
- सरोजनीनगर विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह द्वारा संचालित ‘तारा शक्ति नि:शुल्क रसोई’ जरूरतमंदों को रोज़ाना गरम व पौष्टिक भोजन उपलब्ध करा रही है।
- यह रसोई सिर्फ भोजन का स्थान नहीं, बल्कि समाज में करुणा और सेवा का जीवंत उदाहरण बन चुकी है।
- डॉ. राजेश्वर सिंह ने इसे राजनीति नहीं, बल्कि अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का हिस्सा बताया है।
- स्थानीय युवाओं, महिलाओं और समाजसेवियों की भागीदारी से रसोई का संचालन अनुशासन व आत्मीयता के साथ हो रहा है।
- भविष्य में इस मॉडल को तकनीकी और संगठनात्मक विस्तार के साथ अन्य क्षेत्रों में लागू करने की योजना है।
लखनऊ, 20 जून 2025 | True News Up ब्यूरो: सरोजनीनगर क्षेत्र में इन दिनों एक शांत लेकिन क्रांतिकारी बदलाव देखा जा रहा है—यह बदलाव है भूख पर मानवता की विजय का।
इस परिवर्तन की अगुवाई कर रहे हैं क्षेत्र के लोकप्रिय विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह, जिनकी सोच और सेवा की भावना ने जन्म दिया है एक अभिनव पहल — ‘तारा शक्ति नि:शुल्क रसोई’, जो जरूरतमंदों के लिए हर दिन गरम, स्वादिष्ट और सम्मानपूर्वक भोजन उपलब्ध करवा रही है।
सेवा नहीं, संस्कार है यह रसोई
‘तारा शक्ति रसोई’ केवल भोजन देने का केंद्र नहीं है, यह उस विचारधारा का विस्तार है जो मानती है कि “गरीब की थाली खाली नहीं होनी चाहिए”।
डॉ. राजेश्वर सिंह की यह रसोई हर दिन दोपहर और शाम को उन लोगों के लिए गरम भोजन परोसती है जो समाज की व्यस्त दिनचर्या में अक्सर नजरअंदाज कर दिए जाते हैं — जैसे रिक्शा चालक, मजदूर, बेसहारा महिलाएं, दिव्यांगजन, वृद्ध नागरिक और निराश्रित।
“मानवता सबसे बड़ा धर्म है”: डॉ. राजेश्वर सिंह
रसोई के संचालन में न केवल संगठनात्मक कुशलता झलकती है, बल्कि उसमें समर्पण और करुणा भी दिखाई देती है।
विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने स्वयं इस पहल को खड़ा किया, निगरानी रखी और इसका दायरा बढ़ाया।
उनका कहना है:
“राजनीति का उद्देश्य केवल सत्ता नहीं, सेवा होना चाहिए। तारा शक्ति रसोई मेरे लिए एक परियोजना नहीं, बल्कि समाज के प्रति मेरी जिम्मेदारी है। जब एक भूखा व्यक्ति मुस्कुराता है, वहीं से मेरी सफलता शुरू होती है।”
भोजन नहीं, सम्मान मिलता है यहां
रसोई में परोसे जाने वाले भोजन की गुणवत्ता, साफ-सफाई और अनुशासन इसे सामान्य लंगर या दान की रसोई से अलग बनाते हैं।
दाल, चावल, ताजी सब्जी, चपाती और कभी-कभी मिठाई — यह पूरा भोजन न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि पौष्टिक और सम्मानजनक ढंग से दिया जाता है।
यहां कोई “भिखारी” नहीं, बल्कि हर आगंतुक “अतिथि” की तरह देखा जाता है।
स्वयंसेवकों की प्रेरक भूमिका
इस रसोई की आत्मा हैं वो स्थानीय युवा, महिलाएं और समाजसेवी, जो निःस्वार्थ सेवा में लगे हैं।
सुबह से ही रसोई में हलचल शुरू हो जाती है — रोटियां बनती हैं, सब्जियां कटती हैं, बर्तन मांजे जाते हैं और फिर समय पर भोजन वितरण होता है।
हर कार्यकर्ता इस बात से परिचालित होता है कि वे किसी “कार्यक्रम” में नहीं, बल्कि “संवेदनाओं की साधना” में लगे हैं।
जन-सहभागिता से बना एक आदर्श मॉडल
इस रसोई में स्थानीय व्यापारियों, किसानों और आम नागरिकों का भी महत्वपूर्ण योगदान है।
कोई अनाज देता है, कोई सब्जी, तो कोई समय। इस रसोई ने समाज के सभी वर्गों को एक उद्देश्य से जोड़ दिया है — “एक भी भूखा न रहे”।
भविष्य की योजना: तकनीक से सेवा तक
डॉ. राजेश्वर सिंह इस मॉडल को और अधिक संगठित करने के लिए तकनीकी पहल भी कर रहे हैं — जैसे डिजिटल लाभार्थी ट्रैकिंग, भोजन की गुणवत्ता ऑडिटिंग और जनसहभागिता पोर्टल।
उनका सपना है कि तारा शक्ति रसोई केवल सरोजनीनगर ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में भी प्रेरणा बने।
भूख पर जीत, सेवा से शांति
‘तारा शक्ति नि:शुल्क रसोई’ आज केवल एक समाजसेवी पहल नहीं, बल्कि भूख के विरुद्ध एक मौन क्रांति बन चुकी है।
यह एक विधायक के कार्यालय से निकली सेवा नहीं, बल्कि एक समाज के अंतर्मन से निकला बदलाव है।
यह साबित करता है कि जब राजनीति, सेवा और संवेदना के साथ चलती है- तब परिवर्तन निश्चित होता है।