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अलर्जी और अस्थमा की राष्ट्रीय कांफ्रेंस में केजीएमयू के डॉ. सूर्य कान्त का विशेष व्याख्यान, बोले- इन्हेलर्स के साथ करें योग, सांस के रोगी रहेंगे हमेशा निरोग

अलर्जी और अस्थमा की राष्ट्रीय कांफ्रेंस में केजीएमयू के डॉ. सूर्य कान्त का विशेष व्याख्यान, बोले- इन्हेलर्स के साथ करें योग, सांस के रोगी रहेंगे हमेशा निरोग
  • इंडियन कॉलेज ऑफ अलर्जी और अस्थमा की 58वीं राष्ट्रीय कांफ्रेंस 20-22 दिसंबर तक दिल्ली में आयोजित।
  • केजीएमयू, लखनऊ के डॉ. सूर्य कान्त ने योग और साँस की बीमारियों पर विशेष व्याख्यान दिया।
  • योग, प्राणायाम और ध्यान से साँस की समस्याओं में सुधार और इन्हेलर्स की डोज में कमी संभव।
  • डॉ. सूर्य कान्त के मार्गदर्शन में योग-अस्थमा विषय पर दुनिया की पहली पीएचडी और 25 शोध पत्र प्रकाशित।
  • कांफ्रेंस में साँस संबंधी बीमारियों के प्राकृतिक और वैज्ञानिक प्रबंधन पर चर्चा।

नई दिल्ली/लखनऊ, 20 दिसम्बर 2024: इंडियन कॉलेज ऑफ अलर्जी और अस्थमा की 58वीं राष्ट्रीय कांफ्रेंस 20 दिसंबर से 22 दिसंबर तक पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट, दिल्ली में आयोजित की जा रही है। इस महत्वपूर्ण आयोजन में किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू), लखनऊ के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष और इटावा के मूल निवासी डॉ. सूर्य कान्त ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। उन्होंने इस मौके पर साँस की बीमारियों के प्रबंधन में योग की भूमिका पर एक विशेष व्याख्यान दिया।

साँस की बीमारियों में योग का महत्व

डॉ. सूर्य कान्त ने बताया कि साँस की बीमारियों जैसे अस्थमा और अन्य श्वसन रोगों के इलाज में इन्हेलर्स के साथ-साथ योग, प्राणायाम और ध्यान का समावेश किया जाए तो मरीजों को विशेष लाभ मिल सकता है। उन्होंने समझाया कि नियमित योग अभ्यास से:

  • साँस की समस्याओं में आराम मिलता है।
  • कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
  • अस्थमा के अटैक की संभावना कम हो जाती है।
  • जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।

इसके अतिरिक्त, डॉ. सूर्य कान्त ने यह भी बताया कि योग के नियमित अभ्यास से इन्हेलर्स की डोज कम की जा सकती है और फेफड़े की कार्य क्षमता में सुधार होता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि योग एक सहायक चिकित्सा है, लेकिन यह इन्हेलर्स का विकल्प नहीं हो सकता। अस्थमा के मरीज अपने चिकित्सक की सलाह से इन्हेलर्स के साथ योग का अभ्यास कर पूरी तरह स्वस्थ रह सकते हैं और अपने दैनिक कार्य सामान्य रूप से कर सकते हैं।

शोध और वैश्विक मान्यता

डॉ. सूर्य कान्त ने गर्व के साथ बताया कि अस्थमा में योग और प्राणायाम के प्रभाव पर दुनिया की पहली पीएचडी और पोस्ट-डॉक्टरल फेलोशिप केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में उनके मार्गदर्शन में पूरी हुई। इस विषय पर उनके द्वारा 25 शोध पत्र प्रकाशित किए जा चुके हैं, जो कि एक ही चिकित्सक द्वारा प्रकाशित शोध का विश्व रिकॉर्ड है।

कांफ्रेंस का महत्व

यह कांफ्रेंस चिकित्सा जगत में साँस संबंधी बीमारियों पर नवीनतम शोध और प्रथाओं को साझा करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है। देशभर से आए विशेषज्ञों ने इसमें भाग लेकर अपनी विशेषज्ञता साझा की। डॉ. सूर्य कान्त का व्याख्यान इस कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण रहा और यह विषय साँस की बीमारियों के प्राकृतिक और वैज्ञानिक उपचार में रुचि रखने वालों के लिए अत्यधिक प्रेरणादायक साबित हुआ।

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