
- कालीबाड़ी मंदिर की स्थापना 1863 में बंगाल के साधक मधुसूदन मुखोपाध्याय द्वारा की गई थी।
- माँ काली की पंचमुण्डी स्वरूप वाली मिट्टी की प्रतिमा उत्तर प्रदेश में अनूठी है।
- नवरात्रि के दौरान महिषासुर मर्दिनी अनुष्ठान और ढाक प्रतियोगिता का विशेष आयोजन होता है।
- मंदिर में महास्नान और विशेष पूजा विधियों के साथ अन्नकूट महाप्रसाद वितरित किया जाता है।
- मंदिर के पुजारी डॉ. अमित गोस्वामी जी पिछले 21 वर्षों से नियमित पूजा-अर्चना कर रहे हैं।

लखनऊ, 30 मार्च 2025: उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ के कैसरबाग में घसियारी मंडी स्थित प्राचीन कालीबाड़ी मंदिर में नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। माँ काली के पंचमुण्डी स्वरूप की पूजा-अर्चना के लिए भक्तजनों ने विशेष श्रद्धा के साथ यहाँ हाजिरी लगाई। इस मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व इसे विशेष बनाता है।
कालीबाड़ी मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

1863 में बंगाल के साधक मधुसूदन मुखोपाध्याय द्वारा स्थापित यह मंदिर लखनऊ का सबसे प्राचीन कालीबाड़ी मंदिर माना जाता है। कहा जाता है कि साधक मधुसूदन ने माँ काली के आदेश पर इस मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर में स्थित माँ काली की मूर्ति पंचमुण्डी स्वरूप में विराजमान है, जो अपने अनूठे तांत्रिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।

पंचमुण्डी स्वरूप का अनूठा महत्व: माँ काली की यह मिट्टी की मूर्ति पंचमुण्डी आसन पर स्थापित है, जिसमें पाँच मुंडों (मानव, वानर, पक्षी, उल्लू और सियार) का आधार होता है। यह स्वरूप तंत्र साधना के लिए विशेष रूप से पूजनीय है और उत्तर प्रदेश में इस प्रकार की एकमात्र मूर्ति मानी जाती है।
नवरात्रि और कालीबाड़ी मंदिर में विशेष अनुष्ठान

नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में महिषासुर मर्दिनी का विशेष अनुष्ठान संपन्न होता है। यहाँ हर वर्ष बंगाली परंपरा के अनुसार काली पूजा का विशेष आयोजन होता है, जिसमें महास्नान, पंच उपचार, दस उपचार और 16 उपचार की पूजा विधि अपनाई जाती है। इसके अलावा, अन्नकूट महाप्रसाद वितरण का आयोजन भी किया जाता है।
मंदिर के मुख्य पुजारी: डॉ. अमित गोस्वामी जी

मंदिर के मुख्य पुजारी डॉ. अमित गोस्वामी जी पिछले 21 वर्षों से इस मंदिर में नियमित पूजा-अर्चना कर रहे हैं। वे बंगाली परंपरा और तांत्रिक विधियों के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने माँ काली की पूजा पद्धति को न केवल संरक्षित किया है, बल्कि वो इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का भी कार्य कर रहे हैं।
डॉ. अमित गोस्वामी जी के अनुसार, दीपावली और नवरात्रि के अवसर पर माँ काली की पूजा का विशेष महत्व होता है। दीपावली के दौरान काली पूजा का भव्य आयोजन किया जाता है, जिसमें माँ काली की मिट्टी की प्रतिमा का महास्नान (सात समुद्रों के जल, 10 प्रकार के तेल और मिट्टी से स्नान) संपन्न कराया जाता है। वे मानते हैं कि इस मंदिर में जो भी भक्त सच्चे मन से माँ की आराधना करता है, उसकी मनोकामनाएँ अवश्य पूरी होती हैं। उनका समर्पण और धार्मिक ज्ञान भक्तों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।
कालीबाड़ी मंदिर के सामने सोहन जी की भक्ति से भरी दुकान

कालीबाड़ी मंदिर के ठीक सामने, सिर्फ 2 फीट की एक छोटी-सी दुकान में सोहन जी श्रद्धा और सेवा की मिसाल पेश कर रहे हैं। दशकों से, उनका परिवार माँ काली के भक्तों को शुद्ध भोग प्रसाद उपलब्ध करा रहा है। दुकान भले ही छोटी हो, लेकिन सोहन जी की आस्था और सेवा भाव असीमित है। माँ के प्रति उनकी भक्ति इतनी गहरी है कि वे मंदिर आने वाले हर भक्त का “जय माँ” कहकर अभिवादन करते हैं। पीढ़ियाँ बीत गईं, लेकिन उनकी श्रद्धा और सेवा का यह सिलसिला अब भी अनवरत जारी है।
भक्तों का अपार उत्साह

नवरात्रि के दौरान यहाँ ढाक प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें ढाक वादकों की विशेष प्रतियोगिता होती है। इस आयोजन में श्रद्धालु बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और माँ काली की विशेष पूजा में सम्मिलित होकर अपनी मनोकामनाएँ माँ के चरणों में अर्पित करते हैं।
लखनऊ का कालीबाड़ी मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की पूजा पद्धति बंगाली परंपराओं से जुड़ी हुई है और माँ काली की पंचमुण्डी स्वरूप वाली प्रतिमा तंत्र साधकों के लिए विशेष महत्व रखती है। नवरात्रि के शुभ अवसर पर यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास का प्रतीक बन जाता है।