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कालिंजर किला (बांदा) हत्याकांड: हाईकोर्ट के कुशल अधिवक्ता जितेंद्र सिंह की कर्मठता व टीम की कड़ी मेहनत से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 4 निर्दोषों को किया बरी, साथ ही फैसले को नजीर बनाते हुए यूपी पुलिस और विधि विद्यार्थियों के लिए ऐतिहासिक गाइडलाइंस जारी किया

  • कालिंजर किला (बांदा) में 8 लोगों की हत्या का मामला 2003 से चला आ रहा था।
  • इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 4 निर्दोष अभियुक्तों को बरी कर दिया।
  • वरिष्ठ अधिवक्ता जितेंद्र सिंह और उनकी टीम ने केस को गहराई से समझकर मजबूती से पैरवी की।
  • पुलिस जांच में गवाहों के बयान में भारी विरोधाभास और पहचान परेड में देरी सामने आई।
  • हाई कोर्ट ने यूपी पुलिस और विधि विद्यार्थियों के लिए ऐतिहासिक गाइडलाइंस जारी कीं।

बांदा/प्रयागराज/लखनऊ, 06 फरवरी 2025: उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के ऐतिहासिक कालिंजर किले के पास 2003 में हुए एक भीषण हमले में 8 लोगों की नृशंस हत्या कर दी गई थी। यह घटना तब हुई जब मध्य प्रदेश के पन्ना जिले से लौट रही एक बारात पर अज्ञात हमलावरों ने अचानक हमला कर दिया।
हमले में राम सुंदर द्विवेदी, शैलेंद्र तिवारी, अशोक कुमार तिवारी, कुमारी श्वेता तिवारी, गंधर्व सिंह बुंदेला और सुधीर कुमार पांडेय की मौके पर मौत हो गई। इसके अलावा पुनीत तिवारी, मदन मोहन और ब्रीज़नेव कुमार उर्फ़ गुड्डू गंभीर रूप से घायल हुए। उत्तर प्रदेश पुलिस ने इसे पप्पू यादव गैंग की साजिश बताया और 9 अभियुक्तों को नामजद किया।

ट्रायल कोर्ट का फैसला और हाई कोर्ट की पुनः समीक्षा

इस केस में ट्रायल कोर्ट ने चार अभियुक्तों—राम सुजान, अनुराग मिश्रा, छोटा @ राजेश और रामजी @ राम लखन—को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
हालांकि, मामले की पुनः समीक्षा के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की गई, जहां कई अहम तथ्यों और न्यायिक खामियों का खुलासा हुआ।
वरिष्ठ अधिवक्ता जितेंद्र सिंह और उनकी टीम ने इस केस में गहराई से अध्ययन कर ठोस कानूनी दलीलें पेश कीं।
पहचान परेड में देरी, गवाहों के बयानों में विरोधाभास और वैज्ञानिक साक्ष्यों की कमी के कारण हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ जी और न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा जी की डिवीजन बेंच ने चारों निर्दोषों को बरी कर दिया।

पुलिस जांच में गंभीर खामियां

1️⃣ गवाहों के बयान में भारी विरोधाभास

अभियोजन पक्ष ने 19 गवाहों की गवाही प्रस्तुत की, लेकिन उनके बयान परस्पर विरोधाभासी पाए गए।
कई गवाहों ने हमलावरों की संख्या अलग-अलग बताई, जिससे संदेह और बढ़ गया।
पहचान को लेकर P.W.-1 ने 5-6 हमलावर बताए, P.W.-2 ने 4-5, P.W.-3 ने 7-8 और P.W.-5 ने 8-10 का दावा किया।
गवाहों ने FIR के बाद अभियुक्तों की पहचान बदली, जिससे न्यायालय में मामला कमजोर पड़ गया।

2️⃣ पहचान परेड में देरी

अपराध के चार से सात महीने बाद पहचान परेड कराई गई, जिससे गवाहों की सटीकता पर सवाल उठे।
हाई कोर्ट ने कहा कि पहचान परेड जितनी देर से कराई जाती है, गवाहों की सटीकता उतनी ही कमजोर हो जाती है।
सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों के अनुसार, यदि पहचान परेड में अनुचित देरी होती है, तो अभियुक्तों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए।

3️⃣ कोई ठोस वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं

मामले की जांच में कोई फिंगरप्रिंट, DNA सबूत, CCTV फुटेज या हथियार की बरामदगी नहीं हुई।
पुलिस केवल गवाहों के बयानों के आधार पर ही चार्जशीट दाखिल कर दी थी।
हाई कोर्ट ने माना कि अपराधियों की पहचान का ठोस प्रमाण नहीं होने से अभियुक्तों को सजा देना न्याय के विरुद्ध होगा।

वरिष्ठ अधिवक्ता जितेंद्र सिंह और उनकी टीम की निर्णायक भूमिका

इस केस में वरिष्ठ अधिवक्ता जितेंद्र सिंह और उनकी कानूनी टीम की कुशल रणनीति और गहन अध्ययन ने निर्णायक भूमिका निभाई।
उन्होंने पहचान परेड में देरी, गवाहों के बयानों में विरोधाभास और सबूतों की कमी पर अदालत का ध्यान केंद्रित किया।
उनकी प्रभावी दलीलों और कानूनी तर्कों से अदालत को मामले को नए दृष्टिकोण से देखने पर मजबूर किया।
हाई कोर्ट ने उनकी दलीलों को स्वीकारते हुए चार निर्दोषों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।

हाई कोर्ट की गाइडलाइंस: पुलिस और विधि विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण निर्देश

उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए निर्देश

पुलिस को जांच में वैज्ञानिक और फॉरेंसिक सबूतों पर अधिक जोर देना चाहिए।

पहचान परेड अपराध के तुरंत बाद कराई जाए, ताकि गवाहों की विश्वसनीयता बनी रहे।

मात्र मौखिक गवाही के आधार पर आरोप तय न किए जाएं, बल्कि मजबूत साक्ष्य प्रस्तुत किए जाएं।

विधि विद्यार्थियों और वकीलों के लिए महत्वपूर्ण सीख

पहचान परेड में देरी अभियुक्तों को संदेह का लाभ दिला सकती है।

गवाहों के बयानों की सटीकता को क्रॉस एग्जामिनेशन के माध्यम से परखा जाना चाहिए।

फोरेंसिक सबूतों की अनुपस्थिति अभियोजन पक्ष के खिलाफ जा सकती है।

कानूनी पेशेवरों को केस की बारीकियों को समझने के लिए न्यायिक मिसालों का अध्ययन करना चाहिए।

हमारी विशेष चर्चा: पुलिस और विधि शिक्षा में सुधार आवश्यक

इस फैसले को लेकर हमने विशेष चर्चा की कि यदि यह फैसला न्यायसंगत नहीं होता, तो इलाहाबाद हाई कोर्ट के दोनों न्यायमूर्तिगण इसे नहीं सुनाते।
यह साफ दर्शाता है कि न्यायपालिका में निष्पक्षता सर्वोपरि होती है और अदालत सबूतों के आधार पर ही निर्णय लेती है। उत्तर प्रदेश पुलिस को अपनी जांच प्रणाली में पारदर्शिता और वैज्ञानिकता अपनानी चाहिए, ताकि इस तरह की चूक न हो। विधि विद्यार्थियों को इस केस को एक केस स्टडी के रूप में देखना चाहिए, ताकि भविष्य में किसी निर्दोष को गलत तरीके से न फंसाया जाए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले का व्यापक प्रभाव

पुलिस जांच की पारदर्शिता सुनिश्चित होगी और वैज्ञानिक साक्ष्यों पर अधिक ध्यान दिया जाएगा। झूठे मामलों में निर्दोषों को फंसाने से रोकने के लिए यह फैसला एक ऐतिहासिक मिसाल बनेगा, न्यायपालिका की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को बढ़ावा मिलेगा, इसके साथ ही विधि छात्रों और कानूनी पेशेवरों को केस की बारीकियों और न्यायिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद भी मिलेगी।

2003 के कालिंजर किला (बांदा) हत्याकांड में हाई कोर्ट ने चार निर्दोष अभियुक्तों को बरी कर दिया। वरिष्ठ अधिवक्ता जितेंद्र सिंह और उनकी टीम की कानूनी रणनीति से न्याय की जीत सुनिश्चित हुई। हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस, वकीलों और विधि के छात्रों के लिए महत्वपूर्ण गाइडलाइंस जारी कीं। यह मामला कानूनी शिक्षा, न्यायपालिका और पुलिस सुधार के लिए एक ऐतिहासिक मिसाल बना।

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