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जानें कब है मोक्षदा एकादशी: तिथि, शुभ महूर्त, महत्व, पूजा विधि एवं कथा भी पढ़ें

मोक्षदा एकादशी तिथि शुभ महूर्त, महत्व, पूजा विधि एवं कथा

हर महीने दो एकादशी तिथि पड़ती है. दिसंबर महीने में भी दो एकादशी व्रत रखे जाएंगे. दिसंबर महीने की पहली एकादशी मोक्षदा एकादशी है. पंचांग के अनुसार यह एकादशी मार्गशीर्ष या अगहन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को होती है। मोक्षदा एकादशी सभी एकादशी में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. इसका कारण यह है कि इस एकादशी के दिन ही महाभारत की रणभूमि में भगवान श्रीकृष्ण में अर्जुन को गीता उपदेश दिए थे. इसलिए हर साल मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती का पर्व एक ही दिन मनाया जाता है. इस साल मोक्षदा एकादशी का व्रत 11 दिसंबर 2024 को है।

मोक्षदा एकादशी का महत्व

वैसे तो साल में पड़ने वाली सभी एकादशी तिथि खास होती है. लेकिन सनातन धर्म में मोक्षदा एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है. क्योंकि इस एकादशी व्रत के प्रभाव से घर-परिवार का उद्धार तो होता ही है, साथ ही पितरों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पूर्वजों की आत्मा की शांति और घर-परिवार की सुख-समृद्धि के लिए मोक्षदा एकादशी का व्रत लाभकारी माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी का व्रत रखने वाले जातकों के सभी पाप कर्मों का नाश होता है और मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त होता है।

मोक्षदा एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

मोक्षदा एकादशी 2024 शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, मोक्षदा एकादशी इस बार 11 दिसंबर को मनाई जाएगी. एकादशी तिथि का प्रारंभ 11 दिसंबर को सुबह 3 बजकर 42 मिनट पर होगी और तिथि का समापन 12 दिसंबर की रात 1 बजकर 09 मिनट पर होगा. मोक्षदा एकादशी का पारण इस बार सुबह 7 बजकर 07 मिनट से लेकर 9 बजकर 09 मिनट तक होगा.

मोक्षदा एकादशी पूजन विधि

एकादशी व्रत से एक दिन पहले यानि दशमी तिथि को दोपहर में सिर्फ एक बार ही भोजन करना चाहिए. ध्यान रहे एकादशी से पहले वाले दिन रात्रि में भोजन नहीं करना है. एकादशी के दिन प्रातः काल उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें. व्रत का संकल्प लेने के बाद भगवान श्री कृष्ण की पूजा करें. उन्हें धूप, दीप, नैवेद्य इत्यादि अर्पित करें. इसके बाद रात्रि में भी पूजन और जागरण करें. अगले दिन यानी द्वादशी के दिन पूजा करें और उसके बाद जरूरतमंद व्यक्तियों को भोजन और दान दक्षिणा दें या किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और उसके बाद ही भोजन करके अपना व्रत पूरा करें. गीता का सम्पूर्ण पाठ या अध्याय 11 का पाठ करें. अंत में अपनी कामनापूर्ति की प्रार्थना करें. इस दिन दान का फल अनंत गुना मात्र में प्राप्त होता है.

मोक्षदा एकादशी उपाय

मोक्षदा एकादशी के दिन शाम को तुलसी के पौधे के सामने घी का दीपक जरूर जलाएं. इसके साथ ही ॐ वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करते हुए तुलसी के पौधे के आसपास 11 परिक्रमा करें. एकादशी के दिन तुलसी के पौधे पर जल न चढ़ाएं क्योंकि इस दिन तुलसी माता निर्जला व्रत रखती हैं. मोक्षदा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करते समय पीले रंग के गेंदे के फूल चढ़ाएं. अगर गेंदे के फूल नहीं हों तो कोई भी पीले रंग के फूल चढ़ा सकते हैं।

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, चंपा नगरी में एक प्रतापी राजा वैखानस रहते थे, जो सभी वेदों का ज्ञानी था। उनके प्रताप और अच्छे स्वभाव के कारण उनकी जनता हमेशा प्रसन्न रहती थी। एक दिन राजा ने सपने में देखा कि उनके पिता नरक में यातनाएं झेल रहे हैं। अपने इस सपने के बारे में उन्होनें अपनी पत्नी को बताया और कहा कि मैं यहां सुख से हूं और मेरे पिता को इतना कष्ट है। इसपर राजा की पत्नी ने उन्हें आश्रम में जाने की सलाह दी। राजा जब आश्रम पहुंचे तो उन्होंने कई तपस्वियों को देखा।

राजा ने ऋषियों से अपनी बात वहां मौजूद पर्वत मुनि को बताई। राजा ने कहा कि पिता ने मुझसे कहा कि हे पुत्र, मैं नरक में पड़ा हूं। यहाँ से तुम मुझे मुक्त कराओ। जब से मैंने ये वचन पिता के मुख से सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूं। मैं बहुत ही अशांत महसूस कर रहा हूं। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता। ऐसे में क्या करूँ? और अपनी परेशानी बताते हुए उनके आंखों से आंसू आने लगे।

आगे राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस स्वप्न के कारण इतना कष्ट पहुंच रहा है कि मेरा सारा शरीर जल रहा है। अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि बताएं जिससे मैं अपने पिता को नरक से मुक्त करा सकूं। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मूर्ख पुत्रों से अच्छा है। तब ब्राह्मणों ने राजा से कहा- हे राजन! यहां पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे। ऐसे में राजा पर्वत ऋषि के आश्रम पहुंचे।

राजा ने आश्रम में देखा कि अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को देखते ही उन्हें साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद की और भूत विचारने लगे। इसके बाद पर्वत मुनि से सारा सच जाना और राजा को कहा कि तुम एक पुण्य आत्मा हो, जो अपने पिता के लिए इतने परेशान हो, लेकिन इसकी बिल्कुल भी जरूरत नहीं है, क्योंकि तुम्हारे पिता अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं। तुम्हारे पिता ने तुम्हारी माता को बहुत यातनाएं दी हैं। इसी के कारण उन्हें नरक भोगना पड़ रहा है। राजा ने मुनि से इस परेशानी का हल पूछा, तो मुनि ने कहा कि तुम्हें मोक्षदा एकादशी व्रत का पालन करना चाहिए और इसे पिता को फल समर्पित करना चाहिए। इससे उनके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। राजा ने इसी विधि का पालन किया और उनके पिता सभी बुरे कर्मों से मुक्त हो गए। स्वर्ग में जाते हुए वे राजा अपने पुत्र से कहा कि हे पुत्र तेरा कल्याण हो।

शास्त्रों के अनुसार, मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, तो उसे हर तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस कथा को पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। यह व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिंतामणि के समान सब कामनाएं पूर्ण करने वाला है।

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