
लखनऊ/नई दिल्ली: भारत में दिवाली और अन्य प्रमुख त्योहारों के दौरान पटाखों का उपयोग पारंपरिक रूप से एक उत्सव का हिस्सा रहा है। पॉप पटाखे, जो छोटे और हल्के होते हैं, देश में सबसे अधिक बिकने वाले पटाखों में शामिल हैं। इनकी सरल डिजाइन और सस्ती कीमत ने इन्हें बच्चों और युवाओं के बीच लोकप्रिय बना दिया है। मुख्य रूप से तमिलनाडु के शिवकाशी में इनका उत्पादन किया जाता है, जहां लगभग 90% पटाखों का निर्माण होता है। इस खबर में हम पॉप पटाखों की कीमत, निर्माण प्रक्रिया, उत्पादन का महत्व, और शेयर बाजार पर इसके प्रभाव के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत विवरण देंगे।

1. पॉप पटाखों की विशेषताएँ और कीमत
पॉप पटाखे छोटे कागज के पैकेट होते हैं, जिनमें बारूद या फुलझड़ी पाउडर भरा होता है। इन्हें जमीन पर फेंकने पर हल्की आवाज होती है और कभी-कभी इनमें छोटी चमक भी होती है। अन्य पटाखों की तुलना में ये बहुत कम प्रदूषणकारी होते हैं और इनकी आवाज भी हल्की होती है, इसलिए ये बच्चों और कुछ स्थानों पर पटाखा प्रतिबंधों वाले क्षेत्रों में भी स्वीकार्य हैं।
इनकी कीमत आमतौर पर ₹10 से ₹50 तक होती है, जो कि इसके ब्रांड, गुणवत्ता, और पैकेजिंग पर निर्भर करती है। बड़े पैकेट या अधिक ब्रांडेड कंपनियों के उत्पाद की कीमत थोड़ी अधिक हो सकती है। दिवाली के दौरान मांग में वृद्धि होने पर इनकी कीमत में थोड़ी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है, लेकिन सामान्यत: ये किफायती होते हैं।
2. शिवकाशी: भारत का पटाखा उत्पादन केंद्र
तमिलनाडु का शिवकाशी शहर भारत में पटाखों के निर्माण का केंद्र है, जहाँ से देश के 90% से अधिक पटाखों की आपूर्ति होती है। यह शहर भारत का सबसे बड़ा पटाखा उत्पादन केंद्र है, और इसकी पहचान ‘पायरो टेक्निक्स का हब’ के रूप में की जाती है। शिवकाशी में पटाखा उद्योग लगभग एक शताब्दी पुराना है और यहां हजारों कारखाने स्थित हैं।
यहां पटाखा उत्पादन का क्षेत्रीय महत्व भी है, क्योंकि शिवकाशी में पटाखा उद्योग के साथ-साथ फुलझड़ी, रॉकेट, और अन्य प्रकार के आतिशबाजी उत्पाद भी बनाए जाते हैं। इन उत्पादों का बाजार न केवल स्थानीय है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी विस्तारित है।
3. पॉप पटाखों का निर्माण प्रक्रिया
पॉप पटाखों का निर्माण एक विशेष प्रक्रिया के तहत किया जाता है। इस प्रक्रिया में मुख्य रूप से निम्नलिखित चरण शामिल हैं:
- रसायनों का मिश्रण: पॉप पटाखों में बारूद या फुलझड़ी पाउडर का उपयोग किया जाता है। इसे सावधानी से मिक्स किया जाता है ताकि यह सुरक्षित रूप से छोटे पैकेटों में भरने के लिए तैयार हो सके। इस मिश्रण में सल्फर, नाइट्रेट, और कार्बन जैसे रसायन शामिल होते हैं।
- पाउच में भराई: पॉप पटाखों के छोटे कागजी पाउच बनाए जाते हैं, जिनमें बारूद का यह मिश्रण भरा जाता है। यह काम कुशल कामगारों द्वारा सावधानीपूर्वक किया जाता है ताकि विस्फोट या दुर्घटना की संभावना न हो।
- पैकेजिंग: पॉप पटाखों के पाउच को छोटे-छोटे पैकेटों में रखा जाता है। इन पैकेटों में अक्सर आकर्षक पैकेजिंग होती है, जो उपभोक्ताओं को आकर्षित करने में मदद करती है।
शिवकाशी में इस काम में हजारों कुशल कारीगर और श्रमिक कार्यरत हैं, जो कि सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए इन उत्पादों का निर्माण करते हैं। पॉप पटाखे छोटे, हल्के और सुरक्षित होते हैं, जो बच्चों के लिए उपयुक्त होते हैं, और इसके कारण इनकी मांग हमेशा बनी रहती है।
4. दिवाली और अन्य त्योहारों के समय मांग में वृद्धि
भारत में दिवाली का त्योहार पटाखों का प्रमुख सीजन है। इस समय पॉप पटाखों की मांग में भारी वृद्धि होती है, क्योंकि लोग त्योहारों पर खुशियों का इज़हार करने के लिए पटाखों का उपयोग करते हैं। इस दौरान शिवकाशी में पटाखा उत्पादन कारखानों में दिन-रात काम होता है और पूरा माहौल उत्सवपूर्ण हो जाता है।
दिवाली के समय पॉप पटाखों की उच्च मांग से न केवल छोटे व्यापारियों को लाभ होता है, बल्कि अन्य उद्योगों, जैसे कि कागज, रसायन, और पैकेजिंग कंपनियों को भी बढ़ावा मिलता है। इस समय पर हुई बिक्री का असर शेयर बाजार पर भी देखा जाता है। इस मांग के कारण कच्चे माल की मांग बढ़ती है और उन उद्योगों में निवेश में तेजी आती है।
5. शेयर बाजार पर पॉप पटाखों का प्रभाव
पटाखों की उच्च मांग का प्रभाव शेयर बाजार में रसायन, पेपर, और पैकेजिंग क्षेत्र की कंपनियों पर सकारात्मक रूप से पड़ता है। जिन कंपनियों का कारोबार रसायन, बारूद और अन्य कच्चे माल पर निर्भर करता है, उन्हें इस सीजन में अच्छी वृद्धि देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए, हिंदुस्तान फ्लोरोकार्बन जैसी कंपनियां, जो विभिन्न रसायनों का उत्पादन करती हैं, को इस दौरान लाभ होता है।
इसके अलावा, पेपर और पैकेजिंग कंपनियां भी इस समय अपने शेयर में वृद्धि देखती हैं क्योंकि पटाखों की पैकेजिंग में कागज का व्यापक उपयोग होता है। दिवाली के दौरान इन उद्योगों की मांग में वृद्धि के कारण इन कंपनियों के शेयर मूल्य में वृद्धि होती है, जो निवेशकों के लिए लाभकारी साबित होती है।
6. पर्यावरणीय प्रभाव और ग्रीन पटाखों की बढ़ती मांग
हालांकि पॉप पटाखे अपेक्षाकृत सुरक्षित और कम प्रदूषणकारी होते हैं, लेकिन अन्य पटाखों की तरह इनमें भी प्रदूषण की समस्या बनी रहती है। पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ने के साथ ही सरकार ने कई राज्यों में पटाखों पर प्रतिबंध लगाए हैं। यह कदम विशेषकर दिल्ली, मुंबई, और अन्य बड़े शहरों में प्रदूषण स्तर को नियंत्रित करने के लिए उठाए गए हैं।
वर्तमान में ग्रीन पटाखों का विकल्प सामने आया है, जो पारंपरिक पटाखों की तुलना में 30-40% कम प्रदूषण करते हैं। शिवकाशी में भी ग्रीन पटाखों का निर्माण किया जा रहा है, जिससे इस उद्योग को नए तरीके से बढ़ावा दिया जा सके।
ग्रीन पटाखों के बढ़ते रुझान से प्रदूषण में कमी लाने में मदद मिल रही है, लेकिन पारंपरिक पटाखा उद्योग के छोटे और मध्यम उद्योगों को इसका नुकसान झेलना पड़ रहा है। कई कामगारों और कारीगरों की आजीविका पटाखा उत्पादन पर निर्भर करती है, और इन पर प्रतिबंध से इनका रोजगार प्रभावित होता है।
7. सरकार द्वारा सुरक्षा और नियामक उपाय
सरकार ने पटाखों के निर्माण और बिक्री पर कई सुरक्षा और नियामक उपाय लागू किए हैं। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने भी दिल्ली और NCR क्षेत्रों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए सख्त निर्देश दिए हैं। इसके अलावा, भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के सुरक्षा मानकों के अनुसार पटाखों का निर्माण करना अनिवार्य है।
इसके अतिरिक्त, कई राज्य सरकारों ने दुकानों और गोदामों में सुरक्षित पटाखा भंडारण की प्रक्रिया के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन सभी नियमों का पालन करने से उत्पादन प्रक्रिया अधिक सुरक्षित और प्रदूषणमुक्त बनती है।
8. पॉप पटाखों के उत्पादन का आर्थिक योगदान
भारत में पॉप पटाखों का उत्पादन अर्थव्यवस्था में योगदान देता है, विशेषकर तमिलनाडु के ग्रामीण क्षेत्रों में। शिवकाशी जैसे छोटे शहरों में पटाखा उद्योग ने हज़ारों लोगों को रोजगार प्रदान किया है। इससे जुड़े कुशल कारीगरों, कामगारों, और छोटे व्यापारियों के लिए यह मुख्य आय का स्रोत है।
भारत में पॉप पटाखों का उत्पादन, उनकी कीमत, निर्माण प्रक्रिया और शेयर बाजार पर प्रभाव दिखाता है कि यह उद्योग न केवल देश की सांस्कृतिक विरासत में शामिल है बल्कि आर्थिक योगदान भी करता है। दिवाली के समय इसकी मांग में वृद्धि से विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है। ग्रीन पटाखों की बढ़ती मांग और पर्यावरणीय जागरूकता के कारण इस उद्योग में बदलाव हो रहे हैं, लेकिन इसे नई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है
भारत में पटाखा उद्योग के समक्ष सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और रोजगार के अवसर बनाए रखने के लिए आवश्यक नियामक बदलावों की आवश्यकता है। इस उद्योग की वृद्धि और इसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, सरकार और संबंधित अधिकारियों को इसके विकास और पर्यावरणीय प्रभाव को संतुलित करना होगा।