
- राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) ने 9 नवंबर 2022 और 30 दिसंबर 2022 को गढ़ी चुनौटी में अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया।
- रिपोर्ट के अनुसार 36.909 हेक्टेयर भूमि में से केवल 3.1859 हेक्टेयर क्षेत्र पर अतिक्रमण था, लेकिन सैकड़ों परिवार विस्थापन के खतरे में आ गए।
- सरोजिनी नगर के विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने स्थानीय निवासियों की कानूनी लड़ाई लड़ी और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय में मजबूती से पक्ष रखा।
- उन्होंने तर्क दिया कि अतिक्रमण हटाने के आदेश में प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ और पुनर्वास योजना के बिना विस्थापन अनुचित है।
- 8 अगस्त 2024 को न्यायाधिकरण ने जिलाधिकारी को अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया तेजी से पूरी करने का निर्देश दिया था।
- 19 नवंबर 2024 को हुई सुनवाई में प्रशासन ने तीन महीने में अतिक्रमण हटाने का आश्वासन दिया।
- उन्होंने प्रशासन से यह सुनिश्चित करने को कहा कि पहले अतिक्रमण मुक्त भूमि का विकास किया जाए और पुनर्वास योजना को प्राथमिकता दी जाए।
- यह संघर्ष न्याय, गरीबों के अधिकारों और मानवीय मूल्यों की जीत के रूप में सामने आया।
लखनऊ (सरोजनी नगर), 29 जनवरी 2025: लखनऊ का गढ़ी चुनौटी क्षेत्र हाल ही में एक बड़े संकट से गुजरा, जब राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) ने इस इलाके में अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया। यह आदेश 9 नवंबर 2022 और 30 दिसंबर 2022 को गठित संयुक्त समिति की रिपोर्ट के आधार पर दिया गया था, जिसमें यह बताया गया था कि गढ़ी चुनौटी स्थित चांदे बाबा तालाब के आसपास अतिक्रमण हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, कुल 36.909 हेक्टेयर भूमि में से 3.1859 हेक्टेयर भूमि को अतिक्रमित बताया गया था, जबकि बाकी भूमि को अतिक्रमण मुक्त घोषित किया गया था।
हालांकि, इस आदेश से गढ़ी चुनौटी के सैकड़ों परिवारों पर बेघर होने का संकट मंडराने लगा। कई परिवार दशकों से यहां निवास कर रहे थे और उन्होंने दावा किया कि यह भूमि उनकी वैध संपत्ति है। प्रशासन द्वारा अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद, स्थानीय निवासियों में भय और अनिश्चितता फैल गई।
इसी संकट की घड़ी में सरोजिनी नगर के लोकप्रिय विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह गरीब और वंचित वर्ग के रक्षक बनकर सामने आए। उन्होंने न केवल प्रशासन से बातचीत की, बल्कि न्यायालय में कानूनी लड़ाई भी लड़ी, ताकि निवासियों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा की जा सके और उनके पुनर्वास के बिना कोई भी कार्रवाई न हो।
डॉ. राजेश्वर सिंह की न्याय की लड़ाई
डॉ. राजेश्वर सिंह ने इस आदेश को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन के रूप में देखा और इसे चुनौती दी। उन्होंने न्यायाधिकरण में यह तर्क दिया कि अतिक्रमण हटाने के आदेश में स्थानीय निवासियों को अपनी बात रखने का कोई अवसर नहीं दिया गया, जो कि संवैधानिक अधिकारों का हनन था।
इसके अलावा, उन्होंने यह भी तर्क दिया कि सिर्फ 3.1859 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण का दावा किया गया था, लेकिन प्रशासन की कार्रवाई से पूरा क्षेत्र प्रभावित हो रहा था। कई लोग ऐसे भी थे, जिनके पास वैध दस्तावेज थे, लेकिन बिना किसी जांच के उन्हें भी अतिक्रमणकारी मान लिया गया।
8 अगस्त 2024 को न्यायाधिकरण ने जिलाधिकारी, लखनऊ को निर्देश दिया कि अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया तीव्र गति से पूरी की जाए। इसके बाद 19 नवंबर 2024 को हुई सुनवाई में यह दर्ज किया गया कि जिलाधिकारी ने इस प्रक्रिया को तीन महीने के भीतर पूरा करने का आश्वासन दिया।
डॉ. राजेश्वर सिंह ने इस कार्रवाई पर गंभीर आपत्ति जताते हुए पुनर्वास नीति को लागू करने की मांग की। उन्होंने जोर देकर कहा कि जब तक प्रभावित परिवारों के पुनर्वास की कोई स्पष्ट योजना नहीं बनाई जाती, तब तक किसी भी प्रकार का विस्थापन करना अनुचित होगा।
स्थगन आदेश: डॉ. सिंह की कानूनी सफलता
डॉ. राजेश्वर सिंह के सशक्त कानूनी प्रयासों और मजबूत दलीलों के कारण, न्यायालय ने अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया पर तत्काल रोक (Stay Order) लगा दी। यह आदेश गढ़ी चुनौटी के निवासियों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया, क्योंकि इसके बाद प्रशासन बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के किसी को बेघर नहीं कर सकता था।
डॉ. सिंह ने यह भी सुनिश्चित किया कि न्यायालय से निर्देश प्राप्त किए जाएं कि प्रशासन को पहले पुनर्वास नीति पर काम करना होगा, जिससे विस्थापित होने वाले परिवारों को रहने की वैकल्पिक व्यवस्था मिल सके।
अतिक्रमण हटाने से पहले पुनर्वास की मांग
डॉ. राजेश्वर सिंह ने न्यायालय में यह तर्क भी दिया कि यदि सरकार अतिक्रमण हटाने की योजना बना रही है, तो उसे पहले अतिक्रमण मुक्त 33 हेक्टेयर भूमि का संरक्षण और विकास करना चाहिए।
उन्होंने प्रशासन से यह भी मांग की कि जिन परिवारों को हटाया जाना है, उन्हें सरकार की पुनर्वास योजनाओं के तहत रहने के लिए स्थान और मुआवजा दिया जाए। उनके इस तर्क से न्यायालय सहमत हुआ और प्रशासन को निर्देश दिया कि कोई भी विस्थापन बिना पुनर्वास के नहीं किया जाना चाहिए।
गरीबों और वंचितों के सच्चे हितैषी
डॉ. राजेश्वर सिंह की इस पहल से यह स्पष्ट हो गया कि वे हमेशा गरीब और वंचित वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए समर्पित रहते हैं। उन्होंने विशेष रूप से अनुसूचित जाति और अन्य कमजोर वर्गों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ी और यह सुनिश्चित किया कि उन्हें अनावश्यक रूप से विस्थापित न किया जाए।
उनका यह कदम भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की गरीबों के उत्थान की नीति के अनुरूप था, जो हमेशा वंचितों और जरूरतमंदों के कल्याण के लिए कार्य करती है।
उनके प्रयासों का सीधा प्रभाव यह हुआ कि प्रशासन को इस मामले में संवेदनशीलता के साथ कार्य करने की जरूरत महसूस हुई। इस फैसले ने यह साबित कर दिया कि जब कोई जनप्रतिनिधि जनता के हित में पूरी निष्ठा के साथ खड़ा होता है, तो न्याय की जीत निश्चित होती है।
गढ़ी चुनौटी के लिए ऐतिहासिक जीत
डॉ. राजेश्वर सिंह की संघर्षशील मानसिकता और जनसेवा के प्रति प्रतिबद्धता के कारण गढ़ी चुनौटी के निवासियों को नया जीवन और सुरक्षा मिली। यह केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं थी, बल्कि न्याय और मानवाधिकारों की जीत भी थी।
उनके प्रयासों के कारण यह सुनिश्चित किया गया कि कोई भी विध्वंस या विस्थापन तब तक नहीं किया जाएगा, जब तक कि उचित कानूनी प्रक्रिया और पुनर्वास योजना को पूरा नहीं किया जाता।
डॉ. राजेश्वर सिंह द्वारा लड़ी गई यह लड़ाई सिर्फ एक कानूनी संघर्ष नहीं थी, बल्कि गरीब और वंचितों के लिए न्याय का प्रतीक बन गई। उन्होंने न केवल कानूनी रूप से, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से भी इस मुद्दे को उठाया और यह साबित किया कि सच्चा नेतृत्व वही होता है, जो जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहे।