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जोसेफ स्टालिन: दुनिया के सबसे क्रूर तानाशाहों में से एक की भयावह विरासत

  • महान पर्ज के दौरान लाखों लोगों को मौत की सजा दी गई।
  • गुलाग श्रम शिविरों में 1.5 से 2 मिलियन लोग मारे गए।
  • होलोडोमोर अकाल में 4 से 7 मिलियन लोग भुखमरी से मरे।
  • कैटिन नरसंहार में 22,000 पोलिश अधिकारियों की हत्या हुई।
  • स्टालिन की मृत्यु के बाद उनके अपराधों की निंदा हुई।

लखनऊ: 5 मार्च को इतिहास में एक महत्वपूर्ण तिथि के रूप में याद किया जाता है, क्योंकि इसी दिन 1953 में सोवियत तानाशाह जोसेफ स्टालिन की मृत्यु हुई थी। उनका शासन आतंक, अत्याचार, नरसंहार और दमन का पर्याय था। 1920 के दशक के मध्य से 1953 तक, स्टालिन ने सोवियत संघ पर एक नृशंस अधिनायकवादी शासन लागू किया, जिसने लाखों निर्दोष लोगों की मौत और असहनीय यातनाओं का कारण बना।

उनका नेतृत्व सत्ता प्राप्ति के लिए चालबाज़ी, धोखे और निर्ममता का प्रतीक था। महान पर्ज (The Great Purge) के दौरान लाखों लोग मारे गए, लाखों को जबरन श्रम शिविरों (गुलाग) में भेज दिया गया, और लाखों अन्य भुखमरी व दमन के शिकार हुए। विशेष रूप से होलोडोमोर नामक कृत्रिम अकाल ने यूक्रेन में 4 से 7 मिलियन लोगों की जान ले ली।

स्टालिन के सत्ता में आने का रक्तरंजित सफर

स्टालिन का सत्ता तक पहुंचना न तो लोकतांत्रिक था और न ही शांतिपूर्ण। व्लादिमीर लेनिन की 1924 में मृत्यु के बाद, स्टालिन ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को क्रूरतापूर्वक हटाने का अभियान शुरू किया।

  • लियोन ट्रॉट्स्की, जो स्टालिन के सबसे बड़े विरोधी थे, निर्वासित कर दिए गए और 1940 में उनकी हत्या कर दी गई।
  • अन्य विरोधियों को झूठे मुकदमों, जबरन स्वीकारोक्तियों और सार्वजनिक फांसी के ज़रिए समाप्त कर दिया गया।
  • कम्युनिस्ट पार्टी को अपने नियंत्रण में लेकर, स्टालिन ने विरोधियों को खत्म कर व्यक्तिगत सत्ता को मजबूत किया।

इतिहासकार रॉबर्ट कॉन्क्वेस्ट अपनी प्रसिद्ध पुस्तक The Great Terror (1968) में लिखते हैं कि स्टालिन का शासन “धोखे, जबरदस्ती और निर्ममता की बेजोड़ नीति पर आधारित था।”

महान पर्ज: लाखों लोगों की हत्या का भयावह दौर

1936 से 1938 के बीच, स्टालिन ने महान पर्ज (Great Purge) नामक दमन अभियान चलाया।

  • कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं, सैन्य अधिकारियों, बुद्धिजीवियों और आम नागरिकों को राजद्रोह, जासूसी और प्रतिक्रांतिकारी गतिविधियों के झूठे आरोपों में फंसाया गया।
  • एनकेवीडी (NKVD – सोवियत गुप्त पुलिस) ने सैकड़ों हजारों लोगों को गिरफ्तार किया और यातनाएं देकर अपराध कबूल करवाए।
  • मास्को परीक्षणों (Moscow Trials) में स्टालिन के पूर्व सहयोगियों ग्रिगोरी ज़िनोविएव और लेव कामेनेव को झूठे आरोपों के तहत मौत की सज़ा दी गई।
  • अनुमानित 1.2 मिलियन लोग मारे गए, जबकि लाखों लोगों को साइबेरिया के गुलाग शिविरों में भेज दिया गया

इतिहासकार स्टीफन कोटकिन अपनी पुस्तक Stalin: Paradoxes of Power (2014) में लिखते हैं कि स्टालिन के व्यामोह ने उसे अपने ही लोगों को खत्म करने के लिए मजबूर किया, जिससे सोवियत सेना भी कमजोर हो गई।

गुलाग: स्टालिन के श्रम शिविरों में नरक की ज़िंदगी

स्टालिन के शासनकाल में गुलाग (Gulag) श्रम शिविरों का नेटवर्क क्रूरता की मिसाल बन गया।

  • सोवियत संघ में 18 मिलियन से अधिक लोग गुलाग शिविरों में भेजे गए, जिनमें से कम से कम 1.5 से 2 मिलियन लोग भूख, बीमारी या हत्या के कारण मारे गए
  • यहाँ कैदियों को अत्यधिक ठंड, अमानवीय श्रम और यातनाओं का सामना करना पड़ता था।
  • नोबेल पुरस्कार विजेता अलेक्जेंडर सोल्झेनित्सिन ने अपनी पुस्तक The Gulag Archipelago (1973) में इन शिविरों का भयावह वर्णन किया है।
  • साइबेरिया के ये श्रम शिविर सिर्फ जेल नहीं थे, बल्कि मानवता के खिलाफ अपराधों का केंद्र थे।

होलोडोमोर: स्टालिन के आदेश से हुआ नरसंहार

1932-33 में स्टालिन के आदेश से यूक्रेन में कृत्रिम अकाल (Hulodomor) फैलाया गया, जो नरसंहार जैसा था।

  • स्टालिन ने किसानों की फसलें जब्त कर लीं, जिससे 4 से 7 मिलियन लोग भुखमरी से मर गए
  • भूख से तड़पते लोगों की लाशें सड़कों पर पड़ी रहती थीं, और कई परिवार नरभक्षण करने के लिए मजबूर हो गए।
  • इतिहासकार ऐनी एप्पलबाम अपनी पुस्तक Red Famine (2017) में लिखती हैं कि स्टालिन ने जानबूझकर यूक्रेन की राष्ट्रीय पहचान को कुचलने के लिए यह दमनकारी नीति अपनाई

द्वितीय विश्व युद्ध: स्टालिन के विश्वासघात और युद्ध अपराध

  • 1939 में हिटलर के साथ स्टालिन का गुप्त समझौता (Molotov-Ribbentrop Pact) हुआ, जिसमें सोवियत संघ और नाजी जर्मनी ने पूर्वी यूरोप का बंटवारा कर लिया।
  • 1940 में कैटिन नरसंहार (Katyn Massacre) में सोवियत सेना ने 22,000 से अधिक पोलिश अधिकारियों, डॉक्टरों और बुद्धिजीवियों की हत्या कर दी
  • युद्ध के दौरान, सोवियत सैनिकों को पीछे हटने से रोकने के लिए स्टालिन ने आदेश संख्या 227 जारी किया – “एक कदम भी पीछे नहीं”, जिससे लाखों सोवियत सैनिकों की जान चली गई।

इतिहासकार नॉर्मन डेविस अपनी पुस्तक Europe: A History (1996) में लिखते हैं कि स्टालिन ने अपनी सेना को “मानव ढाल” की तरह इस्तेमाल किया, जिससे अनगिनत सैनिक बेवजह मारे गए।

युद्धोत्तर युग: लौह परदा और दमन का विस्तार

  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, स्टालिन ने पूर्वी यूरोप के कई देशों पर कठोर कम्युनिस्ट शासन लागू किया
  • 1948-49 में बर्लिन नाकाबंदी से पश्चिमी बर्लिन को भूखा मारने का प्रयास किया।
  • 1952-53 में डॉक्टर्स प्लॉट नामक यहूदी-विरोधी अभियान चलाया।

इतिहासकार साइमन सेबैग मोंटेफ़ियोर अपनी पुस्तक Stalin: The Court of the Red Tsar (2003) में लिखते हैं कि स्टालिन के नज़दीकी लोग भी डर में जीते थे, क्योंकि वे कभी भी मारे जा सकते थे।

स्टालिन की मृत्यु और उनकी विरासत

  • 5 मार्च 1953 को स्टालिन की मृत्यु संदिग्ध परिस्थितियों में हुई, संभवतः उन्हें ज़हर दिया गया था।
  • उनकी मृत्यु के बाद निकिता ख्रुश्चेव ने 1956 में “सीक्रेट स्पीच” में स्टालिन के अपराधों की निंदा की।
  • उनके आतंक की विरासत आज भी चीन, उत्तर कोरिया और अन्य कम्युनिस्ट तानाशाहों के शासन में देखी जा सकती है।

स्टालिन का शासन – एक खून से सना अधिनायकवाद

स्टालिन का शासन दुनिया के सबसे क्रूर शासन में से एक था। उन्होंने लाखों लोगों को मौत, भूख, आतंक और गुलामी की ओर धकेल दिया। उनकी नीतियों ने यह स्पष्ट किया कि जब सत्ता असीमित होती है, तो वह केवल विनाश लाती है।

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