
- उत्तर प्रदेश सरकार ने महाकुंभ 2025 के आयोजन में नागालैंड के मुख्यमंत्री को न्योता भेजा।
- आयुष मंत्री डॉ. दयाशंकर मिश्र और ऊर्जा मंत्री श्री सोमेन्द्र तोमर ने दीमापुर में शिष्टाचार मुलाकात की।
- महाकुंभ 2025 संगम नगरी प्रयागराज में आयोजित होगा, जिसमें श्रद्धालुओं के लिए सुरक्षा और ठहरने की सर्वोत्तम व्यवस्था की जाएगी।
- यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक विविधता और एकता का संदेश पूरे विश्व में पहुंचाएगा।
- महाकुंभ को डिजिटल रूप में आयोजित किया जाएगा, जो भारतीय संस्कृति को समग्र रूप से प्रस्तुत करेगा।

लखनऊ, 23 दिसम्बर 2024: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के निर्देश पर आयुष मंत्री डॉ. दयाशंकर मिश्र दयालु और ऊर्जा राज्य मंत्री श्री सोमेन्द्र तोमर ने महाकुंभ 2025 के आयोजन में नागालैंड के मुख्यमंत्री श्री नेफियू रियो को आमंत्रित किया। यह विशेष आयोजन 12 वर्षों बाद संगम नगरी प्रयागराज में आयोजित होने जा रहा है, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्व रखता है। यह अवसर भारत और दुनिया भर के लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक भव्य और दिव्य अनुभव प्रदान करेगा।
यह शिष्टाचार मुलाकात दीमापुर में संपन्न हुई, जहां दोनों मंत्रियों ने नागालैंड के मुख्यमंत्री श्री नेफियू रियो को महाकुंभ-2025 के आयोजन के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने मुख्यमंत्री रियो को विश्वास दिलाया कि इस महाकुंभ में श्रद्धालुओं के लिए उच्चतम स्तर की सुविधाओं की व्यवस्था की जाएगी। डॉ. दयाशंकर मिश्र ने इसे “डिजिटल महाकुंभ” करार देते हुए कहा कि यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होगा, बल्कि भारतीय संस्कृति, दर्शन, और आध्यात्मिकता का वैश्विक स्तर पर एक महान प्रचारक बनकर सामने आएगा। यह महाकुंभ भारत की सांस्कृतिक विविधता और एकता का प्रतीक है, जो दुनियाभर में भारतीय संस्कृति के महत्व को उजागर करेगा।
महाकुंभ 2025 में संगम के तट पर लाखों श्रद्धालु स्नान करेंगे, ध्यान लगाएँगे, और अपने जीवन को धन्य करेंगे। इस आयोजन में भक्तों को उच्चस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था, यात्रा, ठहरने, और स्नान की सुविधाएँ दी जाएँगी। आयुष मंत्री डॉ. दयाशंकर मिश्र ने कहा कि इस महाकुंभ के आयोजन में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है और यह एक अद्भुत आयोजन होने वाला है। उन्होंने इसे “वसुधैव कुटुम्बकम” और “सर्वे भवन्तु सुखिनः” के आदर्शों को आगे बढ़ाने का एक माध्यम बताया, जो पूरी दुनिया में शांति और समृद्धि का संदेश भेजेगा।
इस दौरान ऊर्जा और वैकल्पिक ऊर्जा राज्य मंत्री श्री सोमेन्द्र तोमर ने महाकुंभ के महत्व को समझाते हुए इसे हमारे समाज की विविधता को एक सूत्र में बांधने वाला पर्व बताया। उन्होंने कहा कि यह आयोजन हमारे समाज को एकजुट करता है और हमारी आध्यात्मिक धरोहर को प्रगाढ़ करता है। यह हमें हमारे पूर्वजों की दी गई आस्था और धरोहर से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की दृष्टि के तहत और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के मार्गदर्शन में महाकुंभ के आयोजन की तैयारियाँ युद्धस्तर पर चल रही हैं।
इस शिष्टाचार मुलाकात के बाद दोनों मंत्रियों ने दीमापुर में प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की और रोड शो के जरिए नागालैंड के लोगों को महाकुंभ 2025 में आने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक अवसर है, और हम चाहते हैं कि पूरे देश और दुनिया से लोग इस धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन का हिस्सा बनें।
महाकुंभ 2025: एक ऐतिहासिक और दिव्य आयोजन
महाकुंभ 2025 का आयोजन संगम नगरी प्रयागराज में होने जा रहा है, और यह भारत का सबसे बड़ा धार्मिक समागम साबित होने वाला है। यह 12 वर्षों में एक बार होता है और लाखों श्रद्धालु इसमें भाग लेने के लिए आते हैं। इसके द्वारा न केवल धार्मिक आस्थाएँ प्रगाढ़ होती हैं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर भी पूरी दुनिया में फैलती है। इस महाकुंभ के आयोजन में जल, ऊर्जा, सुरक्षा और अन्य व्यवस्थाओं को उच्चतम स्तर पर सुनिश्चित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य न केवल भारतीयों को जोड़ना है, बल्कि दुनिया भर के लोगों को भारत की विविधता, संस्कृति, और आध्यात्मिकता के बारे में जागरूक करना है।
महाकुंभ के महत्व पर ध्यान केंद्रित करते हुए मंत्री द्वय का संदेश
इस प्रेस कांफ्रेंस और रोड शो के दौरान मंत्री डॉ. दयाशंकर मिश्र और श्री सोमेन्द्र तोमर ने महाकुंभ के महत्व को विस्तार से समझाया। डॉ. दयालु ने महाकुंभ को भारत के सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रस्तुत किया और इसे एक दिव्य अनुभव बताया। उन्होंने कहा कि यह महाकुंभ न केवल एक धार्मिक आयोजन होगा, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का वैश्विक स्तर पर प्रचार करेगा। यह आयोजन “अनेकता में एकता” का सबसे बड़ा उदाहरण बनेगा। वहीं, श्री सोमेन्द्र तोमर ने महाकुंभ को भारतीय समाज की एकता, विविधता, और आध्यात्मिकता का प्रतीक बताया और इसे आस्था का पर्व करार दिया।