थित प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापित किया।

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