
- सिटी मॉन्टेसरी स्कूल (CMS) ने अप्रैल 2025 में ही जुलाई 2025 तक की फीस का बिल भेजा।
- सरकार के उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क निर्धारण) अधिनियम, 2018 के स्पष्ट प्रावधानों का उल्लंघन।
- नियमों के अनुसार बिना पूर्व अनुमति और अभिभावकों की सहमति के अतिरिक्त या समयपूर्व शुल्क वसूली नहीं की जा सकती।
- अभिभावकों पर अचानक वित्तीय दबाव, मध्यम वर्गीय परिवार सबसे अधिक प्रभावित।
- शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन लगातार शिकायतों के बावजूद निष्क्रिय।
- स्कूल कार्यक्रमों में बड़े राजनेताओं व अधिकारियों को बुलाकर बनाया जाता है प्रभाव, लेकिन लगातार बढ़ती फीस पर किसी की नजर नहीं।
लखनऊ, 27 अप्रैल 2025: शिक्षा का क्षेत्र, जो समाज निर्माण का आधार माना जाता है, आज बड़े शहरों में मुनाफाखोरी और मनमानी का पर्याय बनता जा रहा है। लखनऊ, जो शिक्षा के क्षेत्र में पूरे देश में अपनी पहचान रखता है, वहीं अब निजी स्कूलों द्वारा खुलेआम नियमों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं।
ताज़ा मामला प्रतिष्ठित सिटी मॉन्टेसरी स्कूल (CMS) का है, जिसने एक बार फिर शिक्षा विभाग के निर्देशों और राज्य सरकार के आदेशों की अनदेखी करते हुए अप्रैल 2025 में ही छात्रों के अभिभावकों को जुलाई 2025 तक की फीस का बिल भेज दिया है।
शिक्षा के नाम पर व्यापार: अभिभावकों की मजबूरी और स्कूलों की मनमानी
लखनऊ के अनेक निजी स्कूलों में शिक्षा के नाम पर कमाई का खेल अब नया नहीं रह गया है। लेकिन CMS जैसे बड़े और प्रतिष्ठित संस्थान द्वारा बार-बार नियमों की अवहेलना करना यह दर्शाता है कि स्कूल प्रशासन खुद को सरकारी तंत्र से ऊपर मान बैठा है।
सरकारी आदेशों के बावजूद समय से पहले फीस वसूली, पारदर्शिता के अभाव, और आर्थिक दबाव के चलते मध्यमवर्गीय परिवार परेशान हैं।
अभिभावकों के अनुसार, स्कूलों द्वारा जबरन वसूली अब उनकी सहनशक्ति की सीमा पार कर चुकी है।
कानूनी प्रावधानों का खुला उल्लंघन
- उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क निर्धारण) अधिनियम, 2018 के अनुसार, कोई भी निजी स्कूल अभिभावकों की पूर्व सहमति और उचित सूचना के बिना न तो फीस बढ़ा सकता है, न ही समय से पहले फीस वसूल सकता है।
- कानून के तहत, फीस में किसी भी प्रकार का संशोधन करने से पहले स्कूल प्रबंधन को एक स्पष्ट और पारदर्शी प्रक्रिया अपनानी होती है, जिसमें स्कूलों को फीस संरचना सार्वजनिक करनी होती है।
- इसके अलावा, शिक्षा विभाग ने समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी कर स्पष्ट किया है कि एक साथ कई महीनों की अग्रिम फीस वसूलना पूर्णतः प्रतिबंधित है।
- बावजूद इसके, CMS जैसे संस्थान ने अप्रैल में ही छात्रों के अभिभावकों से जुलाई तक की फीस की मांग कर दी।
CMS की पुरानी परंपरा: नियमों की अनदेखी
यह पहला मौका नहीं है जब CMS पर इस तरह के आरोप लगे हों।
हर साल समय से पहले फीस वसूली, कार्यक्रमों के नाम पर अतिरिक्त शुल्क, किताबों और ड्रेस के नाम पर महंगे सामान की अनिवार्यता जैसी शिकायतें लगातार उठती रही हैं।
लेकिन शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन की निष्क्रियता के चलते ऐसे संस्थानों का दुस्साहस दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है।
CMS जैसे स्कूल अपने विशाल नेटवर्क और रसूख का लाभ उठाकर कानून को धता बताते रहे हैं।
प्रशासन की चुप्पी और नेताओं की अनदेखी
- निजी स्कूलों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री से लेकर बड़े-बड़े राजनेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति देखी जाती है।
- यह उपस्थिति स्कूलों को सामाजिक प्रतिष्ठा तो देती है, लेकिन अभिभावकों की समस्याओं और बढ़ती फीस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
- “नेताओं का आना तो केवल एक औपचारिकता रह गई है, अभिभावकों की दर्दभरी आवाज कोई नहीं सुनता,” एक अभिभावक ने नाराजगी जताते हुए कहा।
- शिक्षा विभाग तक शिकायतें पहुंचती हैं, पत्राचार होता है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर फाइलों में धूल जमती रहती है।
अभिभावकों की पीड़ा: मध्यम वर्ग पर दोहरी मार
- मध्यम वर्गीय परिवार पहले से ही महंगाई, स्वास्थ्य खर्च, और अन्य जीवन-यापन की कठिनाइयों से जूझ रहे हैं।
- ऐसे में अगर चार महीने पहले ही जुलाई की फीस मांगी जाए, तो यह उनके लिए असहनीय आर्थिक बोझ बन जाता है।
- “बच्चे को पढ़ाना एक सपना था, अब यह सपना हमारे लिए कर्ज में डूबने की वजह बनता जा रहा है,” एक महिला अभिभावक ने रोते हुए बताया।
- समय से पहले फीस वसूली के कारण कई परिवारों को ऋण लेना पड़ता है या अपनी जरूरतों में कटौती करनी पड़ती है।
सरकारी घोषणाएं बनाम जमीनी हकीकत
- योगी सरकार ने कई मंचों से बार-बार यह दोहराया है कि निजी स्कूलों की मनमानी पर सख्ती से रोक लगेगी।
- पारदर्शिता और जवाबदेही को शिक्षा क्षेत्र में सर्वोपरि बनाए जाने की नीति घोषित की गई है।
- लेकिन ज़मीनी स्तर पर न तो फीस वसूली के नियमों का पालन हो रहा है और न ही दोषी स्कूलों के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई दिखाई दे रही है।
- इसके चलते अभिभावकों के बीच सरकार की नीयत और उसके प्रभावशीलता पर भी सवाल उठने लगे हैं।
अभिभावकों की प्रमुख माँगें:
- निजी स्कूलों द्वारा लगातार बढ़ाई जा रही फीस और समय से पहले फीस वसूली पर तत्काल प्रभाव से पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए।
- CMS समेत सभी निजी स्कूलों के वित्तीय लेनदेन और फीस वसूली प्रक्रियाओं की स्वतंत्र जांच कराई जाए।
- दोषी स्कूलों पर सख्त दंडात्मक कार्रवाई सुनिश्चित की जाए, जिसमें लाइसेंस रद्द करने तक के प्रावधान शामिल हों।
- शिक्षा विभाग के अंतर्गत एक पारदर्शी और प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र का गठन किया जाए, जिसमें 30 दिन के भीतर समाधान अनिवार्य हो।
- शिक्षा को मुनाफे का माध्यम नहीं, समाज सेवा का क्षेत्र बनाने के लिए ठोस और दीर्घकालिक नीतियाँ लागू की जाएं।
आगे क्या?
यदि समय रहते शिक्षा विभाग और प्रशासन ने निजी स्कूलों की बेलगाम वसूली और मनमानी पर प्रभावी अंकुश नहीं लगाया, तो लखनऊ के हजारों अभिभावक मिलकर सड़कों पर उतर सकते हैं। यह मामला धीरे-धीरे एक बड़े जन आंदोलन का रूप भी ले सकता है, जिसमें शिक्षा की गुणवत्ता और पारदर्शिता को लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा किया जाएगा।
लखनऊ, जो देशभर में शिक्षा के लिए एक आदर्श के रूप में देखा जाता था, वहां की गिरती स्थिति देश भर के लिए एक चेतावनी बन सकती है। शिक्षा, जो किसी भी सभ्य समाज की नींव होती है, यदि व्यापार और मुनाफाखोरी की भेंट चढ़ेगी, तो समाज का पतन निश्चित है। लखनऊ जैसे शिक्षा के केंद्र में CMS जैसे बड़े संस्थान द्वारा लगातार नियमों की अवहेलना चिंताजनक है। सरकार, शिक्षा विभाग और समाज — सभी को मिलकर इस स्थिति को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, वरना आने वाला समय शिक्षा के क्षेत्र में एक गहरी गिरावट का गवाह बन सकता है।